बुरी नैतिकता से दूर रहना चाहिए (2 का भाग 2)
विवरण: ये दो पाठ एक बेहतर इंसान बनने के लिए इस्लामी नैतिकता के अनुसार विभिन्न प्रकार की बुरी नैतिकताओं से दूर रहने की व्याख्या करेंगे। दूसरा भाग।
द्वारा Imam Mufti (© 2016 NewMuslims.com)
प्रकाशित हुआ 08 Nov 2022 - अंतिम बार संशोधित 07 Nov 2022
प्रिंट किया गया: 33 - ईमेल भेजा गया: 0 - देखा गया: 6,279 (दैनिक औसत: 6)
उद्देश्य:
·इस्लामी शिक्षाओं के अनुसार अन्य 10 बुरी नैतिकताओं के बारे में जानना।
अरबी शब्द:
·अमीर - सरदार।
·सुन्नत - अध्ययन के क्षेत्र के आधार पर सुन्नत शब्द के कई अर्थ हैं, हालांकि आम तौर पर इसका अर्थ है जो कुछ भी पैगंबर ने कहा, किया या करने को कहा।
1.दूसरों की नीयत पर शक करना
महान अल्लाह कहता है,
“ऐ विश्वासियों! बचो अधिकांश गुमानों से। वास्व में, कुछ गुमान पाप हैं._001.jpg) ” (क़ुरआन 49:12)
” (क़ुरआन 49:12)
एक मुसलमान लोगों को संदेह का लाभ देता है और उनके इरादो को सर्वोत्तम मानता है। जब आप लोगों को संदेह का लाभ देते हैं और मानते हैं कि उनके इरादे अच्छे हैं, तो आपसे एक स्वस्थ दृष्टिकोण और अधिक सकारात्मक और उत्पादक रूप से बातचीत की जाएगी।
संदेह लोगों के बीच के संबंधों को बर्बाद कर सकता है, खासकर जब यह कमजोर सबूत या अफवाह पर आधारित हो। जब हम दूसरों के इरादे पर बिना किसी ठोस आधार के संदेह करते हैं, तो हम जल्द ही एक बदतर अपराध के दोषी हो जाते हैं, जो बिना सबूत के संदेह करना है।
2.दूसरों का अनुचित लाभ उठाना
दूसरों का लाभ उठाना विश्वासघात करना है। सार्वजनिक पद पर अपने कर्तव्यों का पालन करना एक विश्वास है और रिश्वत लेकर लाभ उठाना मना है। यदि किसी व्यक्ति को एक निश्चित उच्च पद पर नियुक्त किया जाता है, तो उसे अपनी उन्नति या अपने रिश्तेदारों के लाभ के लिए इस पद का उपयोग नहीं करना चाहिए, क्योंकि व्यक्तिगत उद्देश्यों के लिए सार्वजनिक धन का उपयोग करना अपराध है। अपने कर्तव्य का पालन न करना जिसके लिए उसे भुगतान किया जाता है, यह भी दूसरों का अनुचित लाभ उठाना है। पैगंबर (उन पर अल्लाह की दया और आशीर्वाद हो) ने कहा,
“हर धोखेबाज के सिर के पास एक बैनर होगा जिसे वह अपने छल के अनुपात में उठाएगा। निश्चित रूप से, सबसे बड़ा धोखेबाज वह अमीर है जो जनता को धोखा देता है।”[1]
3.धोखेबाज और विश्वासघाती होना
धोखेबाजी और विश्वासघात विश्वसनीयता और वफादारी के विपरीत है। यदि विश्वसनीयता और निष्ठा विश्वास और धर्मपरायणता के गुण हैं, तो धोखेबाजी और विश्वासघात पाखंड और बुराई के गुण हैं।
अल्लाह के दूत ने कहा: "चार विशेषताएं ऐसी हैं कि जिनके पास भी यह सब है वह एक शुद्ध पाखंडी है: जब वह बोले तो झूठ बोले, जब वह वादा करे तो उसे तोड़ दे, जब वह कोई अनुबंध करे तो उसे तोड़ दे, और जब वह विवाद करे तो असभ्य भाषा बोले। जिसके पास भी इनमे से एक विशेषता है, उसमें पाखंड की विशेषताओं में से एक है, जब तक कि वह इसे छोड़ नहीं देता।” [2]
4.जलना
जलन उस इच्छा को संदर्भित करती है जो एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति के आशीर्वाद को नष्ट करने या हटाने के लिए महसूस करता है। अल्लाह विश्वासियों को ईर्ष्यालु व्यक्ति की बुराई से शरण लेने और सामान्य रूप से ईर्ष्या न करने का आदेश देता है। महान अल्लाह कहता है: "तथा द्वेष करने वाले की बुराई से, जब वह द्वेष करे।" (क़ुरआन 113:5)
अल्लाह के दूत ने भी यह कहा:
“वास्तव में जलन अच्छे कर्मों को खा जाती है जैसे आग लकड़ी को जला देती है।”[3]
क़ुरआन मे कई कहानियां हैं जो ईर्ष्या के खतरों और बुराइयों को उजागर करती हैं जैसे अध्याय 12 में पैगंबर यूसुफ (जोसेफ) की कहानी और अध्याय 5 में काबिल और हाबिल की कहानी।
5.उदासीन और अमित्र होना
इस्लाम में दोस्त और साथी अहम है। मनुष्य स्वभाव से सामाजिक प्राणी हैं; उन्हें दोस्तों और साथियों की जरूरत है। एक समुदाय की सफलता दूसरों के साथ बातचीत पर निर्भर करती है। मजबूत व्यक्ति एक मजबूत समुदाय का मूल होते हैं, जिसे हासिल करने के लिए मुसलमानों को हमेशा प्रयास करना चाहिए।
एक अच्छा दोस्त वह होता है जो आपकी कमियों को स्वीकार करता है, लेकिन साथ ही आपका मार्गदर्शन और आपका साथ देता है। विश्वासियों को कभी भी एक दूसरे को शर्मिंदा या सार्वजनिक रूप से परेशान नहीं करना चाहिए। उन्हें कभी भी एक-दूसरे की कमियों को उजागर नहीं करना चाहिए। सभी व्यवहारों में दया और करुणा स्पष्ट होनी चाहिए। इसके साथ ही, जबकि मुसलमानों को हर किसी की परवाह करनी चाहिए, उसे किसी विपरीत लिंग के किसी व्यक्ति से घनिष्ठ मित्रता नहीं करनी चाहिए या संबंध नहीं बनाना चाहिए। इस प्रकार की निकटता सिर्फ जीवनसाथी के लिए आरक्षित है।
6.लापरवाह और असहायक
इस्लाम के केंद्रीय सिद्धांतों में से एक दूसरों की मदद करना है। क़ुरआन और विशेष रूप से सुन्नत इस बात पर प्रकाश डालते हैं कि कैसे दूसरे इंसान की मदद करना इस्लाम का एक मूलभूत पहलू है। एक मुसलमान का प्राथमिक लक्ष्य अल्लाह की पूजा करना है; यह न केवल नमाज़ और उपवास जैसे कार्यो से किया जाता है बल्कि अन्य लोगों के प्रति अच्छे व्यवहार से भी किया जाता है। जब हम दूसरों की मदद करते हैं, तो अल्लाह इसे इतना प्यार करता है कि वह हमारे पापों को क्षमा कर देता है।
7.कंजूसी
कंजूसी एक सापेक्ष शब्द है। यदि कोई इस्लाम के अनुसार अपने सभी आर्थिक बकाया का भुगतान करता है, और साथ ही साथ वह एक बहुत ही सादा जीवन व्यतीत करता है, तो यह साधारण जीवन जीना है, न कि कंजूसी करना। दूसरी ओर, यदि कोई अपने आर्थिक बकाया का भुगतान करने में विफल रहता है और एक कंजूस का जीवन जीता है, तो इस प्रकार का व्यवहार इस्लाम में अवांछित है। यह स्वार्थ के समान है, और इस्लाम के अनुसार स्वार्थ, एक घृणित, निषिद्ध व्यवहार है।
8.अन्यायी और अनुचित होना
अन्याय के तीन व्यापक प्रकार हैं:
1.अल्लाह के प्रति अन्यायी होना। यह सबसे जघन्य प्रकार है और अविश्वास, बहुदेववाद या पाखंड के रूप में हो सकता है। अल्लाह कहता है:
“वास्तव में, अन्यायी पर अल्लाह की धिक्कार है।” (क़ुरआन 11:18)
2.अन्य लोगों के प्रति अन्यायी होना। अल्लाह कहता है:
“दोष केवल उनपर है, जो लोगों पर अत्याचार करते हैं और नाह़क़ ज़मीन में उपद्रव करते हैं। उन्हीं के लिए दर्दनाक यातना है।” (क़ुरआन 42:42)
3.अपने प्रति अन्यायी होना। अल्लाह कहता है:
“फिर हमने उत्तराधिकारी बनाया इस पुस्तक का उन्हें जिन्हें हमने चुन लिया अपने भक्तों में से। तो उनमें कुछ अत्याचारी हैं अपने ही लिए” (क़ुरआन 35:32)
9.असहिष्णुता
सहिष्णुता मुसलमान के अच्छे चरित्र का एक महत्वपूर्ण गुण है। मुसलमानों को दयालु और सौम्य, लोगों के साथ धैर्यवान, बुरे चरित्र को क्षमा करने वाला और जब भी संभव हो उदार होना चाहिए। पैगंबर ने मुसलमानों को लोगों के जीवन में अनावश्यक कठिनाई और मुश्किलें पैदा करने से बचने और सुंदर भाषा से लोगों को प्रेरित करने का आदेश दिया,
“चीजों को आसान बनाओ और चीजों को मुश्किल मत बनाओ। खुशखबरी दो और लोगों से घृणा मत करो। एक दूसरे का सहयोग करो और आपस मे विभाजित मत हो।”[4]
असहिष्णुता और कठोरता दिलों को दूर भगाती है और फूट को बढ़ावा देती है। असहिष्णुता से नफरत पैदा होती है और इससे हत्या और हिंसा हो सकती है।
10.अहंकारी और अभिमानी होना
पैगंबर मुहम्मद ने चेतावनी दी थी कि जिस व्यक्ति के दिल में इसका रत्ती भर भी हिस्सा होगा, वह स्वर्ग में प्रवेश नहीं करेगा।
अभिमानी व्यक्ति से सभी घृणा करते हैं; जबकि, जो विनीत, विनम्र और बात करने में आसान होता है वह प्रिय होता है। हम ऐसे लोगों से प्यार करते हैं जो हमें आदर और सम्मान देते हैं। इस प्रकार यदि हम दूसरों के साथ वैसा ही व्यवहार करने के सिद्धांत का पालन करते हैं जैसा व्यवहार हम अपने साथ चाहते हैं, तो हमारे समुदायों की अधिकांश समस्याओं का समाधान हो जाएगा।
- नमाज़ - उन्नत (2 का भाग 1)
- नमाज़ - उन्नत (2 का भाग 2)
- जीवन का उद्देश्य
- क़ुरआन क्यों और कैसे सीखें (2 का भाग 1)
- क़ुरआन क्यों और कैसे सीखें (2 का भाग 2)
- पैगंबरो के चमत्कार
- पवित्रशास्त्र के लोगों के लिए मांस (2 का भाग 1)
- पवित्रशास्त्र के लोगों के लिए मांस (2 का भाग 2)
- जिक्र (अल्लाह को याद करना): अर्थ और आशीर्वाद (2 का भाग 1)
- जिक्र (अल्लाह को याद करना): अर्थ और आशीर्वाद (2 का भाग 2)
- न्याय के दिन मध्यस्थता (2 का भाग 1)
- न्याय के दिन मध्यस्थता (2 का भाग 2)
- क़ुरआन के गुण (2 का भाग 1)
- क़ुरआन के गुण (2 का भाग 2)
- अच्छी नैतिकता (2 का भाग 1)
- अच्छी नैतिकता (2 का भाग 2)
- इस्लामी स्वर्ण युग (2 का भाग 1)
- इस्लामी स्वर्ण युग (2 का भाग 2)
- इस्लाम मे सोशल मीडिया
- आराम, मस्ती और मनोरंजन
- ज्योतिष और भविष्यवाणी
- पैगंबर मुहम्मद के चमत्कार (2 का भाग 1)
- पैगंबर मुहम्मद के चमत्कार (2 का भाग 2)
- बुरी नैतिकता से दूर रहना चाहिए (2 का भाग 1)
- बुरी नैतिकता से दूर रहना चाहिए (2 का भाग 2)
- उपवास और दान के आध्यात्मिक लाभ
- सपने की व्याख्या
- पैगंबर मुहम्मद की विस्तृत जीवनी - मक्का अवधि (3 का भाग 1)
- पैगंबर मुहम्मद की विस्तृत जीवनी - मक्का अवधि (3 का भाग 2)
- पैगंबर मुहम्मद की विस्तृत जीवनी - मक्का अवधि (3 का भाग 3)
 
                 
                 
                 शीर्ष पर जाएं
 शीर्ष पर जाएं             रेटिंग दें
 रेटिंग दें                 प्रिंट करें
 प्रिंट करें                 ईमेल
 ईमेल                 पीडीएफ प्रारूप
 पीडीएफ प्रारूप                 
                                                 
                                                