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सुन्नत का संरक्षण (4 का भाग 2)
विवरण: हदीस के संग्रह, इसके संरक्षण और प्रसारण का परिचय। भाग 2: पैगंबर के साथी जिन्होंने पैगंबर के जीवनकाल के दौरान सुन्नत और हदीस के लेखन को संरक्षित किया।
द्वारा Imam Mufti
प्रकाशित हुआ 08 Nov 2022 - अंतिम बार संशोधित 07 Nov 2022
प्रिंट किया गया: 3 - ईमेल भेजा गया: 0 - देखा गया: 348 (दैनिक औसत: 2)श्रेणी: पाठ > पैगंबर मुहम्मद > हदीस और सुन्नत
शर्त
· हदीस और सुन्नत के लिए शुरुआती मार्गदर्शक
उद्देश्य
· अबू हुरैरा, आयशा, 'अब्दुल्ला इब्न' उमर और 'अब्दुल्ला इब्न' अब्बास जैसे पैगंबर के मुख्य साथियों को जानना जिन्होंने पैगंबर की सुन्नत को संरक्षित किया।
· समझना कि प्रारंभिक इस्लाम में हदीस को याद रखने के साथ-साथ लिखित रूप में भी संरक्षित किया गया था।
अरबी शब्द
· सुन्नत - अध्ययन के क्षेत्र के आधार पर सुन्नत शब्द के कई अर्थ हैं, हालांकि आम तौर पर इसका अर्थ है जो कुछ भी पैगंबर ने कहा, किया या करने को कहा।
· हदीस - (बहुवचन - हदीसें) यह एक जानकारी या कहानी का एक टुकड़ा है। इस्लाम में यह पैगंबर मुहम्मद और उनके साथियों के कथनों और कार्यों का एक वर्णनात्मक रिकॉर्ड है।
सुन्नत को संरक्षित करने वाले पैगंबर के साथी
पैगंबर मुहम्मद (उन पर अल्लाह की दया और आशीर्वाद हो) के सभी साथियों के पास सुन्नत को बनाए रखने के लिए प्रतिबद्ध होने का अवसर या समान रुचि नहीं थी। हर किसी को अपने जीवन यापन के लिए काम करना पड़ता था, जबकि मुस्लिम समुदाय की भारी बाधाओं के खिलाफ रक्षा ने उनमें से अधिकांश पर अतिरिक्त बोझ डाल दिया था। हालांकि, असहाब-उस -सूफ़ा के नाम से जाने जाने वाले साथियों की मंडली थी, जो मस्जिद में ही रहते थे, और जो मदीना के बाहर की जनजातियों को धर्म की शिक्षा देते थे। इनमें से सबसे प्रसिद्ध अबू हुरैरा थे जो हर कीमत पर पैगंबर के साथ रहते थे, और पैगंबर जो कहते या करते उसे याद रखते थे। वो हदीस के संरक्षित करने का प्रयास करते थे। बताया जाता है कि उन्होंने खुद एक बार कहा था:
“आप कहते हैं कि अबू हुरैरा पैगंबर की हदीस का वर्णन करने में विपुल है, और आप कहते हैं कि कैसे मुहाजिरिन (प्रवासी) और अंसार (सहायक) अबू हुरैरा की तरह पैगंबर की हदीस का वर्णन नहीं करते हैं। सच तो यह है कि प्रवासियों में से हमारे भाई बाजार में व्यापार करने में व्यस्त थे, जबकि मैं पैगंबर के पास सिर्फ अपना पेट भरकर रहता था, जब ये लोग अनुपस्थित थे तो मैं उपस्थित था और इसलिए वे लोग भूल गए हैं और मुझे याद है। मददगारों में से हमारे भाई अपनी भूमि के काम में व्यस्त थे, और मैं सुफ़ा के लोगों में से एक गरीब आदमी था, इसलिए वे जो कुछ भी भूल गए, उसे मैंने याद रखा।” (सहीह अल-बुखारी)
पैगंबर की पत्नी आयशा भी उन प्रमुख लोगों में से एक थीं जिन्होंने पैगंबर की सुन्नत, विशेष रूप से पैगंबर के पारिवारिक जीवन की सुन्नत को संरक्षित किया था। उनकी याददाश्त तेज थी, और साथ ही उनके एक स्पष्ट समझ थी। उनके बारे में एक बयान है जिसके अनुसार "उसने कभी ऐसा कुछ नहीं सुना जिसे वह समझती न थी लेकिन वो इसके बारे में फिर से सवाल करती थी।”[1] दूसरे शब्दों में, जब तक वह पूरी तरह से संतुष्ट नही होती थी, वो कुछ भी स्वीकार नही करती थी।
‘अब्दुल्ला इब्न' उमर और 'अब्दुल्ला इब्न' अब्बास दो अन्य साथी हैं जो विशेष रूप से क़ुरआन और हदीस के ज्ञान को संरक्षित और प्रसारित करने के काम में लगे हुए थे, और 'अब्दुल्ला इब्न' अम्र भी थे जो पैगंबर (उन पर अल्लाह की दया और आशीर्वाद हो) की बातें लिखते थे। उन लोगों के अलावा जो सुन्नत और हदीस को संरक्षित रखते थे, पैगंबर के हर साथी ने उनके शब्दों और कार्यों को संरक्षित करने की कोशिश की।' उमर ने अपने एक पड़ोसी के साथ की व्यवस्था की थी कि वे पैगंबर के साथ बारी-बारी से रहेंगे, ताकि एक दूसरे को उसकी अनुपस्थिति जो हुआ वो बता सकें।
पैगंबर के जीवनकाल में हदीस का लेखन
कुछ लोगों की गलत धारणा यह है कि हदीस पैगंबर के दो सौ साल बाद तक नहीं लिखी गई थी, जो कि तथ्यों के अनुसार गलत है। यह सोचना एक घोर त्रुटि है कि पैगंबर की पूरी हदीस एक मौखिक परंपरा बनी रही जब तक कि इसे कुछ सदियों बाद नहीं लिखा गया। पैगंबर ने जो किया या कहा, उसका संरक्षण मुसलमानों की ओर से कोई विचार नहीं था। पैगंबर के साथियों ने उनकी अधिकांश बातों को व्यवहार में लाने के साथ-साथ याद भी रखा और लिखित रूप में भी सुरक्षित रखा। उन्हें पता था कि पैगंबर की सुन्नत को आने वाली पीढ़ियों के लिए संरक्षित किया जाना चाहिए। इसलिए उन्होंने इसे न केवल याद रखा बल्कि इसे लिखा भी। पहले जिन दो उदाहरणों के बारे में बताया गया, वे थे हम्माम इब्न मुनाबिह के सहीफ़ा और अस-सहीफ़ा अस-सादिकह।
अबू हुरैरा ने बताया कि जब अंसार में से एक ने पैगंबर से उनकी बताई गई बातों को याद रखने में असमर्थता की शिकायत की, तो पैगंबर ने जवाब दिया कि उन्हें अपने दाहिने हाथ की मदद लेनी चाहिए, यानी कि उन्हें लिखना चाहिए।
एक अन्य प्रसिद्ध विवरण 'अब्दुल्ला इब्न' अम्र से है: "मैं याद करने के इरादे से वह सब कुछ लिखता था जो मैं पैगंबर से सुनता था। कुछ लोगों ने ऐसा करने पर आपत्ति जताई तो मैंने इसके बारे में पैगंबर से बात की, उन्होंने कहा:
”लिखो, क्योंकि मैं केवल सच बोलता हूं”[2]
मक्का की विजय के वर्ष में, पैगंबर ने किसी पुरानी शिकायत के प्रतिशोध के रूप में एक व्यक्ति के मारे जाने के अवसर पर एक उपदेश दिया था। जब उपदेश समाप्त हो गया, तो यमन के लोगों में से एक व्यक्ति आगे आया और पैगंबर से अनुरोध किया कि उन्हें ये लिखना है, और पैगंबर ने इसे लिखने का आदेश दिया।[3]
विषय
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