पवित्र क़ुरआन का संरक्षण
विवरण: जिस तरह क़ुरआन को संरक्षित और संचारित किया गया है वैसा दुनिया के किसी अन्य धार्मिक पाठ को नहीं किया गया। इसे मुख्य रूप से याद कर के और लिखित रूप में संचारित किया गया है। इस पाठ में इसका प्रमाण है।
द्वारा Imam Mufti
प्रकाशित हुआ 08 Nov 2022 - अंतिम बार संशोधित 07 Nov 2022
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उद्देश्य
·यह जानना कि बिना किसी बदलाव के और सावधानीपूर्वक संरक्षण और संचरण के कारण पवित्र क़ुरआन अपने मूल रूप में है।
·इसके संरक्षण और संचरण के साक्ष्य के माध्यम से पवित्र क़ुरआन में विश्वास और दृढ़ विश्वास स्थापित करना।
अरबी शब्द
·सुन्नत - अध्ययन के क्षेत्र के आधार पर सुन्नत शब्द के कई अर्थ हैं, हालांकि आम तौर पर इसका अर्थ है जो कुछ भी पैगंबर ने कहा, किया या करने को कहा।
क़ुरआन और पैगंबर मुहम्मद की सुन्नत इस्लाम के दो दैवीय रूप से प्रकट स्रोत हैं, और इस्लामी विश्वास और पूजा इन पर आधारित है।
कोई सोच सकता है की 'नए मुसलमान के लिए इस विषय के बारे में जानना क्यों ज़रूरी है?' पहला, क्योंकि बुनियादी जानकारी जानने से उसका विश्वास और आत्मविश्वास बढ़ेगा कि वह सीधे रास्ते पर है। उसे लगेगा कि उसका धर्म केवल दावों पर नहीं, बल्कि उस रहस्योद्घाटन पर बना है जिसका अल्लाह ने वादा किया था और वास्तव में संरक्षित है। दूसरा, बुनियादी ज्ञान होने से व्यक्ति के सामने आने वाली किसी भी शंका से प्रभावित होने की संभावना कम होती है।
अल्लाह कहता है:
“वास्तव में, हमने ही ये शिक्षा (क़ुरआन) उतारी है और हम ही इसके रक्षक हैं।” (क़ुरआन 15:9)
आइए देखें कि इसे कैसे सदियों से संरक्षित किया गया है।
जिस तरह क़ुरआन को संरक्षित और संचारित किया गया है वैसा दुनिया के किसी अन्य धार्मिक पाठ को नहीं किया गया। इसे मुख्य रूप से याद कर के और लिखित रूप में संचारित किया गया है जैसा की हम बताएंगे।
साक्ष्य कि क़ुरआन लिखित में संरक्षित है
उस समय प्रिंटिंग प्रेस नहीं थे। एक प्रतिलिपि बनाने के लिए पुस्तकों को विशेष लेखकों द्वारा लिखा जाता था। पैगंबर ने विशेष शास्त्रियों को शब्द दर शब्द क़ुरआन बताया था।[1] पैगंबर का 632 ईस्वी में निधन हो गया। बाद में, मुसलमानों के पहले नेता अबू बक्र ने लेखकों की मूल लिपियों को एक किताब में इकट्ठा किया, और फिर कुछ समय बाद, जब मुस्लिम साम्राज्य पूर्व से पश्चिम तक फैला, पैगंबर के दामाद और तीसरे खलीफा उस्मान ने लगभग बीस साल बाद मूल क़ुरआन की पांच प्रतियां बनाने और मुस्लिम दुनिया के सभी हिस्सों में वितरित करने का आदेश दिया।[2]
आज हमारे पास क़ुरआन की तीन पांडुलिपियां हैं जो पैगंबर के दामाद और खलीफा उस्मान से जुड़ी हैं।
(1) ताशकंद, उज्बेकिस्तान में स्थित समरकंद पांडुलिपि। यह एक चर्मपत्र पर लिखा है जो बारहसिंघा का है। संयुक्त राष्ट्र की एक शाखा, मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड प्रोग्राम, यूनेस्को के अनुसार, 'यह निश्चित संस्करण है, जिसे उस्मान के मुस्हफ के रूप में जाना जाता है, जो अन्य सभी संस्करणों से ऊपर है।'[3]
एक जर्मन विद्वान श्री वॉन डेनफर पांडुलिपि के बारे में लिखते हैं:
“यह इमाम पांडुलिपि (खुद उस्मान द्वारा रखी गई प्रति के लिए इस्तेमाल किया गया नाम) या उस्मान के समय बनाई गई अन्य प्रतियों में से एक हो सकता है।”[4]
(2) टोपकापी पैलेस संग्रहालय।[5]
(3) तीसरी पांडुलिपि अल-हुसैन मस्जिद, काहिरा, मिस्र में रखी गई है और इसे नीचे देख सकते हैं।
श्री वॉन डेनफर इसके बारे में लिखते हैं:
“...इस बात की बहुत संभावना है कि इसे उस्मान के मुस्हफ से कॉपी किया गया हो।”[6]
निष्कर्ष
इस भाग को श्री वॉन डेनफ़र की टिप्पणियों के साथ समाप्त करना सबसे अच्छा होगा:
“दूसरे शब्दों में, क़ुरआन की दो प्रतियां जो मूल रूप से खलीफा उस्मान के समय में तैयार की गई थीं आज भी हमारे लिए उपलब्ध हैं और जो चाहे इनके पाठ और व्यवस्था की तुलना क़ुरआन की किसी भी अन्य प्रति से कर सकता है, चाहे वह प्रिंट या हस्तलेखन में हो या किसी भी स्थान या समय का हो। वे समान पाए जाएंगे।”[7]
साक्ष्य की क़ुरआन कंठस्थ द्वारा संरक्षित है
अल्लाह ने क़ुरआन को याद रखना आसान बना दिया है:
“और हमने सरल कर दिया है क़ुरआन को शिक्षा के लिए। तो क्या, है कोई शिक्षा ग्रहण करने वाला?” (क़ुरआन 54:17)
जिस सहजता से क़ुरआन को कंठस्थ किया जाता है, वह अतुलनीय है। दुनिया में एक भी ग्रंथ या धार्मिक ग्रंथ ऐसा नहीं है जिसे याद करना इतना आसान हो, यहां तक कि गैर-अरब भी क़ुरआन को आसानी से याद कर सकते हैं। शायद ही लोग पूरी बाइबल को कंठस्थ कर पाते हैं, जबकि पूरा क़ुरआन लगभग हर इस्लामी विद्वान और लाखों आम मुसलमानों द्वारा पीढ़ी दर पीढ़ी कंठस्थ किया जाता है। लगभग हर मुसलमान क़ुरआन के कुछ हिस्से को प्रार्थनाओं में पढ़ने के लिए याद करता है। पारंपरिक रूप से क़ुरआन में महारत हासिल करने के लिए निम्नलिखित कदम उठाए जाते हैं:
पहला, क़ुरआन को बच्चे, पुरुष और महिलाएं काफी कम उम्र में याद करते हैं। इस प्रक्रिया में आमतौर पर 2-4 साल लगते हैं।
दूसरा, केवल क़ुरआन को याद करना ही काफी नहीं है। क़ुरआन सिर्फ शब्द नहीं है, बल्कि ध्वनि और अर्थ भी है। क़ुरआन को ठीक उसी तरह से पढ़ना चाहिए जिस तरह से इसे 1400 साल पहले अल्लाह के पैगंबर ने पढ़ा था। इसे उसी तरह से पढ़ना चाहिए जिस तरह से इसे अल्लाह ने प्रकट किया था। 1400 साल पुरानी एक ठोस परंपरा के तहत एक गुरु के अधीन रह कर इसके पाठ (तजवीद) मे महारत हासिल कि जाती है, एक ऐसी 'अटूट श्रृंखला' जो अल्लाह के पैगंबर के समय से चली आ रही है। इस प्रक्रिया में आमतौर पर 3-6 साल लगते हैं। महारत हासिल करने और त्रुटियों की जांच के बाद, एक व्यक्ति को एक औपचारिक लाइसेंस (इजाज़ा) दिया जाता है यह प्रमाणित करते हुए कि उसने पाठ के नियमों में महारत हासिल कर ली है और अब वह क़ुरआन को उसी तरह से पढ़ सकता है जिस तरह से इसे अल्लाह के पैगंबर मुहम्मद ने पढ़ा था।
एक गैर-मुस्लिम प्राच्यविद् एटी वेल्च लिखते हैं:
“मुसलमानों के लिए क़ुरआन सामान्य पश्चिमी अर्थों में शास्त्र या पवित्र साहित्य से कहीं अधिक है। सदियों से इसका प्राथमिक महत्व इसके मौखिक रूप में रहा है, लगभग बीस वर्षों की अवधि में मुहम्मद द्वारा अपने अनुयायियों के लिए "पाठ" के रूप में, जिस रूप में यह पहली बार प्रकट हुआ था... रहस्योद्घाटन को मुहम्मद के कुछ अनुयायियों द्वारा उनके जीवनकाल के दौरान याद किया गया था, और एक मौखिक परंपरा जो इस प्रकार स्थापित की गई थी, इसका एक निरंतर इतिहास रहा है, कुछ मायनों में लिखित क़ुरआन से अलग और श्रेष्ठ... सदियों से पूरे क़ुरआन की मौखिक परंपरा को पेशेवर पाठक (कुर्रा) द्वारा बनाए रखा गया है। कुछ समय पहले तक, पश्चिम में क़ुरआन के पाठ के महत्व को शायद ही कभी पूरी तरह से सराहा गया हो।”[8]
न केवल क़ुरआन के शब्दों को संरक्षित किया गया है, बल्कि उन शब्दों की मूल ध्वनियों को भी संरक्षित किया गया है। किसी अन्य धार्मिक पाठ को इस तरह से संरक्षित नहीं किया गया है - एक ऐसा दावा जिसे कोई भी वस्तुनिष्ठ पाठक अपने लिए सत्यापित कर सकता है। इस प्रकार, क़ुरआन सदियों से अपने संरक्षण के तरीके में अद्वितीय है जैसा कि स्वयं पैगंबर ने बताया और अल्लाह ने वादा किया था।
टिप्पणी
फुटनोट:
[1]एक जर्मन विद्वान अहमद वॉन डेनफर द्वारा 'उलुम अल-क़ुरआन', पृष्ठ 43।
[2]गहन विश्लेषण के लिए, कृपया ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के विद्वान डॉ. मुस्तफा अल-आज़मी द्वारा एक उत्कृष्ट कार्य देखें, "द हिस्ट्री ऑफ कुरानिक टेक्स्ट फ्रॉम रिवीलेशन टू कंपाइलेशन: ए कम्पेरेटिव स्टडी विद द ओल्ड एंड न्यू टेस्टामेंट्स"।
आई. मेंडेलसोन, "द कोलंबिया यूनिवर्सिटी कॉपी ऑफ द समरकंद कुफिक कुरान", द मोस्लेम वर्ल्ड, 1940, पृष्ठ 357-358.
ए. जेफ़री और आई. मेंडेलसोन, "द ऑर्थोग्राफ़ी ऑफ़ द समरक़ंद क़ुरान कोडेक्स", जर्नल ऑफ़ द अमेरिकन ओरिएंटल सोसाइटी, 1942, संस्करण 62, पृष्ठ 175-195।
[4]अहमद वॉन डेनफ़र द्वारा लिखित 'उलुम अल-कुरान', पृष्ठ 63।
[5]संग्रहालय की वेबसाइट http://www.ee.bilkent.edu.tr/%7Ehistory/topkapi.html
[6]अहमद वॉन डेनफ़र द्वारा लिखित 'उलुम अल-कुरान', पृष्ठ 62।
[7] अहमद वॉन डेनफ़र द्वारा लिखित 'उलुम अल-कुरान', पृष्ठ 64।
[8]इस्लाम का विश्वकोश, 'दी क़ुरआन इन मुस्लिम लाइफ एंड थॉट।'
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