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क़ुरआन की सबसे महानतम आयत की सरल व्याख्या: आयतुल कुर्सी

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विवरण: यह पाठ आयतुल कुर्सी को याद करने और इसके अर्थ को समझने में सहायक है।

द्वारा Imam Mufti

प्रकाशित हुआ 08 Nov 2022 - अंतिम बार संशोधित 07 Nov 2022

प्रिंट किया गया: 24 - ईमेल भेजा गया: 0 - देखा गया: 1,593 (दैनिक औसत: 4)


आवश्यक शर्तें

·अल्लाह पर विश्वास (2 भाग)

उद्देश्य

·सरल भाषा में आयतुल कुर्सी का अनुवाद और व्याख्या सीखना।

अरबी शब्द

·तौहीद - प्रभुत्व, नाम और गुणों के संबंध में और पूजा की जाने के अधिकार में अल्लाह की एकता और विशिष्टता।

·नमाज - आस्तिक और अल्लाह के बीच सीधे संबंध को दर्शाने के लिए अरबी का एक शब्द। अधिक विशेष रूप से, इस्लाम में यह औपचारिक पाँच दैनिक प्रार्थनाओं को संदर्भित करता है और पूजा का सबसे महत्वपूर्ण रूप है।

·सूरह - क़ुरआन का अध्याय।

·कुर्सी - कुर्सी

आयतुल कुर्सी

आयतुल कुर्सी[1], क़ुरआन की सबसे महानतम आयत, सूरह अल-बकरा की 255 वीं आयत है। इसे पढ़ने पर बड़ी कृपा होती है। पैगंबर (उन पर अल्लाह की दया और आशीर्वाद हो) ने हमें हर अनिवार्य नमाज के बाद और सोने से पहले इसे पढ़ने का निर्देश दिया है। आयतुल कुर्सी शैतान के खिलाफ सबसे शक्तिशाली सुरक्षा है।

पाठ, लिप्यंतरण, अनुवाद और व्याख्या

“अल्लाहु ला इलाहा इल्लाहू अल हय्युल क़य्यूम ला तअ’खुज़ुहू सिनतुव वला नौम लहू मा फिस सामावाति वमा फ़िल अर्ज़ मन ज़ल लज़ी यश फ़ऊ इन्दहू इल्ला बि इजनिह यअलमु मा बैना अयदी हिम वमा खल्फहुम वला युहीतूना बिशय इम मिन इल्मिही इल्ला बिमा शा..अ वसिअ कुरसिय्यु हुस समावति वल अर्ज़ वला यऊ दुहू हिफ्ज़ुहुमा वहुवल अलिय्युल अज़ीम” (क़ुरआन 2:255)

اللّهُلاَإِلَـهَإِلاَّهُوَ

अल्लाहु ला इलाहा इल्लाहू

अल्लाह के सिवा कोई पूज्य नहीं

यह तौहीद अल-उलुहिया की पुष्टि है, कि उसके अलावा कोई ईश्वर नही है। उसके सिवा कोई पूजा का पात्र नहीं है। उसके अलावा या उसके साथ किसी की भी पूजा नहीं की जानी चाहिए। यही हमारे जीवन का उद्देश्य है और यही कारण है कि अल्लाह ने पैगंबरो को भेजा और पुस्तकें भेजीं। और अंत में, यह वह पहलू है जिसके बारे में हमें न्याय के दिन आंका जाएगा।

الْحَيُّالْقَيُّومُ

अल हय्युल क़य्यूम

वह जीवित तथा नित्य स्थायी है

पूर्ण शाश्वत जीवन का स्वामी, जो जीवन से पहले था और उसका अस्तित्व कभी समाप्त नहीं होगा। वह पहला है जिसकी शुरुआत नहीं हुई, और अंत तक रहेगा बिना समाप्ति के। उसके पहले या बाद में कुछ भी नहीं है। वह पूरे ब्रह्मांड को जीवन देता है, लेकिन कोई भी उसे जीवन नहीं देता है। उत्तम जीवन का अर्थ है कि उनके पास श्रवण, दृष्टि, शक्ति और ज्ञान जैसे उत्तम गुण हैं। उनका जीवन मानव जीवन जैसा नहीं है।

अल्लाह आत्मनिर्भर है जो बाकी सब का पालन-पोषण करता है। वह न तो बदलता है और न ही मिटता है। अल्लाह के बिना सृष्टि का अस्तित्व नहीं हो सकता।

अल्लाह के सिवा पूजी जाने वाली हर चीज़ न तो हमेशा रहने वाली है और न ही सृष्टि उस पर निर्भर है। बल्कि, वे अपने भरण-पोषण के लिए अल्लाह पर निर्भर हैं।

لاَتَأْخُذُهُسِنَةٌوَلاَنَوْمٌ

ला तअ’खुज़ुहू सिनतुव वला नौम

उसे ऊंघ तथा निद्रा नहीं आती।

नींद और ऊंघ निर्मित प्राणियों पर हावी हो जाती है, लेकिन रचयिता न तो सोता है और न ही वह ऊंघता है। वह न थकता है और न विश्राम करता है। सृष्टि के विपरीत, वह ऐसे दोषों से मुक्त है। उसका होना परिपूर्ण है। उसके पास पूर्णता और महिमा का गुण है।

لَّهُ مَافِيالسَّمَاوَاتِوَمَا فِيالأَرْضِ

लहू मा फिस सामावाति वमा फ़िल अर्ज़

आकाश और धरती में जो कुछ है, सब उसी का है

उनमें से और उनके बीच जो कुछ है, वह अल्लाह का है। वह परमप्रधान, प्रदाता, राजा, नियामक है। सारी सृष्टि उसके राज्य की प्रजा है, और वह उनके साथ जो चाहे कर सकता है। अल्लाह के अलावा पूजी जाने वाली वस्तुओं का किसी भी चीज़ पर कोई नियंत्रण नहीं है और न ही प्रभुत्व है।

مَن ذَاالَّذِييَشْفَعُعِنْدَهُإِلاَّبِإِذْنِهِ

मन ज़ल लज़ी यश फ़ऊ इन्दहू इल्ला बि इजनिह

कौन है, जो उसके पास उसकी अनुमति के बिना अनुशंसा (सिफ़ारिश) कर सके?

कोई भी अल्लाह की अनुमति और प्रसन्नता के बिना किसी की ओर से हस्तक्षेप और किसी की वकालत नहीं कर सकता है। हर चीज पर अल्लाह का पूरा नियंत्रण है। मध्यस्थता अल्लाह की कृपा और दया से है और न्याय के दिन केवल उन लोगों के लिए आरक्षित है जिन्हें अल्लाह मध्यस्थता करने की अनुमति देगा, जैसे पैगंबर और धर्मी लोग। जो लोग अल्लाह की मध्यस्थता के लिए पूजा करते हैं, उन्हें मध्यस्थता करने का कोई अधिकार नहीं है।

يَعْلَمُمَا بَيْنَأَيْدِيهِمْوَمَاخَلْفَهُمْ

यअलमु मा बैना अयदी हिम वमा खल्फहुम

जो कुछ उनके समक्ष और जो कुछ उनसे ओझल है, सब जानता है

वह अपनी रचना की स्थिति जानता है। वह जानता है कि क्या था, क्या है और क्या होगा। वह जानता है कि क्या छिपा है और क्या प्रकट है। वह जानता है कि उसके प्राणियों ने क्या हासिल किया और क्या खोया। वह जानता है कि उन्होंने अतीत में क्या किया और भविष्य में वे क्या करेंगे। वह जानता है कि वे क्या छिपाते हैं और क्या दिखाते हैं। अल्लाह के ज्ञान से कुछ भी नहीं बचता। कुछ भी अल्लाह को भ्रमित नहीं करता है। अल्लाह का ज्ञान असीम है, जबकि सृष्टि सीमित है।

وَلاَيُحِيطُونَبِشَيْءٍمِّنْعِلْمِهِإِلاَّبِمَا شَاء

वला युहीतूना बिशय इम मिन इल्मिही इल्ला बिमा शा

उसके ज्ञान में से वही जान सकते हैं, जिसे वह चाहे।

अल्लाह ने इंसानों को ज्ञान का वरदान दिया है, लेकिन मानव ज्ञान कितना भी आगे बढ़ जाये वह दिव्य ज्ञान की तुलना में समुद्र में एक बूंद के बराबर ही रहेगा। मनुष्य स्वयं को पूर्ण रूप से नही जान सकता, तो वे अनदेखी दुनिया के ज्ञान को समझने की कल्पना कैसे कर सकता है? सृष्टि में से कोई भी अनदेखी दुनिया के बारे में कुछ भी नहीं जानता, सिवाय उन पैगंबरो के जिन्हें इसके बारे में कुछ ज्ञान दिया गया था।

وَسِعَكُرْسِيُّهُالسَّمَاوَاتِوَالأَرْضَ

वसिअ कुरसिय्यु हुस समावति वल अर्ज़

उसकी कुर्सी आकाश तथा धरती को समोये हुए है।

जिस प्रकार ईश्वरीय ज्ञान में समस्त सृष्टि समाहित है, उसी प्रकार कुर्सी में सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड समाहित है। यही अल्लाह की महानता है।

وَلاَيَؤُودُهُحِفْظُهُمَا

वला यऊ दुहू हिफ्ज़ुहुमा

उन दोनों की रक्षा उसे नहीं थकाती।

कुछ भी उसे कमजोर नहीं करता है। बड़ा हो या छोटा, आसान हो या मुश्किल, कम हो या ज्यादा, महान हो या विनम्र - अल्लाह सबकी हिफाजत करता है और ऐसा करने में जरा भी नहीं थकाता है।

وَهُوَالْعَلِيُّالْعَظِيمُ

वहुवल अलिय्युल अज़ीम

वही सर्वोच्च, महान है।

अल्लाह सर्वोच्च है; उसके ऊपर कुछ भी नहीं है, और कुछ भी उसके समान नहीं है। परमप्रधान सभी विवरण और समझ से ऊपर है। अल्लाह महिमा और पवित्रता, पूर्णता और वैभव, सुंदरता और भव्यता का स्वामी है। अल्लाह से बड़ा कुछ नहीं है क्योंकि अल्लाह सर्वोच्च, महान है।



फुटनोट:

[1] अल-कुरसी का छंद (क़ुरआन 2:255)

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