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इस्लाम के स्तंभों और आस्था के अनुच्छेदों का परिचय (2 भागो का भाग 2)

  

विवरण: इस्लाम की आवश्यक शिक्षाएँ पाँच सिद्धांतों पर आधारित हैं, जिन्हें 'इस्लाम के पाँच स्तंभ' कहा जाता है, और छह मूलभूत मान्यताएँ, जिन्हें 'आस्था के छह अनुच्छेद' के रूप में जाना जाता है। भाग 2: आस्था के छह अनुच्छेद और और इसमें क्या-क्या शामिल है।

द्वारा Imam Mufti

प्रकाशित हुआ 08 Nov 2022 - अंतिम बार संशोधित 07 Nov 2022

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श्रेणी: पाठ > इस्लामी मान्यताएं > आस्था के अनुच्छेद


आवश्यक शर्तें

·       आस्था की गवाही।

उद्देश्य

·       बुनियादी मान्यताओं यानी 'आस्था के छह अनुच्छेद' और इसमें क्या-क्या शामिल है।

अरबी शब्द

·       सुन्नत - अध्ययन के क्षेत्र के आधार पर सुन्नत शब्द के कई अर्थ हैं, हालांकि आम तौर पर इसका अर्थ है जो कुछ भी पैगंबर ने कहा, किया या करने को कहा।

·       ईमान - आस्था, विश्वास या दृढ़ विश्वास।

आस्था के छह अनुच्छेद

आस्था को अरबी में ईमान कहा जाता है। यह हृदय में दृढ़ विश्वास का प्रतिनिधित्व करता है, अंध विश्वास का नही। इस्लामी सिद्धांत पैगंबर द्वारा वर्णित छह पहलुओं के इर्द-गिर्द घूमता है।

1. अल्लाह में विश्वास, जिसमें निम्नलिखित शामिल हैं:

(i)   अल्लाह के अस्तित्व में विश्वास।

(ii)  अल्लाह ही ईश्वर है। वह सृष्टिकर्ता, प्रदाता, पालनकर्ता और संपूर्ण ब्रह्मांड का स्वामी है। इन भूमिकाओं में किसी और का कोई हिस्सा नहीं है।

(iii) केवल अल्लाह ही पूजा का हकदार है। अल्लाह के अलावा या उसके साथ किसी और की पूजा, सेवा या वंदना नहीं की जानी चाहिए, चाहे वे पैगंबर, पुजारी, संत, देवदूत, मूर्ति या पत्थर हों।

(iv) अल्लाह के नाम और विशेषताएं सबसे सुंदर और उत्तम है, जिसकी तुलना किसी से नहीं की जा सकती। वह अद्वितीय, अलग और अपनी रचना के विपरीत है। उसमे कोई भी बुराई या कमी नही है।

2. स्वर्गदूतों में विश्वास, जिसमें निम्नलिखित शामिल हैं:

(i)   स्वर्गदूतों (अल्लाह की एक रचना) के अस्तित्व में विश्वास।

(ii)  यह विश्वास करना कि किसी भी प्रकार से इनकी पूजा नही की जानी चाहिए।

(iii) क़ुरआन और सुन्नत (पैगंबर मुहम्मद की शिक्षाएं) में जिन नामों से स्वर्गदूतों की पहचान की गई है उस पर विश्वास करना

(iv) अल्लाह द्वारा उनमें से प्रत्येक को सौंपे गए विशेष कार्यों पर विश्वास करना जैसा की क़ुरआन और सुन्नत (पैगंबर मुहम्मद की शिक्षाएं) मे बताया गया है।

3. प्रकट ग्रंथों में विश्वास, जिसमें निम्नलिखित शामिल हैं:  

(i)   यह विश्वास करना कि अल्लाह ने विभिन्न पैगम्बरों को ग्रंथ दिए।

(ii)  यह विश्वास करना कि उनमें अल्लाह की ओर से सच्चाई है।

(iii) यह विश्वास करना कि क़ुरआन के अलावा पहले के अन्य सभी ग्रंथों को बदल दिया गया है।

(iv) क़ुरआन पर विश्वास करने के कई पहलू हैं:

a) यह विश्वास करना कि यह अल्लाह के ग्रंथों में से एक है।

b) यह विश्वास करना कि यह मानवता के लिए अंतिम रहस्योद्घाटन है, और इसके बाद कोई अन्य ग्रन्थ प्रकट नहीं किया जाएगा।

c) यह विश्वास करना कि इसमें सब कुछ सत्य है, और कुछ भी असत्य नही है।

d) यह विश्वास करना कि इसमें कुछ भी बदलाव नही हुआ है, और अनंत काल तक ऐसा ही रहेगा।

e) यह विश्वास करना कि क़ुरआन पहले के सभी ग्रंथो को समाप्त कर दिया है।

4. दूतों में विश्वास, जिसमें निम्नलिखित शामिल हैं:

(i)    यह विश्वास कि अल्लाह ने हर राष्ट्र में पैगंबर भेजे, उन्हें केवल अल्लाह की पूजा करने और आज्ञा मानने के लिए कहा गया। उनमें से (ज्ञात या अज्ञात) किसी को भी अस्वीकार किए बिना सभी में विश्वास करना चाहिए।

(ii)   यह विश्वास करना कि वे सर्वश्रेष्ठ मानव थे और अपने गुणों के कारण चुने गए थे।

(iii) यह विश्वास करना कि वे केवल मनुष्य थे और किसी भी तरह से दैवीय नही थे, और उनकी पूजा नही की जानी चाहिए और न ही उन्होंने ऐसा करने को कहा था।

(iv) यह विश्वास करना कि उन्होंने केवल अल्लाह की ओर से संदेश दिया और अपनी ओर से कानून नहीं बनाया।

(v)   यह विश्वास करना कि उन्होंने संदेश देने में कोई गलती नहीं की।

(vi) यह विश्वास करना कि उनकी आज्ञाकारिता आवश्यक है।

(vi) यह विश्वास करना कि मुहम्मद (उन पर अल्लाह की दया और आशीर्वाद हो) एक पैगंबर थे, इसमे वो सभी बाते शामिल हैं जिसकी चर्चा "आस्था की गवाही" नामक पाठ में की गई है।

5. मृत्यु के बाद के जीवन मे और न्याय के अंतिम दिन मे विश्वास, जिसमें निम्नलिखित शामिल हैं:

(i)   यह विश्वास करना कि एक दिन आएगा जब सब कुछ समाप्त हो जाएगा, और अल्लाह सृष्टि को फिर से खड़ा करेगा और उनके कर्मों के अनुसार उनका न्याय करेगा।

(ii) यह विश्वास करना कि जो लोग विश्वास करते थे और व्यावहारिक रूप से पैगंबरो के आदेशों का पालन करके सही धर्म का पालन करते थे, वे अनंत काल के लिए स्वर्ग में प्रवेश करेंगे, और जो लोग इनकार करते थे वे अनंत काल के लिए नर्क में प्रवेश करेंगे।

6.       ईश्वरीय आदेश में विश्वास, जिसमें निम्नलिखित शामिल हैं:

(i)   यह विश्वास करना कि अल्लाह का पूर्वज्ञान पूर्ण है और इसमें सब कुछ शामिल है। वह मानव जाति के निर्माण के पहले से ही सब कुछ जानता है की क्या होगा और क्या नहीं होगा।

(ii)  यह विश्वास करना कि अल्लाह ने "द मदर ऑफ द बुक्स" या "द प्रिजर्व्ड टैबलेट" नामक पुस्तक में न्याय के दिन तक होने वाली हर चीज को दर्ज किया है।

(iii) यह विश्वास करना कि जो कुछ भी अल्लाह ने चाहा है वह हुआ है, हो रहा है, और होगा। उसकी मर्जी के विरुद्ध या उसकी मर्जी के बिना कुछ भी नहीं होता है।

(iv) सब कुछ अल्लाह ने बनाया है।

हमने यहां इन छह श्रेणियों में से प्रत्येक में आस्था की न्यूनतम आवश्यकताओं का उल्लेख किया है जिन पर मुसलमान विश्वास करते हैं, और जैसा कि पैगंबर ने उल्लेख किया है कि ये अनुच्छेद इस्लामी विश्वास और आस्था का आधार हैं।

आगे आने वाले पाठों में हम इस्लाम के पांच स्तंभों और आस्था के छह अनुच्छेदों में से प्रत्येक का विस्तार से अध्ययन करके आवश्यक शिक्षाओं के बारे मे जानेंगे।

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