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मीडिया स्टीरियोटाइपिंग को समझना

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विवरण: मीडिया स्टीरियोटाइपिंग का संक्षिप्त विवरण, यह कैसे काम करता है और यह कैसे पक्षपात का प्रसार करता है। मीडिया स्टीरियोटाइपिंग के नकारात्मक प्रभावों से निपटने के सुझाव।

द्वारा Aisha Stacey (© 2017 IslamReligion.com)

प्रकाशित हुआ 08 Nov 2022 - अंतिम बार संशोधित 07 Nov 2022

प्रिंट किया गया: 19 - ईमेल भेजा गया: 0 - देखा गया: 1,375 (दैनिक औसत: 3)


उद्देश्य

·'स्टीरियोटाइप' और 'मीडिया स्टीरियोटाइपिंग' शब्द का अर्थ समझना।

·मीडिया स्टीरियोटाइपिंग से निपटने के लिए रणनीतियां सीखना।

स्टीरियोटाइप क्या है?

Understanding-Media-Stereotyping.jpgस्टीरियोटाइप एक सामान्यीकरण है जिसका उपयोग लोगों के समूह का वर्णन या अंतर करने के लिए किया जाता है और वे सभी बुरे नहीं होते हैं। हालांकि, स्टीरियोटाइपिंग के साथ समस्या यह है कि वे आमतौर पर अतिरंजना या अतिसरलीकरण करते हैं जिससे कुछ लोग अपर्याप्त ज्ञान या समझ के आधार पर दूसरों को आंकते हैं। इसके परिणामस्वरूप विकृत या अधूरी जानकारी को तथ्य मान लिया जाता है।

हम सभी एक पक्षपाती दृष्टिकोण से शुरू करते हैं क्योंकि हमारे पास दुनिया के बारे में केवल एक ही दृष्टिकोण है; हम केवल वही देख सकते हैं जो हमारी आंखों के सामने है, जो हमारे आसपास है उसे सुन सकते हैं और जो हमारे सामने है उसे समझ सकते हैं। इसलिए, जब चीज़ें हमे स्टीरियोटाइपिंग के साथ प्रस्तुत की जाती है तो हम वही देखते हैं जो हम देखने की उम्मीद करते हैं। और हमारी प्रवृत्ति दूसरों की विशेषताओं को तब तक मोड़ने और विकृत करने की होती है जब तक कि वे हमारे स्टीरियोटाइप मे फिट न हो जाएं।

स्टीरियोटाइपिंग उपयोगी हो सकती है; यह हमें दुनिया में खुद को खोजने में मदद करता है और यह हमें हमारी जाति, वर्ग, लिंग, धर्म, या संस्कृति आदि का निर्धारण करने में मदद करता है। जैसे-जैसे हम बड़े होते जाते हैं, हमें अपने स्वयं के पक्षपात से आगे बढ़ना चाहिए ताकि महत्वपूर्ण विचार कौशल का उपयोग करके अधिक संतुलित राय बना सकें। हम जानकारी को संसाधित करना सीखते हैं और अनुभव और ज्ञान से निष्कर्ष निकालते हैं। मीडिया स्टीरियोटाइपिंग के साथ समस्या यह है कि दर्शक जितनी जानकारी को आसानी से संसाधित कर सकते हैं उसकी तुलना मे कहीं अधिक जानकारी दी जाती है। हम तब कल्पना से तथ्य को अलग करने मे असमर्थ होते हैं क्योंकि अन्य लोगों के पक्षपाती विचारों को निर्विवाद सत्य के रूप में प्रस्तुत किया जाता है। मनुष्य अपने आस-पास की दुनिया को साफ-सुथरे छोटे समूहों में वर्गीकृत करना चाहता है, और उसे ऐसा करने की जरुरत भी है क्योंकि यह हमें दुनिया में अपना स्थान निर्धारित करने मे मदद करता है और मीडिया इस जरूरत मे स्टीरियोटाइपिंग लाभ उठाता है।

मीडिया स्टीरियोटाइपिंग

मीडिया लोगों को ऐसे तरीकों से परिभाषित करने के लिए स्टीरियोटाइपिंग का उपयोग करता है जो दर्शकों या पाठकों के लिए वर्गीकृत करना आसान है। ये मीडिया स्टीरियोटाइप लोगों के समूहों को बिना किसी वास्तविक विविधता, गहराई या जटिलता के एक आयाम में कम कर देते हैं। और जब मीडिया निरंतर स्टीरियोटाइपिंग में लगा रहता है, तो वे लोगों के कुछ समूहों का इस तरह से प्रचार करते हैं जो वास्तविकता से दूर होता है। आतंकवाद के खिलाफ युद्ध की शुरुआत से ही व्याप्त मुसलमानों की स्टीरियोटाइपिंग ने इस्लाम और मुसलमानों को वैश्विक मीडिया मे सबसे आगे ला दिया है। कवरेज मे नाटकीय रूप से वृद्धि हुई है और इस्लाम और मुसलमानों को बहुत बदनाम किया गया है।

आतंकवाद के खिलाफ युद्ध में शामिल बयानबाजी ने इस्लाम के प्रति भय और घृणा में वृद्धि की जिसके कारण मीडिया कवरेज में वृद्धि हुई, जिसमें अक्सर मुसलमानों को पिछड़ा हुआ ओर हिंसा करने वाला, और इस्लाम को स्वाभाविक रूप से समस्याग्रस्त बताया जाता है। 2014 मे स्टॉकहोम मे आयोजित एक इस्लामोफोबिया गोलमेज सम्मेलन के अनुसार, मीडिया और इंटरनेट पर इस्लाम और मुसलमानों का नियमित रूप से अपराध और आतंक के साथ संबंध का प्रचार इस्लामोफोबिया[1] के प्रसार के लिए महत्वपूर्ण है। मीडिया स्टीरियोटाइपिंग से पाठकों और दर्शकों मे यह धारणा बन जाती है कि आतंकवादी जो मुस्लिम होने का दावा करते हैं, वे सभी मुसलमानों और जीने के तरीके का प्रतिनिधित्व करते हैं। जब ये सामान्यीकरण दुनिया भर के संपूर्ण और विविध मुस्लिम समुदायों मे फैलता है, तो इसका परिणाम घृणास्पद भाषण, घृणा अपराध और भेदभाव के रूप में व्यापक मुस्लिम विरोधी भावनाओं में होता है।

इस्लाम और कुछ मुसलमानों की हरकतों में फर्क है और मुसलमान होने के नाते हम इसे देख और समझ सकते हैं। हालांकि, जिनका मुसलमानों के साथ कोई संपर्क या संबंध नहीं है, वे अंतर को देखने मे असमर्थ हैं, खासकर जब मीडिया दुनिया की घटनाओं को इस तरह से बताता है कि आतंकवादी और मुस्लिम शब्द एक दूसरे से संबंधित हैं। मुसलमानों को बदनाम किया जाता है और इस्लाम को एक हिंसक धर्म के रूप में चित्रित किया जाता है।[2] शब्दो का चयन करना मीडिया निर्माण का एक मूलभूत पहलू है और पक्षपात के प्रसार में योगदान देता है। असमान भाषा का उपयोग और नकारात्मक संदर्भों पर ध्यान देने से हमें वास्तविकता का एक ऐसा संस्करण मिलता है जो सत्य से बहुत दूर होता है।

मीडिया की स्टीरियोटाइपिंग को रोकने के लिए गैर-मुस्लिम क्या कर सकते हैं?

1.तथ्यों की जांच। आप जो कुछ भी पढ़ते या सुनते हैं उस पर विश्वास न करें। तथ्यों पर शोध करें।

2.अपनी भाषा पर ध्यान दें। इस्लामिक आतंकवाद या मुस्लिम आतंकवादी जैसे भावों का प्रयोग न करें।

3.जानकारी रखें। इस्लाम की मूल बातें सीखने का प्रयास करें।

4.एक मुसलमान से मिलें। काम पर या अपने पड़ोस में किसी मुसलमान के साथ बातचीत करने की कोशिश करें।

5.स्टीरियोटाइप को चुनौती दें। जब आप इस्लामोफोबिक टिप्पणियां सुनें तो उन्हें चुनौती दें।

6.विविधता का सम्मान करें। लेबल लगाने से बचें और लोगों को उनकी सांस्कृतिक प्रथाओं और रीति-रिवाजों का पालन करने दें।

मीडिया मे भाषा के उपयोग और भाषा कैसे सामाजिक वास्तविकताओं का निर्माण कर सकती है, इसके बारे में जानें।

मीडिया स्टीरियोटाइपिंग से निपटने के लिए मुसलमान क्या कर सकते हैं?

1.मीडिया और आम जनता को शिक्षित करने के लिए संसाधन प्रदान करें।

2.सामुदायिक केंद्रों और पुस्तकालयों में पर्चे और किताबें वितरित करें।

3.स्थानीय सरकार और मीडिया आउटलेट्स के साथ बैठकें आयोजित करें।

4.स्थानीय समाचार पत्रों के लिए पत्र और राय लिखें।

5.अपने स्थानीय मस्जिद या इस्लामी केंद्र में एक खुला दिन आयोजित करने में मदद करें।

6.गैर-मुस्लिमो को इस्लाम के व्याख्यान या मस्जिद की सभाओं के लिए आमंत्रित करें।

7.अपने गैर-मुस्लिम पड़ोसियों को अपने घर या अपने ईद समारोह में आमंत्रित करें।

8.सामाजिक न्याय के प्रति इस्लाम के समर्पण पर जोर देते हुए स्थानीय दान में शामिल हों।

9.सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल करें। मुसलमानों द्वारा अपने स्थानीय समुदायों में किए जा रहे असाधारण कार्यों का प्रचार करें।

10.मीडिया के साथ बातचीत करने के लिए मुस्लिम प्रवक्ताओं को प्रशिक्षित करें ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि टिप्पणियों को जानबूझकर संदर्भ से बाहर नहीं किया जा सके।

ब्रिटेन, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया के 15 साल और उससे अधिक उम्र के 1000 से अधिक युवा मुसलमानों ने साक्षात्कार में बताया कि इस्लाम और मुसलमानों के बारे में नकारात्मक वर्णन अनुचित, अपमानजनक और निराशाजनक है।[3] और यह कहना उचित है कि सभी उम्र के मुसलमान पीड़ित होते हैं जब वे लगातार अपने जीने के तरीके को बदनाम होते देखते हैं, या दुनिया भर में किए गए कई अत्याचारों के लिए उन्हें जिम्मेदार ठहराए जाने के बारे में पढ़ते हैं। विपरीत परिस्थितियों का सामना करते हुए मजबूत होने के लिए कहना बहुत आसान है लेकिन करना मुश्किल। ऊपर दिए गए सुझाव इस्लाम के बारे में फैले कई मिथकों को दूर करने में मदद करेंगे लेकिन इस बीच हमें धैर्य रखना होगा। हम निम्नलिखित तरीकों से अपने मानसिक और आध्यात्मिक कल्याण को सुदृढ़ कर सकते हैं:

1.ईश्वर से अपने संबंध को मजबूत करना; समय पर नमाज़ पढ़ें, बार-बार दुआ करें और ईश्वर के नामों का मनन करें।

2.पैगंबरो के धैर्य और सहनशीलता का अनुकरण करने का प्रयास करें जिन्होंने निश्चित रूप से आज की तुलना में अधिक कठिनाइयों का सामना किया था।

3.यह समझे कि सारी शक्ति और ताकत देने वाला केवल ईश्वर है; वह सबसे बुद्धिमान है और भविष्य देखने में सक्षम है।

4.निश्चिंत रहें कि यदि पैगंबर मुहम्मद (उन पर ईश्वर की दया और आशीर्वाद हो) हमारे बीच होते तो हम अपनी इस्लामी पहचान और प्रथाओं से शर्मिंदा नहीं होते।



फुटनोट:

[3] यूनिवर्सिटी ऑफ साउथ ऑस्ट्रेलिया का इंटरनेशनल सेंटर फॉर मुस्लिम एंड नॉन-मुस्लिम अंडरस्टैंडिंग ।

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