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इस्लामी वसीयत और विरासत (2 का भाग 1)
विवरण: वसीयत की परिभाषा और उन लोगों की सूची जो मृतक की संपत्ति से विरासत में पाने के हकदार हैं।
द्वारा Aisha Stacey (© 2017 NewMuslims.com)
प्रकाशित हुआ 08 Nov 2022 - अंतिम बार संशोधित 07 Nov 2022
प्रिंट किया गया: 6 - ईमेल भेजा गया: 0 - देखा गया: 629 (दैनिक औसत: 2)श्रेणी: पाठ > इस्लामी जीवन शैली, नैतिकता और व्यवहार
उद्देश्य
· शरिया आधारित वसीयत और विरासत के नियमों को समझना।
अरबी शब्द
· शरिया - इस्लामी कानून।
· सुन्नत - अध्ययन के क्षेत्र के आधार पर सुन्नत शब्द के कई अर्थ हैं, हालांकि आम तौर पर इसका अर्थ है जो कुछ भी पैगंबर ने कहा, किया या करने को कहा।
· हदीस - (बहुवचन - हदीसें) यह एक जानकारी या कहानी का एक टुकड़ा है। इस्लाम में यह पैगंबर मुहम्मद और उनके साथियों के कथनों और कार्यों का एक वर्णनात्मक रिकॉर्ड है।
· अल-वसियाह - यह इस्लामिक वसीयत का अरबी शब्द है। यह मृतक की संपत्ति का 1/3 भाग वितरित करता है। वसीयत मे उन वारिस को नहीं छोड़ना चाहिए जो वसीयत के हकदार हैं।
· महर - दहेज, दुल्हन का उपहार, जो एक आदमी अपनी पत्नी को देता है।
· इर्थ - विरासत कानून।
· वारिथ - वारिस या उत्तराधिकारी।
इस्लाम छिटपुट रूप से अभ्यास करने वाला धर्म नही है; यह जीवन के लिए एक मार्गदर्शक है। हर दिन और हर स्थिति में मुसलमान अल्लाह की पूजा करता है और वे क़ुरआन और पैगंबर मुहम्मद की सुन्नत मे निर्धारित मार्गदर्शन का पालन करके ऐसा करते हैं। आश्चर्य की बात नहीं है कि इस्लाम हमे बताता है कि मृत्यु आने पर और मृत्यु के समय कैसे व्यवहार करना है और यह बताता है कि हमारे मरने के बाद हमारे धन का निपटान कैसे किया जाए। मृत्यु एक ऐसी चीज है जिससे हम बच नहीं सकते। अपनी दौलत पर ध्यान देना और उसका निपटान करना और इसे इस्लामी रूप से स्वीकार्य तरीके से बांटना कुछ ऐसा है जो हर समझदार, वयस्क मुसलमान के लिए जरूरी है।
“जिस मुसलमान के पास वसीयत करने के लिए कुछ भी है उसका कर्तव्य है कि बिना वसीयत लिखे दो रातें न गुजारें।”[1]
वसीयत क्या है?
कभी-कभी जब कोई व्यक्ति इस शब्द को सुनता है तो क्या वे यह मान लेते हैं कि यह एक ऐसा दस्तावेज है जो किसी व्यक्ति की मृत्यु के बाद उसके धन को वितरित करता है। इस्लाम में धन को क़ुरआन और सुन्नत के निर्देशों के अनुसार सख्ती से वितरित किया जाता है। व्यक्ति सिर्फ यह चुन सकता है कि उसके धन का एक तिहाई किसे मिले। इस प्रकार जब कोई मुसलमान ~ वसीयत ~ शब्द का इस्तेमाल करता है तो उसका अर्थ धन के इस हिस्से के बारे मे होता है। इस्लाम मे वसीयत को अल-वसियाह कहते हैं। इस्लामी कानून किसी व्यक्ति को अपनी संपत्ति का कुछ हिस्सा उन लाभार्थियों को देने की अनुमति देता है जो उन लोगों में से नहीं हैं जो उसकी संपत्ति के अन्य दो तिहाई हिस्से के हकदार हैं। उत्तराधिकारियों को क़ुरआन के चौथे अध्याय मे स्पष्ट रूप से वर्णित किया गया है।
अपनी वसियत तैयार करने से पहले ध्यान से सोचने से आपको कई लोगों या संगठनों की मदद करने का मौका मिलता है। यह दान या किसी गरीब रिश्तेदार को कुछ देने का अवसर है जो अन्यथा विरासत में नही हैं। यह किसी अन्य धर्म के व्यक्ति या परिवार के सदस्य के लिए कुछ छोड़ने का एक आकस्मिक अवसर भी है जो विरासत के हकदार नही हैं। निम्नलिखित हदीस अल-वसियाह तैयार करने के महत्व की पुष्टि करता है।
“मनुष्य सत्तर वर्ष तक अच्छे कर्म करे, लेकिन यदि वह अपनी अन्तिम वसीयत अन्यायपूर्ण तरीके से बनाये, तो उसके कर्म की दुष्टता उस पर छाप दी जाएगी, और वह आग में प्रवेश करेगा। यदि, (दूसरी ओर), कोई व्यक्ति सत्तर वर्षों तक बुरे कर्म करे, लेकिन अपनी अंतिम वसीयत और वसीयतनामा मे न्याय करे, तो उसके कर्म की अच्छे उस पर छाप दी जाएगी, और वह स्वर्ग मे प्रवेश करेगा।”[2]
एक विश्वासी की मृत्यु के बाद चार कर्तव्य हैं जिनका पालन करने की आवश्यकता है।
1. अंतिम संस्कार के खर्च का भुगतान किया जाना चाहिए।
2. सभी ऋणों का भुगतान किया जाना चाहिए।
3. मृतक की पत्नी के किसी भी महर[3] का भुगतान किया जाना चाहिए।
4. अल-वसियाह के प्रावधानों को लागू किया जाना चाहिए।
5. शेष संपत्ति को शरीयत के कानूनों के अनुसार वितरित किया जाना चाहिए।
विरासत
विरासत एक मृतक की संपत्ति के कानूनी स्वामित्व का उसके उत्तराधिकारियों को हस्तांतरण है। क़ुरआन के चौथे अध्याय के ग्यारह और बारह छंद वे छंद हैं जिनसे इस्लामी विद्वान अल-वसियाह और विरासत के बारे में अधिकांश आवश्यक निर्देश प्राप्त करते हैं। इस्लाम में विरासत कानून को इर्थ कहा जाता है। जो व्यक्ति उत्तराधिकारी होता है उसे वारिथ कहा जाता है जिसका अर्थ है वारिस या उत्तराधिकारी।
उत्तराधिकारी कौन होते हैं?
एक मृत मुस्लिम की संपत्ति क़ुरआन और सुन्नत मे निर्धारित सिद्धांतों के अनुसार वितरित की जाती है। अगली पीढ़ी को धन देने के अलावा, अल्लाह ने फैसला किया है कि पिछली पीढ़ियों के लिए भी हिस्से हैं। वास्तव मे संपत्ति को दो पीढ़ी ऊपर और दो पीढ़ी नीचे वितरित कर सकते हैं। वंश वृक्ष मे कुछ ऐसे उत्तराधिकारी होते हैं जिनके कारण दूसरों को विरासत नही मिलती। उदाहरण के लिए, पुत्र होने पर मृतक के भाई-बहनों को विरासत नही मिलती। यह इस बात का एक प्रमुख उदाहरण है कि अल-वसियाह एक बहुत ही महत्वपूर्ण प्रावधान क्यों है। शायद मृतक अपनी बुज़ुर्ग बहन को कुछ देना चाहता है लेकिन अल-वसियाह मे लिखे बिना वह ऐसा नही कर सकता है।
एक सामान्य नियम के रूप में संपत्ति को निम्नानुसार विभाजित किया जाता है। इन्हें प्राथमिक उत्तराधिकारी माना जाता है। (क़ुरआन के छंद कोष्ठक मे दिए गए हैं।)
1. माता-पिता - यदि मृतक के बच्चे हैं, तो माता-पिता प्रत्येक को 1/6 भाग मिलेगा। यदि मृतक की कोई पत्नी या संतान नहीं है तो माता को 1/3 भाग और पिता को 2/3 भाग मिलेगा। यदि मृतक के भाई-बहन हैं, तो माता को 1/6 मिलेगा। (क़ुरआन 4:11)
2. पति - यदि पत्नी बिना संतान के मर जाती है तो पति को संपत्ति का 1/2 भाग मिलेगा। अगर पत्नी के बच्चे हैं, तो पति को 1/4 भाग मिलेगा। (क़ुरआन 4:12)
3. पत्नी। यदि पति बिना संतान के मर जाए, तो पत्नी को 1/4 भाग मिलेगा। यदि बच्चे हैं, तो पत्नी को 1/8 भाग मिलेगा। (क़ुरआन 4:12)
4. बेटियां। यदि मृतक की दो या दो से अधिक बेटियां हैं और कोई बेटा नहीं है, तो उन्हें कुल संपत्ति का 2/3 भाग मिलेगा । अगर केवल एक बेटी है और कोई बेटा नहीं है, तो उसे 1/2 भाग मिलेगा। (क़ुरआन 4:11)
5. पुत्र - यद्यपि क़ुरआन मे उत्तराधिकारियों के छंदो मे पुत्र का उल्लेख नहीं है, लेकिन वह सबसे महत्वपूर्ण उत्तराधिकारी है। पैगंबर मुहम्मद ने कहा, "अनिवार्य उत्तराधिकारियों को हिस्सा देने के बाद जो कुछ भी बचता है वह पुत्र का होता है। पुत्र का हिस्सा बेटी से दोगुना है (क़ुरआन 4:11)
फुटनोट:
[1] सहीह अल-बुखारी
[2] इमाम अहमद
[3] यह दूल्हे द्वारा दुल्हन को की जाने वाली राशि या कोई चीज़ होती है। इस्लाम में दहेज की कोई अवधारणा नहीं है, हालांकि कभी-कभी हिंदी शब्द "दहेज" का प्रयोग किया जाता है और यह भ्रामक हो सकता है। एक अधिक सटीक अनुवाद दुल्हन का उपहार है। यह दुल्हन की कोई कीमत नहीं लगाता बल्कि उसे आर्थिक सुरक्षा और सम्मान की भावना देता है।
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