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पैगंबर मुहम्मद की नैतिकता (2 का भाग 1)

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विवरण: पैगंबर मुहम्मद के पैगंबर बनने से पहले और बाद के चरित्र और नैतिकता पर दो भागो वाला पाठ।

द्वारा Imam Mufti (© 2016 NewMuslims.com)

प्रकाशित हुआ 08 Nov 2022 - अंतिम बार संशोधित 07 Nov 2022

प्रिंट किया गया: 18 - ईमेल भेजा गया: 0 - देखा गया: 1,194 (दैनिक औसत: 3)


उद्देश्य

·इस बात को समझना कि पैगंबर मुहम्मद सभी मनुष्यों के अनुसरण करने के लिए एक उदाहरण थे।

·अल्लाह द्वारा पैगंबर बनाए जाने से पहले उनके चरित्र के बारे मे जानना।

·पैगंबर मुहम्मद की ईमानदारी और धैर्य के बारे में जानना।

अरबी शब्द

·अमीन - भरोसेमंद।

·सादिक - सच्चा।

पैगंबर बनने से पहले

Morals-of-Prophet-part-1.jpgरहस्योद्घाटन मिलने से पहले पैगंबर एक भरोसेमंद और ईमानदार व्यक्ति थे। उन्होंने कभी किसी के साथ विश्वासघात नहीं किया, न ही झूठ बोला और न ही धोखा दिया। वह लोगों मे 'अल-अमीन', या 'विश्वसनीय' के रूप में जाने जाते थे। जब लोग यात्रा पे जाते थे तो उन्हें अपना कीमती सामान सौंप देते थे। उन्हें 'अस-सादिक' या 'सच्चा' के नाम से भी जाना जाता था क्योंकि उन्होंने कभी झूठ नहीं बोला। उनका स्वभाव अच्छा था, वो अच्छा बोलते थे और लोगों की मदद करना पसंद करते थे। लोग उनसे प्यार करते थे और उनका सम्मान करते थे और वो सुंदर शिष्टाचार के धनी थे। पैगंबर बनने से पहले, उन्होंने शराब नहीं पी, मूर्ति की नहीं की और न ही उसकी शपथ ली।

पैगंबर बनने के बाद

अल्लाह कहता है:

“तथा निश्चय ही आप बड़े सुशील हैं।” (क़ुरआन 68:4)

पैगंबर मुहम्मद (उन पर अल्लाह की दया और आशीर्वाद हो) सभी मनुष्यों के अनुसरण करने के लिए एक उदाहरण थे। उनकी पत्नी आयशा से उनके शिष्टाचार के बारे में पूछा गया, और उन्होंने कहा,

“उनके शिष्टाचार क़ुरआन थे।”

उनके कहने का मतलब था कि पैगंबर क़ुरआन के कानूनों, आदेशों और निषेधों का पालन करते थे। पैगंबर ने अपने बारे में कहा:

“अल्लाह ने मुझे अच्छे आचरण और अच्छे कर्म करने के लिए भेजा है।”[1]

मलिक के पुत्र अनस ने दस वर्ष तक पैगंबर की सेवा की थी। अनस दिन भर उनके साथ रहते और उनके तौर-तरीकों जानते थे। अनस बताते हैं:

“पैगंबर ने किसी की कसम नहीं खाई, न ही वह असभ्य थे, और न ही उन्होंने किसी को शाप दिया था। यदि वह किसी को डांटना चाहते, तो कहते: 'उसे क्या हुआ, उसके चेहरे पर धूल पड़ जाए!’”[2]

ईमानदारी और विश्वसनीयता

पैगंबर मुहम्मद अपनी ईमानदारी के लिए जाने जाते थे। मक्का के अधर्मी जो खुले तौर पर उनके शत्रु थे, अपना कीमती सामान उनके पास रखते थे क्योंकि उन दिनों बैंक नहीं होते थे। उनकी ईमानदारी की परीक्षा तब हुई जब मक्का के अन्यजातियों ने उनके साथ दुर्व्यवहार किया और उनके साथियों को प्रताड़ित किया और उन्हें उनके घरों से निकाल दिया। उन्होंने अपने चचेरे भाई अली को मदीना जाने की योजना को तीन दिनों के लिए स्थगित करने का आदेश दिया ताकि लोगों को उनके क़ीमती सामान वापस कर सकें।

उनकी ईमानदारी का एक और उदाहरण हुदैबियाह[3] के संघर्ष विराम में देखने को मिला। संधि की शर्तें यह थी कि जो कोई भी पैगंबर को छोड़ देगा, वह वापस उनके पास नहीं जाएगा, लेकिन जो व्यक्ति मक्का छोड़ेगा उन्हें वापस कर दिया जाएगा। अबू जंदल नाम का एक व्यक्ति मक्का के अन्यजातियों से बचने में कामयाब रहा और पैगंबर के साथ शामिल हो गया। मूर्तिपूजकों ने पैगंबर मुहम्मद से अपनी प्रतिज्ञा का सम्मान करने और आदमी को वापस करने के लिए कहा। अल्लाह के दूत ने कहा:

“ऐ अबू जंदल! धैर्य रखो और अल्लाह से धैर्य देने की प्रार्थना करो। अल्लाह निश्चित रूप से आपकी और उन लोगों की मदद करेगा जो सताए गए हैं और आपके लिए इसे आसान बना देगा। हमने उनके साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं, और हम निश्चित रूप से धोखा या विश्वासघात नहीं करते हैं।”[4]

धैर्य और सहनशीलता

अनस ने कहा:

“एक बार मैं अल्लाह के दूत के साथ जा रहा था, उस समय उन्होंने यमनी लबादा पहना हुआ था जिसमें खुरदुरे किनारों वाला कॉलर था। एक बेडौइन ने उन्हें जोर से पकड़ लिया। मैंने उनकी गर्दन के किनारे को देखा और देखा कि लबादे की धार उनकी गर्दन पर एक निशान छोड़ गई है। बेडौइन ने कहा, 'ऐ मुहम्मद! अल्लाह की दौलत मे से कुछ जो तुम्हारे पास है मुझे दे दो।' अल्लाह के दूत ने बेडौइन की ओर देखा, मुस्कुराये और आदेश दिया कि उसे (कुछ पैसे) दिए जाएं।”[5]

उनके धैर्य के एक और उदाहरण की कहानी है यहूदी रब्बी ज़ैद बिन सना। ज़ैद ने अल्लाह के दूत को क़र्ज़ के तौर पर कुछ दिया था। उसने खुद कहा,

“क़र्ज़ लौटाने से दो-तीन दिन पहले अल्लाह के दूत अंसार के एक आदमी की अंत्येष्टि में शामिल हो रहे थे। अबू बक्र, उमर, उस्मान और कुछ अन्य साथी पैगंबर के साथ थे। अंतिम संस्कार की प्रार्थना के बाद वह एक दीवार के पास बैठ गए, और मैं उनकी ओर गया, उन्हें उनके लबादे के किनारों से पकड़ लिया, और उन्हें कठोर तरीके से देखा, और कहा: 'ऐ मुहम्मद! क्या तुम मुझे मेरा कर्ज नहीं चुकाओगे? अब्दुल मुत्तलिब के परिवार कर्ज चुकाने में देरी नहीं करते!’

मैंने उमर इब्न अल-खत्ताब को देखा - उनकी आंखे गुस्से से फूल गईं थी! उसने मेरी तरफ देखा और कहा: 'अल्लाह के दुश्मन, क्या तुम उनके साथ ऐसा व्यवहार करते हो?! उसकी कसम जिसने इन्हे सत्य के साथ भेजा, यदि स्वर्ग मे प्रवेश न करने का भय न होता, तो मैं अपनी तलवार से तुम्हारा सिर काट देता! पैगंबर ने उमर को शांतिपूर्ण तरीके से देखा, और कहा: 'ऐ उमर, आपने जो किया वह करने के बजाय आपको हमें ईमानदारी से परामर्श देना चाहिए था! ऐ उमर, जाओ और इसे इसका कर्ज चुका दो, और इसे अतिरिक्त दो क्योंकि तुमने इसे डराया था!’”

ज़ैद ने कहा: "उमर मेरे साथ गए, और मेरा कर्ज चुकाया, और मुझे इसके अतिरिक्त बीस सा[6]खजूर दिए। मैंने उससे पूछा: 'यह क्या है?' उसने कहा: 'अल्लाह के दूत ने मुझे इसे देने का आदेश दिया है, क्योंकि मैंने तुम्हें डरा दिया था।'" ज़ैद ने फिर उमर से पूछा: "ऐ उमर, क्या तुम जानते हो कि मैं कौन हूं?" उमर ने कहा: "नहीं, मैं नहीं जनता - तुम कौन हो?" ज़ैद ने कहा: "मैं ज़ैद इब्न सना हूं।" उमर ने पूछा: "रब्बी?" ज़ैद ने उत्तर दिया: "हां, रब्बी।" उमर ने फिर उससे पूछा: "जो तुमने पैगंबर को कहा वो क्यों कहा और जो उनके साथ किया वह क्यों किया?" ज़ैद ने उत्तर दिया: "ऐ उमर, मैंने अल्लाह के दूत के चेहरे पर पैगंबरी की दो निशानियां छोड़कर सभी निशानियां देखे हैं - (पहला) उनका धैर्य और दृढ़ता उनके क्रोध से पहले है और दूसरा, कोई उनके प्रति जितना कठोर होता है, वह और अधिकत दयालु और अधिक धैर्यवान हो जाते हैं, और मैं अब संतुष्ट हूं। ऐ उमर, मैं आपको गवाह बनाता हूं कि मैं गवाही देता हूं और संतुष्ट हूं कि केवल अल्लाह के अलावा कोई सच्चा ईश्वर पूजा के योग्य नहीं है, और मेरा धर्म इस्लाम है और मुहम्मद मेरे पैगंबर हैं। मैं आपको इसका भी गवाह बनाता हूं कि मैं मदीना के सबसे धनी लोगों में से हूं और मैं अपनी आधी संपत्ति अल्लाह के लिए मुसलमानों को देता हूं।” उमर ने कहा: "आप अपने धन को सभी मुसलमानों में वितरित नहीं कर पाएंगे, इसलिए कहो, 'मैं इसे मुहम्मद के कुछ अनुयायियों को वितरित करूंगा।" ज़ैद और उमर दोनों अल्लाह के दूत के पास लौट आए। ज़ैद ने उनसे कहा: "मैं गवाही देता हूं कि केवल अल्लाह के अलावा कोई सच्चा ईश्वर पूजा के योग्य नहीं है, और यह कि मुहम्मद अल्लाह के दास और दूत हैं।" 'जैद ने पैगंबर पर विश्वास किया, और कई लड़ाइयां लड़ी और फिर ताबूक की लड़ाई मे दुश्मनो का सामना करते हुए मारे गए - अल्लाह ज़ैद पर दया करे।[7]

उनकी क्षमा और दृढ़ता का एक महान उदाहरण तब स्पष्ट होता है जब उन्होंने मक्का की विजय के बाद लोगों को क्षमा कर दिया। जब अल्लाह के दूत ने उन लोगों को इकट्ठा किया जिन्होंने ने पैगंबर और उनके साथियों को गालियां दी थी, नुकसान पहुंचाया था और यातनाएं दी थी, और उन्हें मक्का शहर से बाहर निकाल दिया था, तो पैगंबर ने कहा:

“तुम्हें क्या लगता है कि मैं तुम्हारे साथ क्या करूंगा?" उन्होंने उत्तर दिया: “आप कुछ हितकर ही करेंगे; आप एक दयालु और उदार भाई हैं, और एक दयालु और उदार भतीजे हैं!" पैगंबर ने कहा: "जाओ - तुम अपनी इच्छानुसार करने के लिए स्वतंत्र हो।”[8]



फुटनोट:

[1] सहीह अल-बुखारी

[2] सहीह अल-बुखारी

[3] हुदैबियाह मक्का के बाहर एक जगह है।

[4] बैहाकी

[5] सहीह अल-बुखारी

[6] एक प्राचीन अरब माप।

[7] इब्न हिब्बन

[8] बैहाकी

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