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अच्छी नैतिकता (2 का भाग 1)
विवरण: ये दो पाठ हमें बेहतर इंसान बनाने के लिए इस्लामी नैतिकता में विभिन्न प्रकार की अच्छी नैतिकता के बारे में बताएंगे।
द्वारा Imam Mufti (© 2015 IslamReligion.com)
प्रकाशित हुआ 08 Nov 2022 - अंतिम बार संशोधित 07 Nov 2022
प्रिंट किया गया: 2 - ईमेल भेजा गया: 0 - देखा गया: 334 (दैनिक औसत: 2)श्रेणी: पाठ > इस्लामी जीवन शैली, नैतिकता और व्यवहार > सामान्य नैतिकता और व्यवहार
उद्देश्य
· अच्छी नैतिकता के महत्व को समझना।
· 10 अच्छी इस्लामी नैतिकता सीखना।
परिचय
सबसे अच्छे विश्वासियों के बारे में पूछे जाने पर, पैगंबर मुहम्मद (उन पर अल्लाह की दया और आशीर्वाद हो) ने उत्तर दिया, "ये वो हैं जिनके पास सबसे अच्छा चरित्र और शिष्टाचार है।”[1]
अच्छा चरित्र न्याय के दिन किसी व्यक्ति के कर्मों के तराजू पर रखा जाने वाला सबसे भारी कर्म होगा।
पैगंबर मुहम्मद ने कहा, "कोई भी कर्म जो (न्याय के दिन) कर्मों के तराजू पर रखा जाएगा, वह अच्छे चरित्र से भारी नहीं होगा। वास्तव में, अच्छे चरित्र वाले व्यक्ति का पद स्वैच्छिक उपवास और स्वैच्छिक नमाज़ पढ़ने वाले लोगों के पद के समान होगा।”[2]
1. सच्चाई
इस्लाम सिखाता है कि सच्चाई ईमानदार जुबान से कहीं बढ़कर है। इस्लाम में, सच्चाई बाहरी और आंतरिक की अनुरूपता, जैसी सोच वैसा कार्य, विश्वास की बोली और उपदेश का अभ्यास है। जैसा कि पैगंबर मुहम्मद ने कहा:
“मैं तुम्हें सच्चा बनने का आदेश देता हूं, क्योंकि वास्तव में सच्चाई धार्मिकता की ओर ले जाती है, और वास्तव में धार्मिकता स्वर्ग की ओर ले जाती है। एक आदमी तब तक सच्चा बना रहता है और सच्चाई के लिए प्रयास करता रहता है जब तक कि ईश्वर उसे एक सच्चे व्यक्ति के रूप में न लिखा ले। और असत्य से सावधान रहो, क्योंकि असत्य ही पाप की ओर ले जाता है, और पाप नर्क की ओर। व्यक्ति तब तक झूठ बोलता रहता है और झूठ बोलने का प्रयास करता रहता है जब तक कि ईश्वर उसे झूठे व्यक्ति के रूप मे न लिख ले।”[3]
2. ईमानदारी और सत्यनिष्ठा
ईमानदारी मुस्लिम चरित्र का एक अनिवार्य घटक है, जिसमें ईमानदारी से अल्लाह की पूजा करके अल्लाह के प्रति सच्चा होना शामिल है; खुद के प्रति सच्चा होना, अल्लाह के नियमों का पालन करना; और सच बोलकर और सभी लेन-देन, जैसे खरीदना, बेचना और शादी में ईमानदार होकर दूसरों के साथ सच्चा होना। किसी को धोखा देना, बेईमानी करना, झूठ बोलना या जानकारी को छिपाना नहीं चाहिए, इस प्रकार एक व्यक्ति को अंदर से वैसा ही होना चाहिए जैसा वह बाहर से है।
क़ुरआन कहता है,
“विनाश है डंडी मारने वालों का। जो लोगों से नाप कर लें, तो पूरा लेते हैं। और जब उन्हें नाप या तोल कर देते हैं, तो कम देते हैं।” (क़ुरआन 83:1-3)
3. सहनशीलता
हालांकि मुसलमान अन्य वैचारिक प्रणालियों और धार्मिक हठधर्मिता से असहमत हो सकते हैं, लेकिन इसकी वजह से उन्हें गैर-मुस्लिमो के साथ सहिष्णु और सम्मानजनक बातचीत नहीं रोकनी चाहिए:
"और तुम वाद-विवाद न करो किताब के लोगो से, परन्तु ऐसी विधि से, जो सर्वोत्तम हो, उनके सिवा, जिन्होंने अत्याचार किया है उनमें से तथा तुम कहो कि हम ईमान लाये उसपर, जो हमारी ओर उतारा गया और उतारा गया तुम्हारी ओर तथा हमारा पूज्य और तुम्हारा पूज्य एक ही है और हम उसी के आज्ञाकारी हैं।" (क़ुरआन 29: 46)
इस्लाम ने अपने इतिहास के दौरान अन्य धर्मों के लोगों को उनके मार्ग का अनुसरण करने की अनुमति देकर उच्चतम स्तर की सहिष्णुता प्रदान की है, हालांकि उनकी कुछ प्रथाएं बहुसंख्यक धर्म के साथ संघर्ष में हो सकती हैं।
यहां तक उनके साथ भी, मुसलमानों को आम तौर पर मतभेदों के प्रति सहिष्णु होना चाहिए।
4. कृपालु और दयालु होना
दयालुता एक मुसलमान की पहचान है। अल्लाह अपने बारे में कहता है,
‘वास्तव में अल्लाह लोगों के लिए अत्यंत करुणामय तथा दयावान् है।’ (क़ुरआन 2:143)
अल्लाह ने पैगंबर मुहम्मद को क़ुरआन (9:128) में दयालु बताया है। अल्लाह के दूत ने कहा, "विश्वासी दयालु और विनीत होते हैं, क्योंकि जो न दयालु होता है और न कृपालु, उसमें कोई अच्छाई नहीं है। सबसे अच्छे लोग वे हैं जो दूसरों के लिए सबसे ज्यादा फायदेमंद होते हैं।”[4]
पैगंबर ने अपनी पत्नियों को भी दयालु होने की आज्ञा दी, "ऐ आयशा, अल्लाह दयालु है और वह सभी मामलों में दया को पसंद करता है।”[5]
5. विश्वसनीयता
पवित्र इस्लामी चरित्र का एक महत्वपूर्ण हिस्सा विश्वसनीय होना है। पैगंबरी मिलने से पहले भी पैगंबर मुहम्मद अल-अमीन (विश्वसनीय) के रूप मे जाने जाते थे। भरोसेमंद होने का अर्थ है ईमानदार, व्यवहार में निष्पक्ष और समय का पाबंद होना, साथ ही भरोसे का सम्मान करना और वादों और प्रतिबद्धताओं को निभाना।
पैगंबर मुहम्मद ने कहा,
“अल्लाह कहता है, 'न्याय के दिन तीन प्रकार के लोग ऐसे होंगे जिनका मै विरोधी बनूंगा: एक वह जिसे मेरे नाम पर कुछ दिया गया और फिर उसने विश्वासघात किया; एक वह जो एक स्वतंत्र आदमी को (गुलाम के रूप में) बेचता है और पैसो को खा जाता है; और एक वह जो मजदूर को काम पर रखता है, उससे काम करवाता है और उसे उसकी मजदूरी नहीं देता है।’”[6]
6. विनम्रता
विनम्रता एक इंसान के लिए अल्लाह का सबसे बड़ा आशीर्वाद है। इससे कोई व्यक्ति अल्लाह के प्रति वास्तविक अधीनता स्वीकार करता है। विनम्रता अल्लाह के बारे में जानने और उसकी महानता को पहचानने, उसकी पूजा करने, उससे प्रेम करने और उससे विस्मय में रहने से आती है; और यह स्वयं और अपने दोषों, और कमजोरियों के बारे में जानने से आता है। अल्लाह यह विशेषता उन लोगों को देता है जो पवित्रता और धार्मिकता के कार्यों के माध्यम से उसके करीब होने के लिए संघर्ष करते हैं। पैगंबर मुहम्मद ने कहा,
“दान देने से धन कम नहीं होता है, और ईश्वर अपने दास के सम्मान को बढ़ाता है जब उसका दास दूसरों को क्षमा करता है। और जो कोई खुद को ईश्वर के सामने विनम्र करता है, ईश्वर उसके सम्मान (पद) को बढ़ाता है।”[7]
मुसलमान से अपेक्षा की जाती है कि वह दूसरों का सम्मान करे और उनके साथ विनम्र रहे।
7. निष्पक्ष और न्यायपूर्ण होना
इस्लामी विश्वदृष्टि में, न्याय चीजों को उनके सही स्थान पर रखने को दर्शाता है। इसका अर्थ दूसरों को समान व्यवहार देना भी है। इस्लाम के पैगंबर ने घोषणा की:
“लोगों की सात श्रेणियां हैं जिन्हें ईश्वर उस दिन अपनी छाया में आश्रय देंगे जब उसके अलावा कोई और छाया नहीं होगी। [एक है] न्यायप्रिय सरदार।”[8]
अल्लाह ने अपने दूत से इस प्रकार बात की:
“ऐ मेरे दासों, मैंने अपने लिए अन्याय को वर्जित किया है और तुम्हारे लिए भी वर्जित किया है। इसलिए एक दूसरे के साथ अन्याय करने से बचो।”[9]
8. उदारता
उदारता पैगंबर मुहम्मद के अनगिनत अच्छे गुणों में से एक थी। वह लोगों में सबसे उदार थे और वह रमजान में सबसे उदार हुआ करते थे।
कुछ लोग पैगंबर मुहम्मद के पास गए और पूछा, "अगर किसी के पास देने के लिए कुछ नहीं है, तो वह क्या करे?" पैगंबर ने कहा, "उसे अपने हाथों से काम करना चाहिए और खुद को लाभ पहुंचाना चाहिए और दान में भी देना चाहिए (जो वह कमाए)।" लोगों ने फिर पूछा, "यदि वह ये भी न कर सके?" पैगंबर ने उत्तर दिया, "उसे जरूरतमंदों की मदद करनी चाहिए जो मदद मांगते हैं।" लोगों ने फिर पूछा, "यदि वह ऐसा भी न कर सके तो?" उन्होंने उत्तर दिया, "फिर उसे अच्छे कर्म करने चाहिए और बुरे कामों से दूर रहना चाहिए और इसे दान का कर्म माना जाएगा।”[10]
9. आभारी होना
एक मुसलमान अपने अनगिनत आशीर्वादों के लिए हमेशा अल्लाह का आभारी रहता है। उसके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने के कई तरीके हैं। पहला और सबसे महत्वपूर्ण तरीका यह है कि अल्लाह की पूजा वैसे करो जैसा उसने निर्धारित किया है। अल्लाह ने हमे इस्लाम के पांच स्तंभों का पालन करने का आदेश दिया था और वे हमें आसानी से उसकी पूजा करने के लिए मार्गदर्शन करते हैं। विश्वासी दान देकर भी आभार व्यक्त करता है। अल्लाह कहता है,
“अतः, मुझे याद करो (प्रार्थना, महिमा, आदि), मैं तुम्हें याद करूंगा और मेरे आभारी रहो (मेरे अनगिनत उपकार के लिए) और मेरे कृतघ्न न बनो।” (क़ुरआन 2:152)
एक मुसलमान उन लोगों का भी आभारी होता है जो उस पर एहसान करते हैं। अल्लाह कहता है,
“उपकार का बदला उपकार ही है।” (क़ुरआन 55:60)
पैगंबर मुहम्मद ने कहा, "जो कोई आप पर एहसान करता है, तो उसका बदला चुकाओ, और अगर आपको ऐसा कुछ भी नहीं मिल रहा है जिससे आप उसका बदला चुकाओ, तो उसके लिए तब तक प्रार्थना करो जब तक कि तुम्हे यह न लगे कि तुमने उसका बदला चुका दिया है।”[11]
10. क्षमा करना
क्षमा का अर्थ है जिसने आपके साथ कुछ गलत किया है उसके प्रति प्रतिशोध को त्याग देना। अल्लाह ने क्षमा करने वालों के लिए असंख्य प्रतिफल रखा है। वह क़ुरआन मे कहता है,
"और चाहिये कि क्षमा कर दें तथा जाने दें! क्या तुम नहीं चाहते कि अल्लाह तुम्हें क्षमा कर दे और अल्लाह अति क्षमी, सहनशील हैं।" (क़ुरआन 24:22)
"और जो सहन करे तथा क्षमा कर दे, तो ये निश्चय बड़े साहस का कार्य है।" (क़ुरआन 42:43)
"… जो क्रोध पी जाते और लोगों के दोष क्षमा कर दिया करते हैं, वास्तव में अल्लाह सदाचारियों से प्रेम करता है।" (क़ुरआन 3:134)
क्षमा करने में असमर्थता हमें भावनात्मक रूप से, आध्यात्मिक रूप से और यहां तक कि शारीरिक रूप से भी बड़ा प्रभावित कर सकती है। यह तनाव और खराब स्वास्थ्य का कारण बनता है।
इसके अलावा आप यहां उपलब्ध लाइव चैट के माध्यम से भी पूछ सकते हैं।
- नमाज़ - उन्नत (2 का भाग 1)
- नमाज़ - उन्नत (2 का भाग 2)
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- क़ुरआन क्यों और कैसे सीखें (2 का भाग 1)
- क़ुरआन क्यों और कैसे सीखें (2 का भाग 2)
- पैगंबरो के चमत्कार
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