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न्याय के दिन मध्यस्थता (2 का भाग 2)
विवरण: दूसरा पाठ इस्लामी 'मध्यस्थता' की अवधारणा पर और अधिक चर्चा करता है।
द्वारा Imam Mufti (© 2015 NewMuslims.com)
प्रकाशित हुआ 08 Nov 2022 - अंतिम बार संशोधित 07 Nov 2022
प्रिंट किया गया: 5 - ईमेल भेजा गया: 0 - देखा गया: 518 (दैनिक औसत: 2)श्रेणी: पाठ > इस्लामी मान्यताएं > परलोक
उद्देश्य
· मध्यस्थता की तीन शर्तों को समझना।
· यह समझना कि न्याय के दिन किसकी मध्यस्थता स्वीकार नहीं की जाएगी।
· मध्यस्थता के पीछे ज्ञान को समझना।
अरबी शब्द
· तौहीद - प्रभुत्व, नाम और गुणों के संबंध में और पूजा की जाने के अधिकार में अल्लाह की एकता और विशिष्टता।
· हदीस - (बहुवचन - हदीसें) यह एक जानकारी या कहानी का एक टुकड़ा है। इस्लाम में यह पैगंबर मुहम्मद और उनके साथियों के कथनों और कार्यों का एक वर्णनात्मक रिकॉर्ड है।
· मुशरिक - (बहुवचन - मुशरिकीन) वह जो अल्लाह के सिवा अन्य व्यक्ति (व्यक्तियों) या चीजों को देवत्व बताता है।
· शिर्क - एक ऐसा शब्द जिसका अर्थ है अल्लाह के साथ भागीदारों को जोड़ना, या अल्लाह के अलावा किसी अन्य को दैवीय बताना, या यह विश्वास करना कि अल्लाह के सिवा किसी अन्य में शक्ति है या वो नुकसान या फायदा पहुंचा सकता है।
मध्यस्थता की शर्तें
समझने वाली सबसे महत्वपूर्ण बातों में से एक यह है कि अल्लाह और सिर्फ अल्लाह ही मध्यस्थता का मालिक है। कोई भी इंसान मध्यस्थता का 'मालिक' नहीं है।
परलोक मे मध्यस्थता तभी होगी जब निम्नलिखित शर्तें पूरी होंगी:
1. अल्लाह सिर्फ उसके लिए मध्यस्थता स्वीकार करेगा जिसे अल्लाह पसंद करता है
“…वह किसी की सिफ़ारिश नहीं करेंगे, उसके सिवा जिससे अल्लाह प्रसन्न हो” (क़ुरआन 21:28)
जिस व्यक्ति के लिए मध्यस्थता की जाएगी उसका तौहीद पर विश्वास होना चाहिए क्योंकि अल्लाह मुशरिकीन (बहुदेववादियों) से प्रसन्न नहीं है।
यह पूछा गया था, 'अल्लाह के दूत, पुनरुत्थान के दिन आपकी मध्यस्थता के लोगों में सबसे अधिक धन्य कौन होगा?' अल्लाह के दूत ने कहा था:
“ए अबू हुरैरा, मैंने सोचा था कि कोई भी मुझसे इस हदीस के बारे में आपसे पहले नहीं पूछेगा क्योंकि मैंने देखा है कि आप हदीस सीखने के लिए कितने उत्सुक हैं। न्याय के दिन मेरी सिफ़ारिश से जिन लोगों पर सबसे ज़्यादा कृपा होगी, वे वो हैं जो दिल से ला इलाहा इल्लल्लाह पढ़ते हैं।’”
2. मध्यस्थता करने के लिए अल्लाह की अनुमति होनी चाहिए।
“कौन है, जो उसके पास उसकी अनुमति के बिना मध्यस्थता (सिफ़ारिश) कर सके?” (क़ुरआन 2:255)
3. मध्यस्थ के पास अल्लाह की अनुमति होनी चाहिए।
“…जिनकी अनुशंसा कुछ लाभ नहीं देती, परन्तु इसके पश्चात् कि अनुमति दे अल्लाह जिसके लिए चाहे तथा उससे प्रसन्न हो।” (क़ुरआन 53:26)
अस्वीकृत मध्यस्थता
अस्वीकृत मध्यस्थता वह है जो अल्लाह की अनुमति या उसके प्रसन्न होने के लिए आवश्यक शर्तों को पूरा नहीं करती है (मध्यस्थत या जिसके लिए मध्यस्थता की जाए), जैसे कि शिर्क करने वाले मानते हैं कि उनके देवता उनके लिए मध्यस्थता करने मे सक्षम होंगे। उनमें से बहुत से केवल अपने देवताओं की पूजा करते हैं क्योंकि वे मानते हैं कि वे उनके लिए अल्लाह के साथ मध्यस्थता करेंगे, और यह कि वे उनके और अल्लाह के बीच मध्यस्थ हैं। अल्लाह कहता है:
“सुन लो! शुध्द धर्म अल्लाह ही के लिए (योग्य) है तथा जिन्होंने बना रखा है अल्लाह के सिवा संरक्षक, वे कहते हैं कि हम तो उनकी वंदना इसलिए करते हैं कि वह समीप कर देंगें हमें अल्लाह से। वास्तव में, अल्लाह ही निर्णय करेगा उनके बीच जिसमें वे विभेद कर रहे हैं। वास्तव में, अल्लाह उसे सुपथ नहीं दर्शाता जो बड़ा मिथ्यावादी, कृतघ्न हो।” (क़ुरआन 39:3)
अल्लाह हमें बताता है कि इस तरह की मध्यस्थता निष्प्रभावी है और इसका कोई लाभ न होगा:
“तो उन्हें लाभ नहीं देगी शिफ़ारिशियों (अभिस्तावकों) की शिफ़ारिश।” (क़ुरआन 74:48)
“तथा उस दिन से डरो, जिस दिन कोई किसी के कुछ काम नहीं आयेगा और न उसकी कोई अनुशंसा (सिफ़ारिश) मानी जायेगी और न उससे कोई अर्थदण्ड लिया जायेगा और न उन्हें कोई सहायता मिल सकेगी।” (क़ुरआन 2:48)
“ऐ विश्वासिओं! हमने तुम्हें जो कुछ दिया है, उसमें से दान करो, उस दिन (अर्थातः प्रलय) के आने से पहले, जिसमें न कोई सौदा होगा, न कोई मैत्री और न ही कोई अनुशंसा (सिफ़ारिश) काम आएगी तथा काफ़िर लोग ही अत्याचारी हैं।” (क़ुरआन 2:254)
इसलिए, अल्लाह ने अपने खलील[1] इब्राहिम की मध्यस्थता को उनके पिता अजार के लिए स्वीकार नहीं किया क्योंकि उनका पिता एक मूर्तिपूजक था। पैगंबर ने कहा:
“पुनरुत्थान के दिन इब्राहीम अपने पिता से मिलेंगे, और अजार का मुख काला और धूल से ढंका होगा। इब्राहीम उनसे कहेगा, 'क्या मैं ने आपसे नहीं कहा था कि मेरी अवज्ञा न करो?' उनका पिता कहेगा, 'आज मैं तुम्हारी अवज्ञा नहीं करूंगा।'' इब्राहीम कहेंगे, 'ऐ ईश्वर! आपने मुझे न्याय के दिन शर्मिंदा न करने का वादा किया था; और मेरे लिये अपने पिता को कोसने और उसका अनादर करने से बढ़कर क्या शर्म की बात होगी?' तब अल्लाह कहेगा, 'मैंने स्वर्ग को काफ़िरों के लिए वर्जित कर दिया है।' तब इब्राहिम को संबोधित किया जाएगा, 'ऐ इब्राहिम, तुम्हारे पैरों के नीचे क्या है?' वह देखेगा और वहां उसे खून से सना एक ढाब (एक जानवर) दिखाई देगा, जिसे टांगो से पकड़कर आग में झोंक दिया जाएगा।”[2]
मध्यस्थता के पीछे का ज्ञान
मध्यस्थता करवाने का कारण मध्यस्थता करने वाले को सम्मान देना है। यह व्यक्ति को अपनी रचना के सामने खड़ा करने का अल्लाह का तरीका है। यही कारण है कि पैगंबर मुहम्मद और पैगंबरो को ऊपर वर्णित अनुसार मध्यस्थता करने की अनुमति दी जाएगी।
इसके अलावा, मध्यस्थता के कारण व्यक्ति को अपने पापों के प्रति लापरवाह नहीं होना चाहिए। व्यक्ति को यह कभी नहीं सोचना चाहिए कि वह मध्यस्थता पर भरोसा कर सकता है और वह जो चाहे पाप कर सकता है! क्योंकि, इस बात की गारंटी नहीं है कि अल्लाह किसी को उसके लिए मध्यस्थता करने की अनुमति देगा। इसके अलावा, उसके पाप उसे अविश्वास की ओर ले जा सकते हैं, ऐसी स्थिति में किसी की भी मध्यस्थता उसे कोई लाभ नहीं देगी। अंत में, उसकी मध्यस्थता होने और रिहा होने से पहले उसे सजा मिल सकती है।
अगला पाठ:
क़ुरआन के गुण (2 का भाग 1)
पिछला पाठ:
न्याय के दिन मध्यस्थता (2 का भाग 1)
इसके अलावा आप यहां उपलब्ध लाइव चैट के माध्यम से भी पूछ सकते हैं।
- नमाज़ - उन्नत (2 का भाग 1)
- नमाज़ - उन्नत (2 का भाग 2)
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