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ईश्वरीय पूर्वनियति में विश्वास (2 का भाग 1)

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विवरण: यदि सब कुछ ईश्वर ने पहले से ही निर्धारित कर दिया है, तो लोगो की इच्छा की स्वतंत्रता कैसे हुई? इसका उत्तर इस दो भाग वाले पाठ में है।

द्वारा Imam Mufti

प्रकाशित हुआ 08 Nov 2022 - अंतिम बार संशोधित 07 Nov 2022

प्रिंट किया गया: 22 - ईमेल भेजा गया: 0 - देखा गया: 1,414 (दैनिक औसत: 3)


आवश्यक शर्तें

·इस्लाम के स्तंभों और आस्था के अनुच्छेदों का परिचय (2 भाग)।

उद्देश्य

·ईश्वरीय पूर्वनियति (कद्र) पर विश्वास के संबंध में इस्लाम द्वारा निर्धारित महत्व को जानना।

·ईश्वरीय पूर्वनियति के पहले 2 घटकों को जानने में शामिल है, अल्लाह का पूर्वज्ञान पूर्ण और समावेशी है और अल्लाह ने सब कुछ संरक्षित किताब में दर्ज किया है।

अरबी शब्द

·क़द्र – पूर्वनियति।

·अल-लोह अल-महफुज - संरक्षित किताब।

इस्लामी आस्था का छठा और अंतिम अनुच्छेद है ईश्वरीय पूर्वनियति (अरबी में क़द्र) पर विश्वास। ईश्वरीय पूर्वनियति (क़द्र) आस्था का एक अत्यंत महत्वपूर्ण अनुछेद है, और विभिन्न धर्मों के लोग लंबे समय से इस मुद्दे को लेकर आपस में मतभेद रखते हैं।

ईश्वरीय पूर्वनियति अल्लाह का 'छिपा हुआ रहस्य' है जिसकी गहराई मनुष्य नहीं जान सकता है। एक मुसलमान को ईश्वरीय पूर्वनियति के बारे में सही विश्वास रखना सीखना चाहिए और पैगंबर की सलाह पर टिके रहना चाहिए:

“जब ईश्वरीय पूर्वनियति (कद्र) का उल्लेख किया जाये, तो चुप हो जाओ।” (सहीह मुस्लिम)

इसके साथ ही, हमें शांति से रहने के लिए इस विषय के बारे में पर्याप्त जानकारी दी गई है, भले ही हम इसकी जटिलता को न जानते हों। इसलिए, यह विश्वास का एक अनिवार्य पहलू है, और इस विश्वास के महत्व पर जोर देते हुए, पैगंबर मुहम्मद के प्रसिद्ध साथी इब्न उमर ने एक बार कसम खाई और इसे अस्वीकार करने वालों के बारे में कहा था, 'अगर उनमें से कोई एक अल्लाह की राह में उहद पर्वत के बराबर सोना भी ख़र्च करे, तो अल्लाह उनसे ये कभी स्वीकार नहीं करेगा, जब तक कि वे ईश्वरीय पूर्वनियति में विश्वास नहीं करते।'

पैगंबर के एक साथी उबादा बिन समित अपनी मृत्यु शय्या पर थे, जब उनके बेटे ने उनसे मुलाकात की और पूछा,

'हे पिता, मुझे सलाह दे कि मैं उस का पालन कर सकूं।'

उबादा ने कहा,

‘'बैठ जाओ। हे मेरे पुत्र, तुम तब तक सच्चे आस्तिक नहीं बनोगे, और तब तक तुम अल्लाह के ज्ञान की वास्तविकता तक नहीं पहुंचोगे जब तक तुम ईश्वरीय पूर्वनियति, उसके अच्छे और बुरे में विश्वास नहीं करोगे।’

तो मैंने कहा,

'हे मेरे पिता, मुझे कैसे पता चलेगा कि ईश्वरीय पूर्वनियति का अच्छा और उसकी बुरा क्या है?'

उसने कहा,

‘जान लो कि जिसने तुम्हें सताया होगा, वह तुम्हें कभी याद नहीं कर सकता; और जो तुम्हें याद करेगा, वह तुम्हें कभी सता नही सकता। ऐ मेरे बेटे, मैंने अल्लाह के पैगंबर को यह कहते सुना कि अल्लाह ने जो पहली चीज़ बनाई वह थी कलम। अल्लाह ने कलम से कहा, 'लिखो'। इसलिए उसने वह सब कुछ लिखा जो न्याय के दिन तक होगा। हे मेरे पुत्र, यदि तुम इस पर विश्वास न करते हुए मर जाओगे, तो तुम नर्क में प्रवेश करोगे।'

अद-दयलामी कहते हैं:

“मैं उबै बिन काब के पास गया और उनसे कहा कि मुझे ईश्वरीय पूर्वनियति के बारे में कुछ संदेह है, इसलिए मुझे कुछ बताओ ताकि अल्लाह मेरे दिल से संदेह निकाल दे। उन्होंने कहा, 'यदि अल्लाह आकाशों और धरती के निवासियों को दण्ड देता, तो वह उन्हें दण्ड देता और वह उनके साथ अन्याय नहीं करता। और यदि वह उन पर दया करेगा, तो यह उनके कर्मों से अच्छा होगा। और यदि तुम उहद पर्वत के समान सोना खर्च करो, तो अल्लाह तब तक स्वीकार नहीं करेगा जब तक कि तुम्हें ईश्वरीय पूर्वनियति पर विश्वास न हो। और यह जान लो कि जिसने तुम्हें सताया होगा, वह तुम्हें कभी याद नहीं कर सकता; और जो तुम्हें याद करेगा, वह तुम्हें कभी सता नही सकता।’”

इसलिए वह अब्दुल्ला इब्न मसूद के पास गया जिसने उसे यही बात बताई। अत: वह हुदैफा बिन अल-यमान[1] के पास गया, उसने उसे यही बात कही। वह जायद बिन थाबित के पास गया, उसने भी उसे यही बात बताई।[2]

ईश्वरीय पूर्वनियति (क़द्र) में यह विश्वास क्या है जिसे इन महान साथियों ने इसे नर्क से मुक्ति माना? वास्तव में क्या विश्वास करना है?

(1) अल्लाह का पूर्वज्ञान पूर्ण और समावेशी है।

(2) अल्लाह ने सरंक्षित किताब में सब कुछ दर्ज कर लिया है।

(3) अल्लाह की इच्छा हमेशा पूरी होती है, और उसकी क्षमता परिपूर्ण है।

(4) अल्लाह ने ही सब कुछ बनाया है।

(1) अल्लाह का पूर्वज्ञान पूर्ण और समावेशी है।

पहला आवश्यक घटक अल्लाह के अचूक पूर्वज्ञान में विश्वास करना है। अल्लाह जानता है कि जीव क्या करेंगे, उसके ज्ञान मे सब कुछ शामिल है। वह अपने प्राचीन और शाश्वत पूर्वज्ञान के आधार पर, जो कुछ भी मौजूद है उसको पूरी तरह जानता है। यह उसके लिए समान है चाहे वह उसके कार्यों से संबंधित हो या उसके दासों के कार्यों से संबंधित हो। वह उनकी स्थिति, आज्ञाकारिता और अवज्ञा, जीविका, जीवन काल, सफलताओं और असफलताओं और उनकी सभी प्रवृत्ति को जानता है। उसको बनाने से पहले, और स्वर्ग और पृथ्वी को भी बनाने से पहले, अल्लाह को सब पता था कि कौन स्वर्ग में जायेगा और कौन नर्क में रहेगा।

“वास्तव में, अल्लाह से कुछ भी छिपा नहीं है, पृथ्वी में या आकाश में।” (क़ुरआन 3:5)

“क्या तुम नहीं जानते कि अल्लाह सब कुछ जानता है जो स्वर्ग और पृथ्वी पर होता है?” (क़ुरआन 22:70)

जो कोई इसे मानने से इंकार करता है वह अल्लाह की पूर्णता से इंकार करता है, क्योंकि ज्ञान के विपरीत या तो अज्ञानता या विस्मृति है। इससे इंकार करने का मतलब यह होगा कि भविष्य की घटनाओं के बारे में अल्लाह को पता नही है; और वह सर्वज्ञ नहीं है। ये दोनों ही कमियां हैं जिनसे अल्लाह मुक्त है। जब फिरौन ने मूसा से पूछा:

“(फिरौन ने कहा:) 'पुरानी पीढ़ियों के बारे में क्या?’

मूसा ने कहा: 'इन बातों का इल्म मेरे परवरदिगार के पास एक किताब (लौहे महफूज़) में (लिखा हुआ) है मेरा परवरदिगार न बहकता है न भूलता है' (क़ुरआन 20:51, 52)

अल्लाह भविष्य से अनजान नहीं है, और न ही वह अतीत का कुछ भी भूलता है।

(2) अल्लाह ने सरंक्षित किताब में सब कुछ दर्ज कर लिया है।

दूसरा आवश्यक घटक यह है कि अल्लाह ने अल-लोह अल-महफुज (संरक्षित किताब) में न्याय के दिन तक होने वाली हर चीज को दर्ज किया है। सभी मनुष्यों के जीवन काल लिखे जाते हैं और उनके भरण-पोषण की मात्रा को बांटा जाता है। सृजित होने से पहले सभी मानवता के लिए अनन्त चयन और निंदा लिखी गई थी। वे अपनी ही इच्छा से बाहर गए; वे अपनी ही इच्छा से गिरे, और उनका गिरना पहले से पता था इसलिए इसे लिखा लिया गया।

ब्रह्मांड में जो कुछ भी बनता है या होता है, वह वहां दर्ज होता है। अल्लाह ने कहा है:

“क्या आप नहीं जानते कि अल्लाह जानता है, जो आकाश तथा धरती में है, ये सब एक किताब में (अंकित) है। वास्तव में, ये अल्लाह के लिए अति सरल है।” (क़ुरआन 22:70)

कभी-कभी पापी यह कहकर पाप को न्यायोचित ठहराने का प्रयास करता है की, "मैंने यह पाप इसलिए किया क्योंकि यह लिखा था।" उसकी सोच में गलती यह है कि मात्र लिखने से उसकी स्वतंत्र इच्छा को छीन लिया गया है और इसका अर्थ है कि उसके कार्यों में उसके पास कोई और विकल्प नहीं था! ऐसे व्यक्ति के लिए उत्तर है, "नहीं। तूने ऐसा किया है, तभी ये लिखा गया है।” मतलब वह चुनने के लिए स्वतंत्र था। जो लिखा गया है वो केवल वह था जो वो करने वाला था, जिसे अपने पूर्वज्ञान द्वारा अल्लाह जानता है, मनुष्य की इच्छा की स्वतंत्र को छीने बिना।



फुटनोट:

[1]ये सभी पैगंबर के साथी (अल्लाह की दया और आशीर्वाद उन पर बना रहे) हैं।

[2] इमाम अहमद की मुसनद और अबू दाऊद में।

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