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पवित्र शहरें; मक्का, मदीना और जेरूसलम (2 का भाग 1)
विवरण: पवित्र शहरों का महत्व और ये सभी मुसलमानों के दिलों में एक विशेष स्थान क्यों रखते हैं।
द्वारा Aisha Stacey (© 2015 NewMuslims.com)
प्रकाशित हुआ 08 Nov 2022 - अंतिम बार संशोधित 07 Nov 2022
प्रिंट किया गया: 8 - ईमेल भेजा गया: 0 - देखा गया: 661 (दैनिक औसत: 2)श्रेणी: पाठ > इस्लाम के गुण > इस्लाम की उत्कृष्ट विशेषताएं
उद्देश्य
· यह समझना कि तीन पवित्र शहर क्यों महत्वपूर्ण हैं।
अरबी शब्द
· मस्जिद - प्रार्थना स्थल का अरबी शब्द।
· सहाबा - "सहाबी" का बहुवचन, जिसका अर्थ है पैगंबर के साथी। एक सहाबी, जैसा कि आज आमतौर पर इस शब्द का प्रयोग किया जाता है, वह है जिसने पैगंबर मुहम्मद को देखा, उन पर विश्वास किया और एक मुसलमान के रूप में मर गया।
· काबा - मक्का शहर में स्थित घन के आकार की एक संरचना। यह एक केंद्र बिंदु है जिसकी ओर सभी मुसलमान प्रार्थना करते समय अपना रुख करते हैं।
· हज - मक्का की तीर्थ यात्रा जहां तीर्थयात्री कुछ अनुष्ठानो का पालन करते हैं। हज इस्लाम के पांच स्तंभों में से एक है, जिसे हर वयस्क मुसलमान को अपने जीवन में कम से कम एक बार अवश्य करना चाहिए यदि वे इसे वहन कर सकते हैं और शारीरिक रूप से सक्षम हैं।
· क़िबला - जिस दिशा की और रुख कर के औपचारिक प्रार्थना (नमाज) करी जाती है।
एक सहाबा ने एक बार पैगंबर मुहम्मद से पूछा कि पृथ्वी पर बनी पहली मस्जिद कौन सी है। उन्होंने उत्तर दिया, "मक्का की पवित्र मस्जिद।" फिर सहाबी ने पूछा इसके बाद कौन सा था?" और पैगंबर ने जवाब दिया "जेरूसलम की अल-अक्सा मस्जिद।”[1]
पैगंबर मुहम्मद ने अपने अनुयायियों को तीन मस्जिदों के अलावा कहीं और धार्मिक यात्रा न करने की सलाह दी।[2]
ये तीन मस्जिदें इस्लाम के तीन सबसे पवित्र स्थल हैं और तीन पवित्र शहरों, मक्का, मदीना और जेरुसलम में स्थित हैं। सभी तीन शहर मध्य पूर्व में हैं, दो वर्तमान सऊदी अरब में और तीसरा पवित्र भूमि में, जिसे अब फिलिस्तीन या इज़राइल के रूप में जाना जाता है। दो पाठों में हम तीन शहरों के महत्व को करीब से देखेंगे और चर्चा करेंगे कि दुनिया भर के मुसलमानों के लिए उनका क्या महत्त्व है।
मक्का
मक्का मे दुनिया की सबसे बड़ी मस्जिद, मस्जिद अल-हराम (पवित्र मस्जिद) है। इसके अंदर काबा स्थित है, एक घन के आकार की संरचना जिसे मुसलमान मानते हैं कि यह दुनिया का पहला पूजा घर है। 21वीं सदी में इस मस्जिद में एक बड़ी बाहरी छत है और सफेद संगमरमर का फर्श है जो दिन के समय सूर्य की तेज रौशनी को प्रतिबिंबित करता है और रात में फ्लडलाइट की रौशनी से जगमगाता है। यह एक विशाल स्थान है जो हज के मौसम में 4 मिलियन लोगों की आने की अनुमति देता है। यह एक ऐसा स्थान है जो हमेशा चालू रहता है और यहां दुनिया भर के लोग पूजा और चिंतन में अपने दिन और रात बिताने के लिए एकत्रित होते हैं। आज के समय का मक्का अपनी विनम्र शुरुआत से बहुत दूर है।
जिस क्षेत्र में मक्का है, वह प्राचीन काल से ही कहानियों का विषय रहा है। क़ुरआन और बाइबिल दोनों में मक्का के पहले के नाम बेक्का का उल्लेख पूजा स्थल के रूप में किया गया है। "...वे लोग अपने हृदय में गीतों के साथ जो तेरे मन्दिर मे आते हैं, बहुत आनन्दित हैं। वे प्रसन्न लोग बेक्का घाटी जिसे ईश्वर ने झरने सा बनाया है गुजरते हैं…”[3]
“निःसंदेह पहला घर, जो मानव के लिए (अल्लाह की वंदना का केंद्र) बनाया गया, वह बेक्का में था…” (क़ुरआन 3:96)
पहले मुसलमानों ने जेरुसलम की मस्जिद अल-अक्सा की ओर नमाज़ पढ़ी। मदीना में निर्वासन के दौरान पैगंबर मुहम्मद को ईश्वर से एक रहस्योद्घाटन मिला, जिसमें उन्हें काबा की ओर मुड़ने का निर्देश दिया गया था। इस प्रकार यह दुनिया भर के मुसलमानों के लिए क़िबला बन गया। इस्लाम के इतिहासकारों और विद्वानों में इस बात पर मतभेद है कि काबा का निर्माण किसने किया था। कुछ लोग कहते हैं कि इसे स्वर्गदूतों ने बनवाया था। दूसरों का कहना है कि मानवजाति के पिता, आदम ने काबा का निर्माण किया था, लेकिन कई शताब्दियों में यह जीर्ण-शीर्ण हो गया था और पैगंबर इब्राहिम और उनके बेटे इस्माइल इन इसका पुनर्निर्माण किया था। सभी इस बात से सहमत हैं कि काबा का निर्माण या पुनर्निर्माण पैगंबर इब्राहिम ने किया था।
“और (याद करो) जब इब्राहीम और इस्माईल इस घर की नींव ऊंची कर रहे थे तथा प्रार्थना कर रहे थेः ऐ हमारे पालनहार! हमसे ये सेवा स्वीकार कर ले। तू ही सब कुछ सुनता और जानता है।’” (क़ुरआन 2:127)
पैगंबर मुहम्मद का जन्म 570 ईस्वी मे मक्का शहर में हुआ था। उस समय मक्का यमन और भूमध्य सागर के बीच व्यापार मार्गों पर एक नखलिस्तान था। इस बात के ऐतिहासिक प्रमाण मिलते हैं कि दुनिया भर से माल मक्का के बाजारों से होकर आता था। और तीर्थयात्री काबा के दर्शन करने आते थे। उस ऐतिहासिक समय में, यह मूर्तियों और प्रतिमाओं से भरा हुआ था।
हर साल तीर्थयात्री मक्का की यात्रा करते थे और पैगंबर मुहम्मद के कबीले, कुरैश[4] तीर्थयात्रियों के साथ व्यापार करके बहुत अच्छा जीवनयापन करते थे। मुहम्मद की पैगंबरी ने उनकी बहुत ही आकर्षक आजीविका को खतरे में डाल दिया और यह एक जटिल असंख्य कारणों में से एक था कि उन्होंने मुसलमानों पर कहर बरपाया और अंततः उन्हें शहर से निकाल दिया।
पैगंबर मुहम्मद ने एक बार मक्का के बारे में कहा था, "अल्लाह की कसम, आप अल्लाह की सभी भूमि में सबसे अच्छी और प्यारी भूमि है। यदि मैं यहां से न निकाला गया होता, तो मै यह भूमि कभी न छोड़ता।”[5] और उन्होंने एक बार कहा था, "अल्लाह ने लोगों को नहीं, मक्का को एक पवित्र स्थान बनाया है; इसलिए, कोई भी व्यक्ति जो अल्लाह और अंतिम दिन पर विश्वास करता है, वह न तो उसमें खून बहाएगा और न ही उसके पेड़ों को काटेगा।”[6]
जब पैगंबर मुहम्मद मक्का लौटे तो उन्होंने बड़ी कूटनीति के साथ और इसके निवासियों के प्रति असीम दया के साथ शहर पर अधिकार कर लिया। उन्होंने काबा से मूर्तियों को हटाया और अरब प्रायद्वीप मे अल्लाह को छोड़कर किसी अन्य की पूजा करने से मना किया। इतिहास में मक्का ने इस्लाम के आध्यात्मिक केंद्र के रूप में अपना स्थान बना लिया।
मदीना
वर्तमान समय में सऊदी अरब का मदीना शहर इस्लाम का दूसरा सबसे पवित्र शहर है। यह मस्जिद अल-नबवी (जिसे पैगंबर की मस्जिद भी कहा जाता है) की वजह से महत्वपूर्ण है। यह मदीना में पैगंबर मुहम्मद के घर के पास है और यह वह स्थान भी है जहां उन्हें दफनाया गया था। मदीना में दो अन्य महत्वपूर्ण मस्जिदें भी हैं; मस्जिद अल-क्यूबा, जो पैगंबर और सहाबा के मदीना जाने के बाद पहली मस्जिद बनी थी, मदीना को पहले यथ्रिब के नाम से जाना जाता था, और मस्जिद अल-क़िबलतैन उस जगह पर बनाया गया था जहां पैगंबर मुहम्मद को क़िबला की दिशा यरूशलेम से मक्का बदलने के लिए रहस्योद्घाटन मिला था। अल-बकी, कब्रिस्तान जहां पैगंबर मुहम्मद के परिवार के कई सदस्यों, खलीफाओं और विद्वानों को दफनाया गया है, वह भी मदीना की सीमा के भीतर है।
अगला पाठ:
पवित्र शहरें; मक्का, मदीना और जेरूसलम (2 का भाग 2)
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मुसलमान होने के लाभ
इसके अलावा आप यहां उपलब्ध लाइव चैट के माध्यम से भी पूछ सकते हैं।
- ईमानदारी से पूजा करना: इखलास क्या है? (भाग 2 का 1)
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- वैध कमाई
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- पैगंबर मुहम्मद के साथी: अम्मार इब्न यासिर
- पैगंबर मुहम्मद के साथी: ज़ायद इब्न थाबित
- पैगंबर मुहम्मद के साथी: अबू हुरैरा
- इस्लामी शब्द (2 का भाग 1)
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- गैर-मुस्लिमो को सही राह पर आमंत्रित करना (3 का भाग 3): परिवार के लोगो, दोस्तों और सहकर्मियों को आमंत्
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- मुसलमान होने के लाभ
- पवित्र शहरें; मक्का, मदीना और जेरूसलम (2 का भाग 1)
- पवित्र शहरें; मक्का, मदीना और जेरूसलम (2 का भाग 2)