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विश्वासियों की माताएं (2 का भाग 2): परोपकारिता और गठबंधन

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विवरण: पैगंबर मुहम्मद की अन्य पत्नियों की एक संक्षिप्त जीवनी।

द्वारा Aisha Stacey (© 2015 NewMuslims.com)

प्रकाशित हुआ 08 Nov 2022 - अंतिम बार संशोधित 07 Nov 2022

प्रिंट किया गया: 21 - ईमेल भेजा गया: 0 - देखा गया: 1,089 (दैनिक औसत: 2)


उद्देश्य

·विश्वासियों की अन्य माताओं के बारे में कुछ जानना और समझना।

अरबी शब्द

·हदीस - (बहुवचन - हदीसें) यह एक जानकारी या कहानी का एक टुकड़ा है। इस्लाम में यह पैगंबर मुहम्मद और उनके साथियों के कथनों और कार्यों का एक वर्णनात्मक रिकॉर्ड है।

·दुआ - याचना, प्रार्थना, अल्लाह से कुछ मांगना।

·महर - दहेज, दुल्हन का उपहार, जो एक आदमी अपनी पत्नी को देता है।

विश्वासियों की माताएं पाठ का दूसरा भाग।

·खुज़ैमाह की बेटी ज़ैनब (जन्म 595 – मृत्यु 624 सीई)

MothersofBelievers_02.jpgअपनी शादी के बाद एक साल से भी कम समय में ही उनकी मृत्यु हो गई थी और परिणामस्वरूप उनके बारे में बहुत कम जानकारी है। इस शादी से पहले उन्होंने गरीबों के साथ काम करने और उनके प्रति अपनी उदारता के कारण गरीबों की मां की उपाधि हासिल की थी। पैगंबर मुहम्मद (उन पर ईश्वर की दया और आशीर्वाद हो) से शादी से पहले ज़ैनब कितनी बार विधवा हुई थी, इस बारे में कुछ विवाद है। हालांकि उनके अंतिम पति की मृत्यु युद्ध में हुई थी और पैगंबर मुहम्मद से उनकी शादी ने दूसरों के अनुसरण के लिए एक मिसाल कायम की। मुस्लिम पुरुषों को अब इस बात का डर नहीं था कि युद्ध में उनकी मृत्यु के बाद उनके परिवारों के लिए भुखमरी और उपेक्षा होगी। मृतक की विधवाओं से विवाह करना सम्माननीय हो गया था।

·अबू उमय्याह की बेटी उम्म सलामा (जन्म 596 – मृत्यु 680 सीई)

उम्म सलामा ने उनतीस साल की उम्र में पैगंबर मुहम्मद से शादी की थी, इससे पहले उनके पति की मृत्यु उहुद की लड़ाई में लगे घावों से हो गई थी। उम्म सलामा और उनके पति एबिसिनिया प्रवास का हिस्सा थे। उनका जीवन परीक्षणों और समस्याओं के सामने धैर्य के उदाहरणों से भरा हुआ था। वह और उनके पति मदीना जाने के लिए मक्का छोड़ने वाले पहले लोगों में से थे, क्योंकि उन्हें अपने पति से अलग करने और अपने बेटे के अपहरण को सहने के लिए मजबूर किया गया था। अपने पति की मृत्यु पर उन्होंने अल्लाह से दुआ की थी, "ऐ ईश्वर, मुझे मेरे दुख के लिए पुरस्कृत करें और बदले में मुझे इससे बेहतर कुछ दें, जो केवल आप, महान और सर्वशक्तिमान, दे सकते हैं।" इस दुआ का जवाब उन्हें अल्लाह के पैगंबर से शादी के रूप मे मिला। उम्म सलामा ने 300 से अधिक हदीसें बताई, उनमें से कई महिलाओं से संबंधित हैं। वह अपने कई अभियानों में पैगंबर के साथ गई और पैगंबर की मृत्यु तक उनकी शादी सात साल की थी। उम्म सलमा अन्य सभी पत्नियों से अधिक आयु तक जीवित रहीं और चौरासी वर्ष की आयु में उनकी मृत्यु हुई।

·अल-हारिस की बेटी जुवेरियाह (जन्म 608 – मृत्यु 673 सीई)

जुवेरिया पैगंबर की नजर में तब आयी जब उन्हें बनू मुस्तलिक जनजाति के खिलाफ लड़ाई में पकड़ लिया गया था। वह बनू मुस्तलिक के मुखिया की 20 साल की बेटी थी और उनकी शादी ने उनके कबीले और मुसलमानों के बीच तालमेल बिठा दिया। जब पैगंबर मुहम्मद ने जुवैरियाह से शादी की तो यह जनजाति को गरिमा के साथ इस्लाम में प्रवेश करने की अनुमति दी, जिससे हार का अपमान दूर हो गया। जैसे ही विवाह की घोषणा की गई, बनू मुस्तलिक से ली गई युद्ध की सारी लूट वापस कर दी गई, और सभी बंदियों को मुक्त कर दिया गया। जुवेरिया की शादी पैगंबर से छह साल तक थी, और पैगंबर की मृत्यु के बाद वो और उनतीस साल तक जीवित रहीं। पैंसठ वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया।

·जहश की बेटी ज़ैनब (जन्म 590 – मृत्यु 641 सीई)

ज़ैनब क़ुरैशो के कुलीन वंश की एक युवा लड़की थी जिसकी शादी पैगंबर मुहम्मद द्वारा मुक्त कराये गए एक ग़ुलाम से हुई थी जिसको पैगंबर ने गोद ले रखा था और वह पैगंबर के बहुत करीब था। रिश्तेदार विलासिता में पली-बढ़ी सभी युवा लड़कियों की तरह उन्हें भी अपनी शादी से बहुत उम्मीदें थीं और ज़ायद इसके लिए उपयुक्त नहीं थे। हालांकि पैगंबर को खुश करने के लिए उनके परिवार ने शादी की इजाजत दी थी। उनकी शादी अल्पकालिक और समस्याओं भरी थी और उन दोनों को खुश करने के लिए, पैगंबर मुहम्मद ने उन्हें तलाक लेने की अनुमति दी। इससे एक दुविधा की स्थिति उत्पन्न हुई क्योंकि तलाक होने पर महिला से मुंह फेर लिया जाता था और उसको मुश्किलों का सामना करना पड़ता था; ज़ैनब के परिवार सहित सभी पक्षों को खुश करने के तरीके के रूप में उनकी शादी पैगंबर मुहम्मद से हुई थी। इस मामले से निपटने के लिए क़ुरआन में छंद प्रकट किए गए थे और ज़ैनब से शादी करके, पैगंबर मुहम्मद ने दिखाया कि इस्लाम में एक दत्तक पुत्र एक प्राकृतिक पुत्र के समान नहीं है। ज़ैनब मुहम्मद के बढ़ते परिवार में शामिल हो गई और अपनी उदारता और धर्मार्थ कार्यों के लिए जानी जाती थी। उनकी मृत्यु पचास वर्ष की आयु मे हुई थी।

·अबू सुफियान की बेटी उम्म हबीबा (जन्म 589 – मृत्यु 666 सीई)

रमला, जिसे उम्म हबीबाह के नाम से भी जाना जाता है, कुरैश के नेता अबू सुफियान की बेटी थी और उस समय इस्लाम की दुश्मन थी। उसने अपने स्वयं के परिणामों के डर के बिना अपनी आस्था की घोषणा की और अपनी आस्था पर दृढ रहीं जब उनका गंभीर रूप से परीक्षण हुआ। इस्लाम में परिवर्तित होने और लगातार उत्पीड़न झेलने के बाद, उम्म हबीबा और उनके पति एबिसिनिया प्रवास में शामिल हो गए। इसके बाद उनके पति की मृत्यु हो गई। वह एक पराये देश मे अपनी एक छोटी बेटी के साथ अकेली पड़ गई और उनके पास पालन-पोषण का स्पष्ट साधन नहीं था। जब पैगंबर ने उसकी दुर्दशा के बारे में सुना तो उन्होंने उससे शादी करने की पेशकश की। उसने स्वीकार कर लिया। एबिसिनिया का राजा, जो गुप्त रूप से इस्लाम में परिवर्तित हो गया था और नए मुस्लिम समुदाय का एक अच्छा दोस्त था, उसने उम्म हबीबा का महर दिया और शादी का गवाह बना। यह मदीना में अपने पति के साथ शामिल होने से कुछ वर्ष पहले हुआ था। उनकी शादी पैगंबर मुहम्मद के निधन से चार साल पहले तक की थी।

·हुयय इब्न अख़्तब की बेटी सफ़ियाह (जन्म 610 – मृत्यु 670 सीई)

सफ़ियाह का जन्म मदीना में यहूदी जनजाति बनू नादिर के प्रमुख हुयय इब्न अख़्तब के यहां हुआ था। बनू नादिर को मदीना से निकाल दिया गया था और वह खैबर में बस गया था। 629 सीई में, खैबर की लड़ाई में मुसलमान विजयी हुए और सफ़ियाह को बंदी बना लिया गया। मुहम्मद ने सफ़ियाह को इस्लाम में परिवर्तित होने का सुझाव दिया, वह सहमत हो गई, और मुहम्मद की पत्नी बन गई।

उनके धर्म परिवर्तन के बावजूद, मुहम्मद की अन्य पत्नियों ने सफ़ियाह को उसके यहूदी मूल के बारे में चिढ़ाया। पैगंबर मुहम्मद ने एक बार अपनी पत्नी से कहा था, "यदि वे आपके साथ फिर से भेदभाव करें, तो उन्हें बताएं कि आपके पति मुहम्मद हैं, आपके पिता पैगंबर हारून थे और आपके चाचा पैगंबर मूसा थे। तो इसमें तिरस्कार करने की क्या बात है?” सफ़ियाह इक्कीस वर्ष की थी जब पैगंबर की मृत्यु हो गई। वह और 39 साल तक जीवित रहीं, और 60 साल की उम्र में मदीना में उनका निधन हो गया।

·अल-हारिस की बेटी मयमुना (जन्म 594 – मृत्यु 674 सीई)

मयमुना या बर्रा, ने पैगंबर से शादी करने की लालसा की और उनसे शादी करने की पेशकश की। पैगंबर ने स्वीकार कर लिया। मयमुना पैगंबर की मृत्यु तक उनके साथ सिर्फ तीन साल रहीं। वह बहुत अच्छे स्वभाव की थी और उनके भतीजे इब्न अब्बास ने उनके ज्ञान से बहुत कुछ सीखा, जो बाद में क़ुरआन का सबसे बड़ा विद्वान बना।



फुटनोट:

[1] इस्लाम के आगमन के समय कुरैश मक्का की सबसे शक्तिशाली जनजाति थी और पैगंबर मुहम्मद इसी जनजाति से थे। यह क़ुरआन के एक अध्याय का नाम भी है।

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