न्यू मुस्लिम ई-लर्निंग साइट में आपका स्वागत है। यह नए मुस्लिम धर्मान्तरित लोगों के लिए है जो अपने नए धर्म को आसान और व्यवस्थित तरीके से सीखना चाहते हैं। इसमे पाठों को स्तरों के अंतर्गत संयोजित किए गया है। तो पहले आप स्तर 1 के तहत पाठ 1 पर जाएं। इसका अध्ययन करें और फिर इसकी प्रश्नोत्तरी करें। जब आप इसे पास कर लें तो पाठ 2 वगैरह पर आगे बढ़ें। शुभकामनाएं।
आपको पंजीकरण करने की सलाह दी जाती है ताकि आपके प्रश्नोत्तरी ग्रेड और प्रगति को सेव किया जा सकें। इसलिए पहले यहां पंजीकरण करें, फिर स्तर 1 के अंतर्गत पाठ 1 से शुरू करें और वहां से अगले पाठ की ओर बढ़ें। अपनी सुविधा अनुसार पढ़ें। जब भी आप इस साइट पर वापस आएं, तो बस "मैंने जहां तक पढ़ा था मुझे वहां ले चलें" बटन (केवल पंजीकृत उपयोगकर्ताओं के लिए उपलब्ध) पर क्लिक करें।
ईमानदारी से पूजा करना: इखलास क्या है? (भाग 2 का 1)
विवरण: इखलास के अर्थ और एक मुसलमान के जीवन में उसके महत्व पर चर्चा।
द्वारा Aisha Stacey (© 2014 NewMuslims.com)
प्रकाशित हुआ 08 Nov 2022 - अंतिम बार संशोधित 07 Nov 2022
प्रिंट किया गया: 5 - ईमेल भेजा गया: 0 - देखा गया: 597 (दैनिक औसत: 2)श्रेणी: पाठ > पूजा के कार्य > विभिन्न अनुशंसित कार्य
उद्देश्य
· इखलास की अवधारणा की गहरी समझ देना और सलाह देना कि जीवन में इसे आसानी से कैसे लागू किया जा सकता है।
· इहसन - पूर्णता या उत्कृष्टता। इस्लामी रूप से, यह अल्लाह की पूजा करना है जैसे मानो आप अल्लाह को देख रहे हैं। अल्लाह को कोई नहीं देख सकता है, लेकिन यह समझना कि अल्लाह सब कुछ देख रहा है।
· इखलास - ईमानदारी, पवित्रता या एकांत। इस्लामी रूप से यह अल्लाह को प्रसन्न करने के लिए हमारे उद्देश्यों और इरादों को शुद्ध करने को दर्शाता है। यह क़ुरआन के 112वें अध्याय का नाम भी है।
· रिया - यह र'आ शब्द से बना है जिसका अर्थ है देखना। इस प्रकार रिया शब्द का अर्थ है दिखावा, पाखंड और ढोंग। इस्लाम में रिया का अर्थ है किसी अन्य को प्रसन्न करने के इरादे से ऐसे कार्य करना जो अल्लाह को पसंद है।
· शरिया - इस्लामी कानून।
· शिर्क - एक ऐसा शब्द जिसका अर्थ है अल्लाह के साथ भागीदारों को जोड़ना, या अल्लाह के अलावा किसी अन्य को दैवीय बताना, या यह विश्वास करना कि अल्लाह के सिवा किसी अन्य में शक्ति है या वो नुकसान या फायदा पहुंचा सकता है।
· सुन्नत - अध्ययन के क्षेत्र के आधार पर सुन्नत शब्द के कई अर्थ हैं, हालांकि आम तौर पर इसका अर्थ है जो कुछ भी पैगंबर ने कहा, किया या करने को कहा।
· सूरह - क़ुरआन का अध्याय।
· ज़कात - अनिवार्य दान।
अरबी से अंग्रेजी शब्दकोश हमें बताता है कि इखलास शब्द का अर्थ ईमानदारी, पवित्रता या एकांत है। इखलास शब्द अरबी शब्द अख-ला-सा से आया है और इसका अर्थ है वो कार्य करना जिसमे रिया न हो ताकि सिर्फ अल्लाह का विचार हो। इसे ध्यान में रखते हुए, एक इस्लामी शब्दावली अक्सर इखलास शब्द का वर्णन उद्देश्यों या इरादों को शुद्ध करने के कार्य के रूप में करती है ताकि मुख्य रूप से अल्लाह की खुशी पाने के लिए कार्य किया जाए। जब हम इन परिभाषाओं को ईमानदारी (ढोंग, छल या पाखंड से मुक्त होना) की अंग्रेजी शब्दकोश परिभाषा के साथ जोड़ते हैं तो हम समझते हैं कि इखलास क्या है।
सही तरीके से अल्लाह की पूजा करने के लिए, सभी कार्यो से शिर्क को हटाना इखलास है। व्यक्ति को असली इखलास पैदा करने और बनाए रखने के लिए उसे उन सभी चीज़ों से बचना चाहिए जो एकमात्र अल्लाह की पूजा करने के अधिकार पर सवाल उठाती है। सूरह नंबर 112 को अल-इखलास कहा जाता है और इसमे बहुत स्पष्ट रूप से अल्लाह की एकता की व्याख्या है। अधिक विस्तृत जानकारी यहां से मिल सकती है, http://www.newmuslims.com/lessons/253/
“(हे ईश दूत!) कह दोः अल्लाह अकेला है। अल्लाह निरपेक्ष (और सर्वाधार) है न उसकी कोई संतान है और न वह किसी की संतान है। और न उसके बराबर कोई है।’” (क़ुरआन 112)
इखलास का अर्थ है अल्लाह के प्रति ईमानदार रहना, और इहसन के साथ उसकी पूजा करना। इखलास का इहसन से गहरा नाता है। जब व्यक्ति जनता है कि अल्लाह सब कुछ देखता है तो इखलास के महत्व को याद रखने की संभावना अधिक होती है। जब कोई व्यक्ति अल्लाह के लिए ईमानदारी से कुछ करता है, तो उसे अल्लाह के अलावा किसी और से प्रशंसा या इनाम प्राप्त करने की परवाह नहीं करनी चाहिए। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि कौन आपको देखता है या कौन आपको नहीं देखता है। कभी-कभी ऐसा होता है कि कोई कार्य अल्लाह के लिए करता है लेकिन उसका इरादा घमंड और दिखावा करने का होता है; यह रिया है और यह उन पुरस्कारों को समाप्त कर सकता है जो एक आस्तिक चाहता है। रिया के बारे में अधिक जानकारी यहां मिल सकती है, http://www.newmuslims.com/lessons/96/ और दूसरे भाग में इस पर अधिक चर्चा की जाएगी।
“जो तुम्हारे मन में है, उसे मन ही में रखो या व्यक्त करो, अल्लाह उसे जानता है…” (क़ुरआन 3:29)
“…यदि आपने शिर्क किया, तो अवश्य व्यर्थ हो जायेगा आपका कर्म तथा आप हो जायेंगे क्षतिग्रस्तों में से।” (क़ुरआन 39:65)
यदि एक आस्तिक अपने कर्मों और कार्यों को अल्लाह से स्वीकार करवाना चाहता है, तो उसे ये इखलास के साथ करना चाहिए, उसे सबसे पहले सही नियत करना चाहिए और उन्हें शरीयत के अनुसार करना चाहिए।
“और उन्हें केवल यही आदेश दिया गया था कि वे धर्म को शुध्द रखें और सबको तज कर केवल अल्लाह की उपासना करें, नमाज़ अदा करें और ज़कात दें और यही शाश्त धर्म है।” (क़ुरआन 98:5)
पैगंबर मुहम्मद ने जोर दिया कि, "अल्लाह शुद्ध है और वह केवल वही स्वीकार करता है जो शुद्ध होता है”[1] इसलिए सुन्नत इस तथ्य को प्रमुखता देती है कि अल्लाह केवल वही स्वीकार करता है जो शुद्ध है और सिर्फ उसके लिए किया गया हो। उदाहरण के लिए, खालिद इब्न अल-वालिद को खलीफा उमर द्वारा सेना के कमांडर के पद से हटा दिया गया था। नाराज होने और लड़ने से इनकार करने के बजाय, खालिद ने और भी मेहनत से लड़ाई लड़ी। जब उनसे पूछा गया कि ऐसा क्यों, तो उन्होंने कहा: "मैं उमर के लिए नहीं अल्लाह के लिए लड़ता हूं।”
आप कह दें कि निश्चय मेरी नमाज़, मेरी क़ुर्बानी तथा मेरा जीवन-मरण संसार के पालनहार अल्लाह के लिए है।” (क़ुरआन 6:162)
अल्लाह किसी व्यक्ति के कर्मों को उसकी पवित्रता और ईमानदारी के आधार पर स्वीकार करता है; क्योंकि ऐसे इखलास से ही इंसान अल्लाह की नज़र में ऊंचा पद प्राप्त कर सकता है। वास्तव में सही इरादे और शुद्ध दिल के साथ व्यक्ति को उस कार्य के लिए भी पुरस्कृत किया जा सकता है जो वे करने में असमर्थ होता है। पैगंबर मुहम्मद ने कहा, "वास्तव में अल्लाह ने अच्छे कामों और बुरे कामों को दर्ज किया है।" फिर अल्लाह ने अपने आस-पास उपस्थितों को बताया कि, "जो कोई अच्छा काम करना चाहता है, लेकिन कर नहीं पाता, अल्लाह उसे एक पूर्ण अच्छे काम के रूप में दर्ज करता है…”[2]
रोजमर्रा की जिंदगी में हमारे इखलास का स्तर बढ़ता और कम होता है। इखलास प्राप्त करने या बढ़ाने के कई तरीके हैं। इनमे शामिल हैं;
· अच्छे कर्म करना। हम जितने अधिक कर्म करेंगे, वे उतने ही आसान होते जाएंगे, हम अल्लाह के उतने ही करीब होंगे और हमारे दिल और अधिक ईमानदार और शुद्ध हो जाएंगे।
· ज्ञान प्राप्त करना। यदि हमे पता हो कि हम क्या कर रहे हैं और क्यों कर रहे हैं, तो हम सभी कार्य शरीयत के अनुसार कर सकते हैं । ऐसा करने से हमारा हृदय कोमल और अधिक शुद्ध होगा।
· हमेशा अपने इरादे को जांचना। इमाम अहमद ने बताया कि कर्म करने से पहले हमें खुद से पूछना चाहिए, "क्या यह अल्लाह के लिए है?”
इखलास को वह नींव कहा गया है जिस पर हमारे सभी कर्म और कार्य बने हैं। यदि नींव भ्रष्ट है तो संरचना को आसानी से तोड़ा जा सकता है। अपने इखलास की रक्षा करना महत्वपूर्ण है और इस पर दूसरे भाग में चर्चा की जाएगी।
इसके अलावा आप यहां उपलब्ध लाइव चैट के माध्यम से भी पूछ सकते हैं।
- ईमानदारी से पूजा करना: इखलास क्या है? (भाग 2 का 1)
- ईमानदारी से पूजा करना: इखलास बनाम रिया (2 का भाग 2)
- वैध कमाई
- पैगंबर मुहम्मद के साथी: सलमान अल-फ़ारसी
- पैगंबर मुहम्मद के साथी: बिलाल इब्न रबाह
- पैगंबर मुहम्मद के साथी: अम्मार इब्न यासिर
- पैगंबर मुहम्मद के साथी: ज़ायद इब्न थाबित
- पैगंबर मुहम्मद के साथी: अबू हुरैरा
- इस्लामी शब्द (2 का भाग 1)
- इस्लामी शब्द (2 का भाग 2)
- नमाज़ में खुशू
- गैर-मुस्लिमो को सही राह पर आमंत्रित करना (3 का भाग 1): संदेश को यथासंभव सर्वोत्तम तरीके से फैलाएं
- गैर-मुस्लिमो को सही राह पर आमंत्रित करना (3 का भाग 2): सबसे पहले तौहीद
- गैर-मुस्लिमो को सही राह पर आमंत्रित करना (3 का भाग 3): परिवार के लोगो, दोस्तों और सहकर्मियों को आमंत्
- अल्लाह पर भरोसा और निर्भरता
- एक अच्छा दोस्त कौन है? (2 का भाग 1)
- एक अच्छा दोस्त कौन है? (भाग 2 का 2)
- अभिमान और अहंकार
- विश्वासियों की माताएं (2 का भाग 1): विश्वासियों की माताएँ कौन हैं?
- विश्वासियों की माताएं (2 का भाग 2): परोपकारिता और गठबंधन
- मुस्लिम समुदाय में शामिल होना
- उम्मत: मुस्लिम राष्ट्र
- इस्लामी तलाक के सरलीकृत नियम (2 का भाग 1)
- इस्लामी तलाक के सरलीकृत नियम (2 का भाग 2)
- एक मुस्लिम विद्वान की भूमिका (2 का भाग 1)
- एक मुस्लिम विद्वान की भूमिका (2 का भाग 2)
- मुसलमान होने के लाभ
- पवित्र शहरें; मक्का, मदीना और जेरूसलम (2 का भाग 1)
- पवित्र शहरें; मक्का, मदीना और जेरूसलम (2 का भाग 2)