न्यू मुस्लिम ई-लर्निंग साइट में आपका स्वागत है। यह नए मुस्लिम धर्मान्तरित लोगों के लिए है जो अपने नए धर्म को आसान और व्यवस्थित तरीके से सीखना चाहते हैं। इसमे पाठों को स्तरों के अंतर्गत संयोजित किए गया है। तो पहले आप स्तर 1 के तहत पाठ 1 पर जाएं। इसका अध्ययन करें और फिर इसकी प्रश्नोत्तरी करें। जब आप इसे पास कर लें तो पाठ 2 वगैरह पर आगे बढ़ें। शुभकामनाएं।
आपको पंजीकरण करने की सलाह दी जाती है ताकि आपके प्रश्नोत्तरी ग्रेड और प्रगति को सेव किया जा सकें। इसलिए पहले यहां पंजीकरण करें, फिर स्तर 1 के अंतर्गत पाठ 1 से शुरू करें और वहां से अगले पाठ की ओर बढ़ें। अपनी सुविधा अनुसार पढ़ें। जब भी आप इस साइट पर वापस आएं, तो बस "मैंने जहां तक पढ़ा था मुझे वहां ले चलें" बटन (केवल पंजीकृत उपयोगकर्ताओं के लिए उपलब्ध) पर क्लिक करें।
जब कोई छाया न होगी तो इन लोगो को छाया में रखा जायेगा (2 का भाग 2): छाया मे रहने का प्रयास
विवरण: लोगों के अंतिम 3 समूहों का वर्णन जिन्हें अल्लाह छाया मे रखेगा, दूसरा भाग।
द्वारा Aisha Stacey (© 2014 NewMuslims.com)
प्रकाशित हुआ 08 Nov 2022 - अंतिम बार संशोधित 07 Nov 2022
प्रिंट किया गया: 6 - ईमेल भेजा गया: 0 - देखा गया: 523 (दैनिक औसत: 2)श्रेणी: पाठ > इस्लामी मान्यताएं > परलोक
उद्देश्य
· यह जानना कि न्याय के दिन किस तरह के लोग अल्लाह के सिंहासन की छाया में होंगे।
अरबी शब्द
· हदीस - (बहुवचन - हदीसें) यह एक जानकारी या कहानी का एक टुकड़ा है। इस्लाम में यह पैगंबर मुहम्मद और उनके साथियों के कथनों और कार्यों का एक वर्णनात्मक रिकॉर्ड है।
· आयात - (एकवचन - आयत ) आयत शब्द के कई अर्थ हो सकते हैं। इसका लगभग हमेशा अल्लाह से सबूत के बारे में इस्तेमाल किया जाता है। इसके अर्थों मे शामिल है सबूत, छंद, सबक, संकेत और रहस्योद्घाटन।
· उम्मत - मुस्लिम समुदाय चाहे वो किसी भी रंग, जाति, भाषा या राष्ट्रीयता का हो।
· तक़वा - अल्लाह का खौफ या डर, धर्मपरायणता, ईश्वर-चेतना। यह बताता है कि व्यक्ति जो कुछ भी करता है उसे अल्लाह देख रहा है।
· शैतान - यह इस्लाम और अरबी भाषा में इस्तेमाल किया जाने वाला शब्द है जो शैतान यानि बुराई की पहचान को दर्शाता है।
· सदक़ा - स्वैच्छिक दान।
· ज़कात - अनिवार्य दान।
5. वह पुरुष जिसे सुंदरता और उसके पद के लिए महिला (अवैध संभोग के लिए) बुलाये, लेकिन वह कहे, 'मैं अल्लाह से डरता हूं'।
कृपया ध्यान दें कि, जैसा कि पाठ 1 में बताया गया है, यही इनाम उस महिला को भी दिया जायेगा जिसे कोई पुरुष लुभाये, लेकिन वह उसे यह कहते हुए फटकारे, "मैं अल्लाह से डरती हूं"। यह दुनिया प्रलोभनों से भरी हुई है और विशेष रूप से 21वीं सदी में हमे लगभग लगातार प्रलोभन मिलता है। प्रौद्योगिकी पर हमारी निर्भरता हमें कठिन चुनाव करने के लिए मजबूर करती है। हम शैतान और उसके सेवकों के बहकावे मे आ सकते हैं या हम धार्मिकता को चुन सकते हैं। एक लिंग का दूसरे लिंग के प्रति आकर्षण एक सदियों पुरानी समस्या है, एक सदियों पुराना प्रलोभन है, और बहुत से लोगों को सुंदरता का विरोध करने में विफल होने के कारण विनाश के रास्ते का लालच दिया गया है। यही कारण है कि क़ुरआन की आयतों (छंदों) में बताया गया है कि संयम रखने वाले को पुरस्कार मिलेगा और पैगंबर मुहम्मद ने अपनी उम्मत को चेतावनी भी दी थी कि आत्म-नियंत्रण नहीं सीखने वाले के लिए खतरा है।
“परन्तु, जो अपने पालनहार की महानता से डरा तथा अपने आपको मनमानी करने से रोका। तो निश्चय ही उसका आवास स्वर्ग है।” (क़ुरआन 79:40-41)
लोग स्वर्ग में प्रवेश करेंगे, आम तौर पर अल्लाह के प्रति तक़वा रखने पर, अल्लाह के आदेशों के प्रति पूर्ण सम्मान और आज्ञाकारिता के कारण, और अपने अच्छे आचरण के आधार पर। हालांकि अधिकांश लोग अपने मुंह और गुप्तांगों के गलत इस्तेमाल के कारण नरक की आग में प्रवेश करेंगे।”[1]
जो चीज़ विपरीत लिंग के प्रलोभन से दूर रहने के हमारे संकल्प को मजबूत करने की गारंटी है, वह है 'अल्लाह का डर'। तकवा अक्सर अल्लाह के डर की अवधारणा को परिभाषित करने के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला शब्द है। पैगंबर यूसुफ (जोसेफ़) तक़वा वाले व्यक्ति थे। ऐसा कहा जाता है कि वह अल्लाह न्याय के दिन जिन लोगो को छाया मे रखेगा वे उनके सरदारो में से एक होंगे। अपने मालिक की पत्नी के साथ छेड़खानी के प्रलोभन से निपटने का उनका तरीका हम सभी के लिए एक अच्छा उदाहरण है। जब उन्होंने खुद को उसकी सुंदरता से मोहित पाया तो उन्होंने अल्लाह की शरण ली।
“और उस स्त्री ने उसकी इच्छा की और वह (यूसुफ़) भी उसकी इच्छा करते, यदि अपने पालनहार का प्रमाण न देख लेते। इस प्रकार, हमने (उसे सावधान) किया ताकि उससे बुराई तथा निर्लज्जा को दूर कर दें। वास्तव में, वह हमारे शुध्द भक्तों में था।” (क़ुरआन 12:24)
6. वह मनुष्य जो दान देता है और उसको ऐसे छिपाता है कि उसका बायां हाथ नहीं जान पाए कि उसके दाहिना हाथ ने क्या दान दिया है
इस्लाम में दान दो प्रकार का है: ज़कात (अनिवार्य दान) और सदक़ा (स्वैच्छिक दान)। ज़कात का स्थान इतना ऊंचा है कि पूरे क़ुरआन में इसे अक्सर प्रार्थना के कार्य के साथ जोड़ा जाता है। सदक़ा और ज़कात देने पर इस्लाम बहुत जोर देता है और इन गुप्त रूप से दान के इन दो प्रकारो पर बहुत महान इनाम है। गुप्त रूप से दान देने पर, दान लेने वाले की गरिमा बनी रहती है और यह दान देने वाले को अपनी प्रशंसा करवाने से भी बचाता है। इस्लाम हमें बताता है कि गुप्त रूप से दान देना बहुत बेहतर तरीका है, लेकिन इससे यह नहीं होना चाहिए कि लोग सार्वजनिक रूप से दान देना बंद कर दें क्योंकि यह भी एक बहुत ही वांछनीय और पुरस्कृत कार्य है, हालांकि जानबूझकर अपने दिए गए दान पर ध्यान आकर्षित करवाना एक बहुत ही अवांछनीय गुण है।
अल्लाह हमें दौलत कभी भी दे सकता है; हालांकि वह इसे एक पल की सूचना दिए बिना भी ले सकता है। हम सभी ऐसे लोगों को जानते हैं जो रातोंरात दिवालिया हो गए हैं। क्योंकि इस्लाम में दान का उच्च स्थान है, यह महत्वपूर्ण है कि हम अपने धन को अल्लाह के रास्ते में खर्च करें, इससे पहले कि हमारे पास ऐसा करने का साधन खत्म हो जाये।
जो अल्लाह की राह में अपना धन दान करते हैं, उस (दान) की दशा उस एक दाने जैसी है, जिसने सात बालियां उगायी हों। (उसकी) प्रत्येक बाली में सौ दाने हों और अल्लाह जिसे चाहे और भी अधिक देता है तथा अल्लाह विशाल, ज्ञानी है। (क़ुरआन 2:261)
7. वह व्यक्ति जो अकेले में अल्लाह को याद करता है और रोता है
पैगंबर मुहम्मद ने कहा, "दो आंखें ऐसी हैं जिसे आग नही जलाएगी, एक तो वह आंख जो अल्लाह के डर से रोती है और दूसरी वह आंख जो रात भर सतर्क रहती है और अल्लाह की खातिर पहरा देती है।”[2]
पहले प्रकार में वे लोग आते हैं जिनकी आंखे अल्लाह को याद करते ही आंसुओ से भर जाती है। वे रोते हैं जब वे उन पापों के बारे में सोचते हैं जो उन्होंने किए हैं या वो पाप जो वो कर सकते थे यदि उन्होंने अल्लाह की महान दया को याद नहीं किया होता। कभी-कभी समूह में नमाज़ पढ़ते समय भावनाओं से बह जाना आसान है और बहुत से लोग रो देते हैं। हालांकि यह एक पुरस्कृत और सराहनीय कार्य है, लेकिन जो अकेले में रोते हैं, जब उन्हें देखने वाले अल्लाह के अलावा कोई नहीं है, वे एक विशेष श्रेणी मे आते हैं और उन्हें अल्लाह की छाया में आश्रय दिया जाएगा।
इसके अलावा आप यहां उपलब्ध लाइव चैट के माध्यम से भी पूछ सकते हैं।
- इस्लाम में परवरिश (2 का भाग 1)
- इस्लाम मे परवरिश (2 का भाग 2)
- इस्लाम में बड़े पाप (2 का भाग 1): बड़ा पाप क्या होता है?
- इस्लाम में बड़े पाप (2 का भाग 2): बड़े पाप और इनसे पश्चाताप करने का तरीका
- तीर्थयात्रा (हज) (3 का भाग 1)
- तीर्थयात्रा (हज) (3 का भाग 2)
- तीर्थयात्रा (हज) (3 का भाग 3)
- सही मार्गदर्शित खलीफा: अबू बक्र (2 का भाग 1)
- सही मार्गदर्शित खलीफा: अबू बक्र (2 का भाग 2)
- सही मार्गदर्शित खलीफा: उमर इब्न अल-खत्ताब (2 का भाग 1)
- सही मार्गदर्शित खलीफा: उमर इब्न अल-खत्ताब (2 का भाग 2)
- सही मार्गदर्शित खलीफा: उस्मान इब्न अफ्फान (2 का भाग 1)
- सही मार्गदर्शित खलीफा: उस्मान इब्न अफ्फान (2 का भाग 2)
- सही मार्गदर्शित खलीफा: अली इब्न अबी तालिब (2 का भाग 1)
- सही मार्गदर्शित खलीफा: अली इब्न अबी तालिब (2 का भाग 2)
- न्याय के दिन की घटनाएं (3 का भाग 1): दिन शुरू होगा
- न्याय के दिन की घटनाएं (3 का भाग 2): न्याय से पहले
- न्याय के दिन की घटनाएं (3 का भाग 3): न्याय शुरू होगा
- इस्लाम में ब्याज (2 का भाग 1)
- इस्लाम में ब्याज (2 का भाग 2)
- सूरह अल-अस्र की व्याख्या
- कब्र में प्रश्न (2 का भाग 1): मृत्यु अंत नहीं है
- कब्र में प्रश्न (2 का भाग 2): न्याय के दिन तक आपका ठिकाना
- तकवा के फल (2 का भाग 1)
- तकवा के फल (2 का भाग 2)
- सूरह अल-इखलास की व्याख्या
- इस्लाम में पड़ोसियों के अधिकार (2 का भाग 1): पड़ोसियों के साथ दयालु व्यवहार
- इस्लाम में पड़ोसियों के अधिकार (2 का भाग 2): पड़ोसी - अच्छा और बुरा
- जब कोई छाया न होगी तो इन लोगो को छाया में रखा जायेगा (2 का भाग 1): अल्लाह की दया प्रकट होगी
- जब कोई छाया न होगी तो इन लोगो को छाया में रखा जायेगा (2 का भाग 2): छाया मे रहने का प्रयास