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सही मार्गदर्शित खलीफा: उस्मान इब्न अफ्फान (2 का भाग 2)

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विवरण: पैगंबर मुहम्मद के साथी, दोस्त और इस्लाम के तीसरे सही मार्गदर्शित खलीफा की एक संक्षिप्त जीवनी और उस्मान इब्न अफ्फान की कुछ उपलब्धियों और चुनौतियों पर एक संक्षिप्त नज़र।

द्वारा Aisha Stacey (© 2013 NewMuslims.com)

प्रकाशित हुआ 08 Nov 2022 - अंतिम बार संशोधित 07 Nov 2022

प्रिंट किया गया: 21 - ईमेल भेजा गया: 0 - देखा गया: 1,247 (दैनिक औसत: 2)


उद्देश्य:

·उस्मान इब्न अफ्फान के जीवन के बारे में जानना और इस्लाम के इतिहास में उनके महत्व को समझना।

अरबी शब्द:

·खलीफा (बहुवचन: खुलाफ़ा) - वह प्रमुख मुस्लिम धार्मिक और नागरिक शासक है, जिन्हें पैगंबर मुहम्मद का उत्तराधिकारी माना जाता है। खलीफा का मतलब सम्राट नही है।

·उम्मत - मुस्लिम समुदाय चाहे वो किसी भी रंग, जाति, भाषा या राष्ट्रीयता का हो।

·रकात - नमाज़ की इकाई।

Uthman2.jpgएक दिन जब पैगंबर (उन पर अल्लाह की दया और आशीर्वाद हो) मदीना में उहुद के पहाड़ पर थे, पहाड़ हिल गया और पैगंबर ने उसे एक छड़ी से मारा और कहा: "ऐ उहूद, दृढ़ रहो! वास्तव में तुम पर एक पैगंबर, एक सिद्दीक (सच बोलने वाला) और दो शहीद हैं। 'सिद्दीक' शब्द इस्लाम के पहले खलीफा अबू बक्र के लिए था, और दो शहीद उमर और उस्मान के लिए। 644 सीई में उमर इब्न अल-खत्ताब की हत्या के बाद उस्मान खलीफा बने। उमर ने 12 वर्षों तक शासन किया, और उनके शासन के दौरान, पूरे ईरान, अधिकांश उत्तरी अफ्रीका, कॉकस और साइप्रस को इस्लामिक खिलाफत में जोड़ा गया। जब उम्मत के दूसरा खलीफा उमर मृत्यु शय्या पर थे, तो उन्होंने एक नया सरदार चुनने के लिए छह लोगों की एक परिषद नियुक्त की। इस प्रकार उस्मान इब्न अफ्फान को परामर्श और सावधानीपूर्वक विचार-विमर्श की प्रक्रिया के माध्यम से खलीफा नियुक्त किया गया था। उस्मान 70 वर्ष के थे जब उन्हें खलीफा नियुक्ति किया गया था। उन्होंने कई वर्षों तक इस जीवन के सुखों से परहेज किया था ताकि वे अल्लाह के नजदीक जा सकें, इसलिए जब उन्होंने लोगों को नव निर्वाचित खलीफा के रूप में संबोधित किया तो यह कोई आश्चर्य नहीं था कि उन्होंने धर्मपरायणता और चिंता को अपनाया और यह उनके शासनकाल प्रतीक था।

उस्मान नौसेना को संगठित करने वाले पहले खलीफा थे। उन्होंने उम्मत के प्रशासनिक प्रभागों को पुनर्गठित किया और कई सार्वजनिक परियोजनाओं का विस्तार और आरंभ किया। उस्मान ने अपने शासनकाल के दौरान कई मस्जिदों, स्कूलों और गेस्ट हाउसों का निर्माण कराया। उन्होंने कृषि को प्रोत्साहित करने के लिए नहरों के निर्माण का जायजा लिया और विजित क्षेत्रों में भूमि खरीदने से प्रतिबंध हटा दिया। लोग उस्मान को प्यार करते थे क्योंकि वह बेहद उदार थे और उन्होंने कम भाग्यशाली लोगों के लिए एक संरचित कल्याण प्रणाली स्थापित किया था। इस प्रणाली के माध्यम से लोगों को विलासिता का आनंद मिलता था जो आनंद खलीफा स्वयं नहीं लेते थे। इस अनुकरणीय गुण के साथ, उस्मान न्याय के मामलों में बहुत दृढ़ और सख्त थे। इस संबंध में उनका अपने परिवार के प्रति कोई पक्षपात नहीं था; एक बार जब उनके सौतेले भाई ने अपराध किया था और उसे उस्मान के सामने दंड दिलवाने लाया गया, तो खलीफा के साथ उसके संबंध के कारण उसकी सजा को कम या माफ नहीं किया गया था।

उस्मान बहुत विनम्र भी थे और उन्हें बिना किसी साथी या अंगरक्षक के अकेले मस्जिद में कंबल ओढ़कर सोते हुए या खच्चर पर सवारी करते हुए देखा जा सकता था। वह एक धर्मपरायण व्यक्ति थे जो जुनून के साथ क़ुरआन से प्यार करते थे। उनके शासनकाल के दौरान ही विभिन्न भाषाओं मे पढ़े जाने वाले क़ुरआन को एक प्रति में मानकीकृत किया गया था जिसे आज 'मुशफ उस्मान' के नाम से जाना जाता है। इस मानकीकृत प्रति को उम्मत ने सर्वसम्मति से स्वीकार कर लिया और यह वही प्रति है जिसे हम आज पढ़ते हैं।

हालांकि ख़िलाफ़त का विस्तार तेजी से हो रहा था, लेकिन गलत मंशा वाले लोगों ने युवा और अनुभवहीन लोगों के बीच असंतोष के बीज बोना शुरू कर दिया; इस प्रकार, उस्मान के शासन के अंतिम वर्षों में एक विद्रोह हुआ। पैगंबर (उन पर अल्लाह की दया और आशीर्वाद हो) ने ऐसा होने की भविष्यवाणी की थी, जैसा कि उन्होंने कहा था: "इस्लाम 35 वर्ष तक एक स्थिर पीसने वाले पत्थर की तरह सुचारू रूप से चलेगा।" वर्ष 35 उस वर्ष को इंगित करता है जिसमें उस्मान (अल्लाह उन से प्रसन्न हो) की हत्या कर दी गई थी।

ख़िलाफ़त के विभिन्न हिस्सों से मदीना में एकत्र हुए विद्रोहियों ने उस्मान के घर को 40 दिनों तक घेर रखा था, जिस में उन्हें पीने का पानी लेने से भी रोका गया। उस्मान उन्हें संबोधित करने के लिए बाहर आए, लेकिन उनमें से कुछ संतुष्ट नहीं हुए। शुरुआत मे विद्रोहियों को खाड़ी में रोका गया था उस्मान के साथियों की एक बटालियन द्वारा, जो उनके घर पर पहरा देती थी, जिनमें अल-हसन और अल-हुसैन (अली के बेटे) थे, (अल्लाह उन सभी से प्रसन्न हो)। उस्मान ने उन सभी को अपने घर वापस जाने का आदेश दिया क्योंकि वह किसी का खून नहीं बहाना चाहते थे। उनके जाने के बाद विद्रोही उनके घर में घुस गए और उनकी पत्नी के सामने उनकी हत्या कर दी। जैसे ही हत्यारे की तलवार लगी, उस्मान निम्नलिखित कह रहे थे: “उनके विरुध्द तुम्हारे लिए अल्लाह पर्याप्त है और वह सब सुनने वाला और जानने वाला है।” (क़ुरआन 2:137)

पैगंबर मुहम्मद ने भविष्यवाणी की थी कि उस्मान को बहुत मुश्किल परिस्थिति का सामना करना पड़ेगा, जब उन्होंने कहा, "उस्मान, शायद ईश्वर आपको एक उपाधि देगा और यदि लोग चाहें कि आप ये उपाधि त्याग दें, तो उनके लिए इसे न त्यागना।" हालांकि इन विद्रोहियों ने मांग की थी कि वह खलीफा का पद छोड़ दें, लेकिन उन्होंने इनकार कर दिया और उनकी मांगों को नहीं माना। ईश्वर और उसके दूत के प्रति उनके प्रेम ने उन्हें बुढ़ापे और अत्यधिक कठिनाई का सामना करने के लिए मजबूत और विनम्र दोनों बनाए रखा।

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