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इस्लाम में पापों की अवधारणा (3 का भाग 3)

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विवरण: इस पाठ मे हम पाठकों को पापों, उनके प्रकार, और उनकी गंभीरता से परिचित कराएंगे और बताएंगे की उनके लिए क्षमा कैसे मांगे और अगले जीवन में ये व्यक्ति को कैसे प्रभावित करेंगे।

द्वारा Imam Mufti (© 2013 NewMuslims.com)

प्रकाशित हुआ 08 Nov 2022 - अंतिम बार संशोधित 07 Nov 2022

प्रिंट किया गया: 21 - ईमेल भेजा गया: 0 - देखा गया: 1,264 (दैनिक औसत: 3)


उद्देश्य:

·उन उपायों को जानना जिनसे पाप क्षमा होते हैं।

·क्षमा न किये जाने वाले पाप के बारे में जानना।

अरबी शब्द:

·हज - मक्का की तीर्थयात्रा जहां तीर्थयात्री कुछ अनुष्ठानों का पालन करते है। हज इस्लाम के पांच स्तंभों में से एक है, जिसे हर वयस्क मुसलमान को अपने जीवन में कम से कम एक बार अवश्य करना चाहिए यदि वे इसे वहन कर सकते हैं और शारीरिक रूप से सक्षम हैं।

·काफ़िर - (बहुवचन: कुफ़्फ़ार) अविश्वासी।

·लैलत-अल-क़द्र - उपवास के महीने रमज़ान के आखिरी दस दिनों मे एक धन्य रात।

·रमजान - इस्लामी चंद्र कैलेंडर का नौवां महीना। यह वह महीना है जिसमें अनिवार्य उपवास निर्धारित किया गया है।

·शिर्क - एक ऐसा शब्द जिसका अर्थ है अल्लाह के साथ भागीदारों को जोड़ना, या अल्लाह के अलावा किसी अन्य को दैवीय बताना, या यह विश्वास करना कि अल्लाह के सिवा किसी अन्य में शक्ति है या वो नुकसान या फायदा पहुंचा सकता है।

·उम्मत - मुस्लिम समुदाय चाहे वो किसी भी रंग, जाति, भाषा या राष्ट्रीयता का हो।

व्यक्ति के ऊपर से पाप की सजा निम्नलिखित द्वारा हटा दी जाती है:

1. पश्चाताप

ConceptofSin3.jpgपश्चाताप करने की शर्तें हैं जिन पर पहले चर्चा की जा चुकी है। यदि ये शर्तें पूरी नहीं होती हैं तो पश्चाताप मान्य नहीं होता है। पश्चाताप की शर्तों को पूरा करना क्षमा की गारंटी होता है। पश्चाताप बड़े पापों से भी क्षमा की गारंटी देता है। अल्लाह कहता है:

“आप कह दें मेरे उन भक्तों से, जिन्होंने अपने ऊपर अत्याचार किये हैं कि तुम निराश न हो अल्लाह की दया से। वास्तव में, अल्लाह क्षमा कर देता है सब पापों को। निश्चय वह अति क्षमी, दयावान् है।’” (क़ुरआन 39:53)

“वही है, जो स्वीकार करता है अपने भक्तों की तौबा तथा क्षमा करता है दोषों को” (क़ुरआन 42:25)

2. क्षमा के लिए प्रार्थना

क्षमा मांगना पश्चाताप जैसी सख्त शर्तों से बंधा नहीं है। यह केवल एक प्रार्थना है जिसे अल्लाह स्वीकार कर भी सकता है या नही भी। पैगंबर ने कहा: "यदि कोई व्यक्ति पाप करता है और फिर कहता है, 'ऐ ईश्वर, मैंने पाप किया है, इसलिए मुझे क्षमा करें,' तो अल्लाह कहता है, 'मेरा दास जानता है कि उसका एक ईश्वर है जो उसके पापों को क्षमा कर सकता है या उसके लिए दंड दे सकता है; मैंने अपने दास को क्षमा कर दिया...’”[1]

3. अच्छे कर्म करने से पाप मिटते हैं

अल्लाह कहता है:

“वास्तव में, सदाचार दुराचारों को दूर कर देते हैं।” (क़ुरआन 11:114)

·दैनिक नमाज़ और शुक्रवार की नमाज़

“प्रत्येक दैनिक नमाज़ और एक शुक्रवार की नामज अगले शुक्रवार की नामज तक के बीच के समय के लिए प्रायश्चित है, यदि कोई बड़ा पाप न किया जाये।”[2]

·वुज़ू

“जब कोई मुसलमान या आस्तिक अपना चेहरा धोता है (वुज़ू करते हुए), तो हर पाप जो उसने अपनी आंखो से किया है, उसके चेहरे पर पानी से या पानी की आखिरी बूंद से धुल जाता है; जब वह अपने हाथ धोता है, तब जो पाप उसके हाथों ने किया है, वह उसके हाथों पर से पानी की आखिरी बूंद से धूल जाता है; और जब वह अपने पांव धोता है, तब उसके पांवों के सब पाप पानी की आखिरी बूंद से धूल जाते हैं; जब तक वह अंत में अपने सभी पापों से शुद्ध नहीं हो जाता।”[3]

·रमजान का उपवास करना

“जो कोई आस्था और इनाम की उम्मीद से रमजान का उपवास रखता है, उसके पिछले गुनाह माफ कर दिए जाते हैं।”[4]

“जो कोई लैलत अल-क़द्र की रात आस्था और इनाम की उम्मीद से नमाज़ में बिताता है, उसके पिछले गुनाह माफ़ कर दिए जाते हैं।”[5]

·हज

“जो कोई काबा की तीर्थयात्रा करता है, और इस दौरान अपनी पत्नी के साथ यौन संबंध नहीं बनाता है और पापपूर्ण व्यवहार नहीं करता है, तो वह पाप से ऐसे मुक्त हो जाता है मानो वो अभी पैदा हुआ है।”[6]

अच्छे काम जैसे नमाज़, रोज़ा, हज, आदि अल्लाह के अधिकारों के खिलाफ़ किये गए अपराध के लिए प्रायश्चित करते हैं। वो पाप जिनमे अन्य लोगों के अधिकारों का उलंघन होता है, उसके लिए व्यक्ति को पश्चाताप करना पड़ता है।

4. साथी विश्वासियों की प्रार्थना जैसे अंतिम संस्कार की प्रार्थना

अल्लाह के दूत ने कहा: "ऐसा मुस्लिम व्यक्ति जिसकी मृत्यु हो जाये, और चालीस लोग उसके लिए अंतिम संस्कार की प्रार्थना करें, और अल्लाह के साथ किसी को साझी न बनाया हो, तो अल्लाह उस व्यक्ति के लिए उनकी मध्यस्थता स्वीकार करेगा।[7]

स्वर्गदूत भी आस्तिक के लिए प्रार्थना करते हैं:

“वे (स्वर्गदूत) जो अपने ऊपर उठाये हुए हैं अर्श (सिंहासन) को तथा जो उसके आस-पास हैं, वे पवित्रता गान करते रहते हैं अपने पालनहार की प्रशंसा के साथ तथा उसपर ईमान रखते हैं और क्षमा याचना करते रहते हैं उनके लिए, जो ईमान लाये हैं। ऐ हमारे पालनहार! तूने घेर रखा है प्रत्येक वस्तु को (अपनी) दया तथा ज्ञान से। अतः, क्षमा कर दे उनको जो क्षमा मांगे तथा चलें तेरे मार्ग पर तथा बचा ले उन्हें, नरक की यातना से।” (क़ुरआन 40:7)

5. पुनरुत्थान के दिन पैगंबर की मध्यस्थता

पैगंबर ने कहा:

“मेरी मध्यस्थता मेरी उम्मत में से उन लोगों के लिए होगी जिन्होंने बड़े पाप किए हैं।”[8]

और उन्होंनें कहा:

“मुझे अपनी आधी उम्मत को स्वर्ग में दाखिल करने और मध्यस्थता करने के बीच विकल्प दिया गया था, और मैंने मध्यस्थता को चुना।”[9]

6. अल्लाह इस दुनिया की विपत्तियों से पापों को मिटाता है

पैगंबर ने कहा: "इस दुनिया में विश्वासी को कोई थकान, थकावट, चिंता, शोक, संकट या नुकसान, यहां तक ​​​​कि एक कांटा भी चुभने पर, अल्लाह उसके कुछ पापों को क्षमा कर देता है।[10]

7. कष्ट, तंगी, और कब्र का भय भी पापों का प्रायश्चित करता है।

8. पुनरुत्थान के दिन की भयावहता, संकट और कठिनाई से गुजरना कुछ पापों का प्रायश्चित कर देगा।

9. सबसे दयालु की दया

अल्लाह अपनी दया से, बिना किसी कारण के बहुत से दासों को क्षमा कर देगा।[11]

वो पाप जिनकी क्षमा नही है

यदि कोई व्यक्ति काफिर हो के मर जाता है तो उसे माफ नहीं किया जाएगा। क़ुरआन कहता है:

“निःसंदेह अल्लाह ये नहीं क्षमा करेगा कि उसका साझी बनाया जाये और उसके सिवा जिसे चाहे, क्षमा कर देगा।” (क़ुरआन 4:48)

“निश्चय वे काफ़िर हो गये, जिन्होंने कहा कि अल्लाह मर्यम का पुत्र मसीह़ ही है। जबकि मसीह़ ने कहा थाः ऐ बनी इस्राईल! उस अल्लाह की इबादत (वंदना) करो, जो मेरा पालनहार तथा तुम्हारा पालनहार है, वास्तव में, जिसने अल्लाह का साझी बना लिया, उसपर अल्लाह ने स्वर्ग को ह़राम (वर्जित) कर दिया और उसका निवास स्थान नर्क है तथा अत्याचारों का कोई सहायक न होगा।” (क़ुरआन 5:72)



फुटनोट:

[1] सहीह अल-बुखारी, सहीह मुस्लिम

[2] सहीह मुस्लिम

[3] सहीह मुस्लिम

[4] सहीह अल-बुखारी, सहीह मुस्लिम

[5] सहीह अल-बुखारी

[6] सहीह अल-बुखारी

[7] सहीह मुस्लिम

[8] अबू दाऊद

[9] सहीह अल-जामी

[10] सहीह अल-बुखारी, सहीह मुस्लिम

[11] सहीह मुस्लिम

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