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इस्लाम में नवाचार (2 का भाग 1): बिदअत के दो प्रकार

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विवरण: बिदअत शब्द के अर्थ का संक्षिप्त परिचय और इस बात की व्याख्या कि हमें इस्लाम धर्म मे जुड़ने वाले नए मामलों से क्यों बचना चाहिए।

द्वारा Aisha Stacey (© 2013 NewMuslims.com)

प्रकाशित हुआ 08 Nov 2022 - अंतिम बार संशोधित 07 Nov 2022

प्रिंट किया गया: 22 - ईमेल भेजा गया: 0 - देखा गया: 1,282 (दैनिक औसत: 2)


उद्देश्य:

·बिदअत शब्द का अर्थ समझना।

·यह समझना कि प्रौद्योगिकी और परिवहन जैसे सांसारिक नवाचारों को त्यागने या टालने की जरुरत नहीं है।

·इस्लाम में क्या नवाचार है और क्या नहीं, इसे पहचानने में सक्षम होना।

अरबी शब्द:

·बिदअत - नवाचार।

·दीन - इस्लामी रहस्योद्घाटन पर आधारित जीवन जीने का तरीका; मुसलमान की आस्था और आचरण का कुल योग। दीन का प्रयोग अक्सर आस्था, या इस्लाम धर्म के लिए किया जाता है।

·ज़ुहर - दोपहर की नमाज़।

·रकात - नमाज़ की इकाई।

·रजब - इस्लामी चंद्र कैलेंडर के 7वें महीने का नाम।

·शरिया - इस्लामी कानून।

·सुन्नत - अध्ययन के क्षेत्र के आधार पर सुन्नत शब्द के कई अर्थ हैं, हालांकि आम तौर पर इसका अर्थ है जो कुछ भी पैगंबर ने कहा, किया या करने को कहा।

Innovations1a.jpgबिदअत एक अरबी शब्द है जिसका मूल 'अल-बदा' है, इसका अर्थ है कुछ ऐसा बनाना जो पहले न था। इसके लिए हिंदी में हम "नवाचार" शब्द का प्रयोग करेंगे। बिदअत पर गहराई से चर्चा करने से पहले हमें दो प्रकार के बिदअत के बीच के अंतर को समझना चाहिए। नवाचार का पहला प्रकार हमारे सांसारिक जीवन से संबंधित चीजों के मामले में है। तकनीक, बिजली और परिवहन जैसी चीजें इस श्रेणी में आती हैं। इन चीज़ों की अनुमति है और कई मामलों में इसे वांछनीय भी कहा जा सकता है। दूसरे प्रकार का नवाचार दीन के मामलों से संबंधित है। धर्म के मामलों में बिदअत की अनुमति नहीं है और हमारे धर्म में नई चीजों को शामिल करना खतरनाक हो सकता है। खतरा होने की वजह से, पैगंबर मुहम्मद की सुन्नत से कई उद्धरण और परंपराएं हैं जो इसके बारे मे बताती हैं।

“जो कोई भी हमारे इस मामले में कुछ नया करता है जिसका हमने आदेश नहीं दिया है, उसे अस्वीकार कर दिया जाना चाहिए”[1]

सबसे अच्छा पाठ अल्लाह की किताब है और सबसे अच्छा मार्गदर्शन और उदाहरण मुहम्मद का है, और सभी चीजों में सबसे बुरी चीज़ धर्म में नवाचार है, हर धार्मिक नवाचार एक त्रुटि और कुपथ है।”[2]

“…हर धार्मिक नवाचार पथभ्रष्टता का जरिया है और पथभ्रष्टता का हर जरिया नर्क में है।”[3]

इस्लाम के दीन मे बिदअत की कोई जगह नही है। इस्लाम का धर्म पूर्ण है और धर्म में नए मामलों को जोड़ना या नवाचार करने की कोई आवश्यकता नहीं है। इसकी पुष्टि क़ुरआन के कथन से होती है "आज मैंने तुम्हारा धर्म तुम्हारे लिए परिपूर्ण कर दिय है तथा तुमपर अपना पुरस्कार पूरा कर दिया और तुम्हारे लिए इस्लाम को धर्म स्वरूप स्वीकार कर लिया है" (क़ुरआन 5:3)

जब कोई व्यक्ति कुछ नवाचार करता है और दीन में कुछ जोड़ता है जो पहले से नहीं है, तो उसका तात्पर्य है कि धर्म मे कमी है और सुधार की आवश्यकता है, या तात्पर्य यह है कि अल्लाह ने अपने धर्म को पूरा और पूर्ण नहीं बनाया। और स्पष्ट रूप से ऐसा नहीं है, ये हम उपरोक्त छंद मे देख सकते हैं।

बिदअत से बचना क्यों जरूरी है

जबकि अज्ञानता के कारण गलती करने वाले व्यक्ति को अल्लाह दंडित नहीं करता है, तो हम भी अपनी क्षमता के अनुसार खुद को शिक्षित करने के लिए बाध्य हैं। वास्तविकता यह है कि अल्लाह किसी कार्य को तब तक स्वीकार नहीं करता जब तक इसकी दो महत्वपूर्ण शर्ते पूरी न हो जाए। पहली शर्त यह है कि सर्वशक्तिमान अल्लाह को खुश करने के इरादे से कार्य करना। दूसरा यह है कि क़ुरआन में बताये अनुसार और पैगंबर मुहम्मद के प्रामाणिक सुन्नत के अनुसार कार्य करना। कार्य सुन्नत के अनुरूप होना चाहिए और इसके विपरीत नहीं होना चाहिए।

इसे ध्यान में रखते हुए आइए हम बिदअत के अर्थ पर फिर से विचार करें। भाषाई रूप से, इसका अर्थ है कुछ नया जोड़ना या नवाचार करना, जो पहले से मौजूद नही है। कानूनी तौर पर, यह अल्लाह के दीन में कुछ नया जोड़ना है। भले ही कोई कार्य या नवाचार अल्लाह के करीब आने या उसकी पूजा करने के तरीके के रूप में किया गया हो, फिर भी यह स्वीकार्य नहीं होगा। यह फिर भी पाप ही रहेगा।

हमें कैसे पता चलेगा कि कौन सा पूजा का कार्य वास्तव में बिदअत का कार्य है?

आपने कई मौकों पर यह कहते सुना होगा कि इस्लाम सूचित ज्ञान का धर्म है। इसका तात्पर्य यह है कि विश्वासी चीजों को उसके रूप के आधार पर नही स्वीकारते। एक विश्वासी दीन के विवरण को सीखने और समझने के लिए समय लेता है और वह उन कार्यों या कथनों पर सवाल करना सीखता है जो स्पष्ट प्रमाण के साथ प्रस्तुत नहीं किए जाते हैं। यदि व्यक्ति इस्लाम सीखने के लिए समय लेता है तो वह पहचानने में सक्षम होता है कि सुन्नत क्या है और बिदअत क्या है।

सुन्नत और बिदअत के बीच अंतर करने के छह तरीके निम्नलिखित हैं:

1.किसी ऐसे कारण या तर्क से संबंधित पूजा का कार्य जिसका इस्लाम मे विधान नही है:

पूजा के कार्य को किसी ऐसे कारण या तर्क से जोड़ने की अनुमति नहीं है जो क़ुरआन या पैगंबर मुहम्मद की प्रामाणिक सुन्नत में वैधानिक नही है। इसका एक उदाहरण रजब के इस्लामी महीने के सातवें दिन रात में प्रार्थना करने के लिए जागना है, इस विश्वास के साथ कि पैगंबर मुहम्मद इस रात स्वर्ग मे गए थे। इस्लाम में रात में प्रार्थना करने के क़ुरआन और सुन्नत से पर्याप्त सबूत हैं और ये वैधानिक है, हालांकि जब इसे इस कारण से किया जाए तो यह एक बिदअत बन जाता है क्योंकि यह एक ऐसे कारण पर आधारित और निर्मित है जो शरिया से स्थापित नहीं है।

2.पूजा के प्रकार:

यह भी आवश्यक है कि पूजा का कार्य शरिया के अनुसार हो। यदि कोई व्यक्ति अल्लाह की पूजा ऐसे पूजा के कार्यो के साथ करता है जिसका प्रकार या तरीका इस्लाम मे वैधानिक नहीं है, तो इसे स्वीकार नहीं किया जाएगा। उदाहरण के लिए घोड़े की बलि देने की अनुमति नहीं है। यह बिदअत है, क्योंकि ऐसा करने पर दीन में कुछ नया जोड़ा जायेगा। इस्लाम के शरिया मे बलिदान सिर्फ भेड़, पशु, मेढ़ा और ऊंट तक सीमित है।

हम पाठ 2 में बिदअत की चर्चा जारी रखेंगे और सुन्नत और बिदअत के बीच अंतर करने के लिए और अधिक तरीकों को देखेंगे और कुछ सामान्य बिदअत को सूचीबद्ध करेंगे जो हम हर दिन मस्जिदों में और दुनिया भर के मुसलमानों के बीच देखते हैं।



फुटनोट:

[1] सहीह बुखारी, सहीह मुस्लिम

[2] सहीह मुस्लिम

[3] अत-तिर्मिज़ी

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