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ईद-उल-अजहा शुरू से आखिर तक (3 का भाग 2)
विवरण: मुसलमान दो त्योहार मनाते हैं: ईद उल-फ़ित्र और ईद-उल-अजहा। इन पाठों में वह सब कुछ शामिल है जो आपको ईद-उल-अजहा के बारे में जानने की जरूरत है ताकि ये आपके जीवन का हिस्सा बन सके और आप अल्लाह को खुश कर सकें।
द्वारा Imam Mufti (© 2013 NewMuslims.com)
प्रकाशित हुआ 08 Nov 2022 - अंतिम बार संशोधित 07 Nov 2022
प्रिंट किया गया: 19 - ईमेल भेजा गया: 0 - देखा गया: 851 (दैनिक औसत: 2)श्रेणी: पाठ > पूजा के कार्य > समारोह
उद्देश्य:
· पशु बलि के पीछे के ज्ञान को जानना।
· उधिय्याह के बुनियादी नियमों को जानना।
· ईद-उल-अजहा से संबंधित पैगंबर मुहम्मद की 5 सुन्नत (अनुशंसित कर्म ) सीखना।
अरबी शब्द:
· अज़ान - मुसलमानों को पांच अनिवार्य प्रार्थनाओं के लिए बुलाने का एक इस्लामी तरीका।
· ईद - त्योहार या उत्सव। मुसलमान दो प्रमुख धार्मिक अवकाश मनाते हैं, जिन्हें ईद-उल-फितर (जो रमजान के बाद आता है) और ईद-उल-अज़हा (जो हज के समय होता है) कहा जाता है।
· ईद-उल-अजहा - "बलिदान का पर्व"।
· ग़ुस्ल - अनुष्ठान स्नान
· इक़ामाह - यह शब्द प्रार्थना के दूसरे आह्वान को संदर्भित करता है जो प्रार्थना शुरू होने से ठीक पहले दिया जाता है।
· ख़ुतबा - प्रवचन।
· रकात - प्रार्थना की इकाई।
· सुन्नत - अध्ययन के क्षेत्र के आधार पर सुन्नत शब्द के कई अर्थ हैं, हालांकि आम तौर पर इसका अर्थ है जो कुछ भी पैगंबर ने कहा, किया या करने को कहा।
· उधिय्याह - बलि का जानवर।
ईद-उल-अजहा पर पशु बलि को समझना
अपने पुत्र की बलि देना इब्राहीम की आस्था की परीक्षा थी। इब्राहीम के परीक्षणों को याद करने और याद रखने के लिए मुसलमान भेड़, ऊंट या बकरी जैसे जानवर की बलि देते हैं। इस प्रथा को अक्सर अविश्वासिओं द्वारा गलत समझा जाता है। इसलिए, यहां कई बिंदुओं को समझना चाहिए:
पहला, इसमे कुछ विशेष अनुष्ठान शामिल नहीं है सिवाय इसके कि बलि वाले जानवर मे कुछ जरुरी चीज़ें होनी चाहिए। जिस प्रकार वर्ष में किसी भी समय पशु का वध किया जाता है उसी प्रकार से उसकी बलि दी जाती है। फर्क सिर्फ नियत का होता है। नियमित वध के लिए, इरादा मांस होता है, लेकिन ईद-उल-अजहा के लिए नियत होती है इब्राहीम के परीक्षण को याद करके अल्लाह की पूजा।
दूसरा, ईश्वर के नाम का उच्चारण किया जाता है क्योंकि अल्लाह ने हमें जानवरों पर अधिकार दिया है और हमें उनके मांस को खाने की इजाजत दी है, लेकिन सिर्फ अल्लाह के नाम पर। वध के समय अल्लाह का नाम लेकर, हम खुद को याद दिलाते हैं कि एक जानवर का जीवन भी पवित्र है और हम केवल अल्लाह के नाम पर ही इसका जीवन ले सकते हैं क्योंकि अल्लाह ने ही इसे जीवन दिया था।
तीसरा, अच्छे कर्म से व्यक्ति के पापों का प्रायश्चित होता है। क़ुर्बानी करना पूजा का एक ऐसा कार्य है जो कोई अपवाद नहीं है। पैगंबर मुहम्मद ने कहा कि ईद-उल-अजहा पर सबसे प्रिय काम क़ुर्बानी करना है और यह पुनरुत्थान के दिन अपने सींगों, खुरों और बालों के साथ वापस आएगा। इसका खून जमीन पर गिरने से पहले ही अल्लाह इसे स्वीकार कर लेता है। "तो अपने हृदय को इसमें आनन्दित होने दो।" (तिर्मिज़ी, इब्न माजा)
ईद-उल-अजहा के दिन क़ुर्बानी के नियम
ए) जानवर का प्रकार
एक ही भेड़ को एक व्यक्ति या एक परिवार के लिए बलिदान के रूप में क़ुर्बान किया जा सकता है। "अल्लाह के दूत के समय मे, एक आदमी अपने और अपने घर के सदस्यों की ओर से एक भेड़ की बलि देता था, और वे उसका मांस खाते थे और कुछ दूसरों को देते थे।”[1]
एक ऊंट या गाय सात लोगों के लिए पर्याप्त है, इस कथन के अनुसार "सात पुरुषों की ओर से एक गाय की बलि दी गई और हमने इसे साझा किया।”[2]
बी) जानवर की उम्र
क़ुर्बानी के लायक होने के लिए जानवर एक निश्चित उम्र का होना चाहिए। न्यूनतम उम्र है:
ए) मेमने या भेड़ के लिए 6 महीने।
बी) बकरी के लिए 1 साल।
सी) गाय के लिए 2 साल।
डी) ऊंट के लिए 5 साल।
सी) जानवर की विशेषताएं
यह किसी भी दोष से मुक्त होना चाहिए, क्योंकि पैगंबर ने कहा,
“चार ऐसे हैं जो कुर्बानी के योग्य नही हैं:
ए) एक आंख वाला जानवर जिसका दोष स्पष्ट है,
बी) एक बीमार जानवर जिसकी बीमारी स्पष्ट है,
सी) एक लंगड़ा जानवर जिसका लंगड़ापन स्पष्ट है और
डी) एक दुर्बल जानवर जिसकी हड्डियों में मज्जा नहीं है।”[3]
कुछ मामूली दोष भी हैं जिससे कोई जानवर क़ुर्बानी के लिए अयोग्य नहीं हो जाता, लेकिन ऐसे जानवरों की क़ुर्बानी करना नापसंद है, जैसे कि एक सींग या एक कान वाला जानवर, या उसके कानों में छेद आदि। यदि जानवर को बधिया किया गया है, तो इसे दोष नहीं माना जाता है।
डी) क़ुर्बानी का समय
निर्दिष्ट समय पर क़ुर्बानी की जानी चाहिए, जो कि ईद-उल-अजहा की नमाज और खुतबा के बाद ज़िल- हिज्जा के 13 वें दिन के सूर्यास्त से पहले समाप्त होता है। पैगंबर ने कहा:
“जो कोई नमाज़ से पहले क़ुर्बानी करे उसे दोबारा क़ुर्बानी करना होगा।”[4]
ईद-उल-अजहा की कुर्बानी का मांस परिवार के लोग और रिश्तेदार खाते हैं, दोस्तों को दिया जाता है और गरीबों को दान कर दिया जाता है। हम मानते हैं कि सभी आशीर्वाद अल्लाह से आते हैं, और हमें अपना दिल खोलना चाहिए और दूसरों के साथ साझा करना चाहिए।
ईद-उल-अजहा का कैलेंडर 2013-2015 सीई तक
ईद-उल-अजहा की सटीक तिथियां चांद दिखने के आधार पर निर्धारित की जाएंगी, लेकिन अनुमानित तिथियां इस प्रकार हैं:
मंगल, 15 अक्टूबर 2013
रविवार, 5 अक्टूबर 2014
गुरुवार, 24 सितम्बर 2015
ईद-उल-अजहा के सुन्नत (अनुशंसित कार्य)
निम्नलिखित अनुशंसित कार्य हैं जो ईद-उल-अजहा पर अतिरिक्त इनाम लाते हैं। यदि आप कुछ भूल जाते हैं तो चिंता करने की कोई आवश्यकता नहीं है, लेकिन अपने इनाम को बढ़ाने के लिए जितना संभव हो उतना करने का प्रयास करें।
1. पैगंबर ईद के दिन अनुष्ठान स्नान (ग़ुस्ल) किया करते थे।
2. पैगंबर ईद की नमाज में जाने के लिए अपने सबसे अच्छे कपड़े पहनते थे। ईद की नमाज़ के लिए बाहर जाते समय पुरुषों और महिलाओं दोनों को उचित, शालीन इस्लामी पोशाक पहनने चाहिए।
3. पैगंबर ईद की नमाज के लिए जाने और वापस आने के लिए अलग-अलग रास्तो का इस्तेमाल करते थे।
4. एक और सुन्नत (अनुशंसित कार्य) इन शब्दों के साथ अल्लाह की महानता का उच्चारण करना है:
अल्लाहु अकबर, अल्लाहु अकबर, ला इलाहा इल्ललाह, वल्लाहु अकबर, अल्लाहु अकबर, व लिल्लाहिल-हम्द
“अल्लाह सबसे महान है, अल्लाह सबसे महान है, अल्लाह के सिवा कोई सच्चा ईश्वर नही है, अल्लाह सबसे महान है, अल्लाह सबसे महान है, और सभी प्रशंसा अल्लाह के लिए है।”
नमाज़ के लिए घर से निकलने से लेकर इमाम के नमाज़ पढ़ाने आने तक, ये पढ़ना चाहिए।
5. सलाह दी जाती है कि ईद-उल-अजहा के दिन नमाज़ पढ़ के वापस आने तक कुछ भी न खाएं, अगर उसने क़ुर्बानी की है तो उसे क़ुर्बानी मे से खाना चाहिए। यदि वह क़ुर्बानी नही करेगा, तो नमाज़ से पहले खाने में कुछ भी गलत नहीं है।
ईद की नमाज़ का मूल प्रारूप
पैगंबर ने ईद की नमाज से ठीक पहले या बाद में कोई नमाज नही पढ़ी। अगर ईद की नमाज़ किसी मस्जिद में हो रही हो तो आप बैठने से पहले दो रकात नमाज़ पढ़ लें।
ईद की नमाज के लिए कोई अज़ान या इक़ामाह नही होती है। पैगंबर पहले नमाज पढ़ते और उसके बाद प्रवचन (खुतबा) करते।
इसके अलावा आप यहां उपलब्ध लाइव चैट के माध्यम से भी पूछ सकते हैं।
- स्वैच्छिक प्रार्थना
- जानवरों के प्रति व्यवहार
- झूठ बोलना, चुगली करना और झूठी निंदा करना (2 का भाग 1)
- झूठ बोलना, चुगली करना और झूठी निंदा करना (2 का भाग 2)
- आस्था बढ़ाना (2 का भाग 1): आस्था हमेशा स्थिर स्तर पर क्यों नहीं रहती
- आस्था बढ़ाना (2 का भाग 2): अपनी आस्था (ईमान) बढ़ाना और पुरस्कार अर्जित करना
- स्वैच्छिक उपवास
- न्याय के दिन की निशानियां (2 का भाग 1): छोटी निशानियां
- न्याय के दिन की निशानियां (2 का भाग 2): प्रमुख निशानियां
- व्यभिचार, वैश्यावृति, और पोर्नोग्राफ़ी (2 का भाग 1)
- व्यभिचार, वेश्यावृत्ति, और पोर्नोग्राफ़ी (2 का भाग 2)
- विपरीत लिंगो के बीच मेलजोल के इस्लामी दिशानिर्देश (2 का भाग 1)
- विपरीत लिंगो के बीच मेलजोल के इस्लामी दिशानिर्देश (2 का भाग 2)
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- ईद-उल-अजहा शुरू से आखिर तक (3 का भाग 2)
- ईद-उल-अजहा शुरू से आखिर तक (3 का भाग 3)
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- रमजान: अंतिम दस रातें
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- उम्रह (2 का भाग 2)
- इस्लाम में पापों की अवधारणा (3 का भाग 1)
- इस्लाम में पापों की अवधारणा (3 का भाग 2)
- इस्लाम में पापों की अवधारणा (3 का भाग 3)