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विपरीत लिंगो के बीच मेलजोल के इस्लामी दिशानिर्देश (2 का भाग 2)
विवरण: यह पाठ हमारी रक्षा के लिए और हमारे दिलों और विचारों को शुद्ध रखने के लिए अल्लाह द्वारा परिभाषित पुरुषों और महिलाओं के बीच सीमाओं को स्थापित करने पर केंद्रित है।
द्वारा Imam Mufti (© 2013 NewMuslims.com)
प्रकाशित हुआ 08 Nov 2022 - अंतिम बार संशोधित 07 Nov 2022
प्रिंट किया गया: 6 - ईमेल भेजा गया: 0 - देखा गया: 584 (दैनिक औसत: 2)श्रेणी: पाठ > सामाजिक बातचीत
उद्देश्य:
· इस्लाम में तीन प्रकार के निषिद्ध इख्तिलात के बारे में जानना।
· विपरीत लिंग के साथ बातचीत करते समय चार दिशा-निर्देशों का पालन करना सीखना।
अरबी शब्द:
· इख्तिलात - एक स्थान पर पुरुषों और महिलाओं की शारीरिक उपस्थिति।
· खलवाह - वह पुरुष जो एक गैर महरम महिला के साथ एकांत मे उपास्थि हो।
· महरम - वह व्यक्ति जो खून, विवाह या स्तनपान से किसी दूसरे व्यक्ति से संबंधित हो, चाहे पुरुष हो या महिला। किसी महिला/पुरुष को उसके पिता/माता, भतीजे/भतीजी, चाचा/चाची, आदि से शादी करने की अनुमति नहीं है।
लोग व्यभिचार में कैसे पड़ जाते हैं? ऑफिस मे रोमांस क्यों होता है? विवाहित पुरुष किसी अन्य महिला के साथ रोमांटिक रूप से कैसे जुड़ते हैं? सरल उत्तर यह है कि यह सीमा रहित निर्णयों की धीमी प्रक्रिया है। यह एक धीरे-धीरे होने वाली प्रक्रिया है। कल्पना करें कि आपके चारों एक छोटी सी दीवार है और एक गेट है। आपका दिल दीवार के अंदर रहता है और अल्लाह ने आदेश दिया है कि गेट नही खोलना है। बुरी चीजें तब होती हैं जब आप या तो यह नहीं जानते कि अल्लाह ने क्या आदेश दिया है या आप इस बात की परवाह नही करते कि उस गेट से क्या अंदर जा रहा है और क्या बाहर आ रहा है।
इख्तिलात या विपरीत लिंगो के मेलजोल के तीन रूप हैं जो निषिद्ध हैं:
पहला, अशाब्दिक संचार का एक रूप स्पर्श है। इस्लाम पुरुषों और गैर- महरम महिलाओं के बीच किसी भी प्रकार के शारीरिक संपर्क या स्पर्श की अनुमति नही देता है। पैगंबर (उन पर अल्लाह की दया और आशीर्वाद हो) ने कहा: "मैं महिलाओं से हाथ नहीं मिलाता।" (मुवत्ता, सुनन तिर्मिज़ी, नसाई, इब्न माजा)
उन्होंने यह भी कहा: “यदि तुम में से किसी के सिर पर लोहे की सुई से वार किया जाए, तो यह उसके लिए ऐसी स्त्री को छूने से अच्छा होगा जो उसके लिए अनुमेय नहीं है” (अत-तबारानी)। इसमें ऐसी स्थितियां शामिल हैं जहां पुरुष और महिलाएं इतने करीब होते हैं कि शारीरिक संपर्क हो जाए।
अब, ऐसी अपरिहार्य स्थिति या पेशे की मांग हो सकती है, जैसे नर्स एक पुरुष रोगी को छूती है या हज के दौरान भीड़ होती है। इस्लाम के जानकार विद्वान से पूछकर इन पर स्पष्टता प्राप्त करें। सामान्य नियम स्पष्ट है और समझाया गया है।
दूसरा, गैर-महरम महिला के साथ एकांत मे उपास्थि रहना। इसे खलवाह के नाम से जाना जाता है। इस्लाम के पैगंबर ने कहा, "कभी भी एक पुरुष एक महिला के साथ अकेला नहीं होता, सिवाय इसके कि तीसरा शैतान उनके साथ हो।”
खलवाह तब होता है जब एक या एक से अधिक पुरुष एक गैर- महराम महिला के साथ ऐसी जगह होते हैं जहां कोई उन्हें नहीं देख सकता है। अगर दो महिलाएं और एक पुरुष हैं, तो यह खालवा नहीं है। कुछ अनहोनी होने या न होने की बात नहीं है, ये कैसे भी पाप है। इस प्रकार का एकांतवास एक पाप है चाहे परिणाम कुछ भी हो। यह खराब होता है और किसी की नियत के लिए बुरा है।
उदाहरण के लिए, ऑफिस में किसी पुरुष के साथ अकेले न रहें। या तो चले जाएं या किसी अन्य महिला सहकर्मी को साथ मे रहने के लिए कहें।
तीसरा, एक पुरुष का एक गैर- महरम महिला के साथ ऐसे स्थान पर होना जहां खलवाह न हो, लेकिन सामाजिक नियंत्रण और प्रतिबंधों से स्वतंत्र हो और अवरोध कम हो। पुरुषों और महिलाओं के बीच बार-बार मेलजोल के बारे में भी यही कहा जा सकता है। बार-बार मिलने वाली बैठकें बाधाओं को तोड़ती हैं और रिश्ते को विकसित होने के अवसर देती हैं।
यहां दो बिंदुओं को समझना चाहिए:
1. कुछ ऐसी स्थितियां और स्थान होते हैं जिन्हें हम नियंत्रित कर सकते हैं और कुछ ऐसे भी हैं जिन पर हमारा नियंत्रण नहीं होता है। जो हमारे नियंत्रण से बाहर है, उसके लिए हमें क्षमा किया जा सकता है, और हमें अल्लाह से उसकी क्षमा मांगनी चाहिए। साथ ही हम उन स्थानों के लिए ज़िम्मेदार होते हैं जिन्हें हम नियंत्रित कर सकते हैं।
2. उन जगहों पर हमें कैसा व्यवहार करना चाहिए जिन पर हमारा नियंत्रण नहीं है? एक मुस्लिम महिला के लिए व्यवहार के नियम क्या हैं जब वह किसी पुरुष से मिलती है? मुस्लिम पुरुषों और महिलाओं को विपरीत लिंग के साथ सीमाएं कैसे तय करनी चाहिए? अपने उद्देश्य के आधार पर सीमाएं बनाना अलगाव की एक स्पष्ट रेखा होती है। इसे ध्यान में रखते हुए, विपरीत लिंग के सहकर्मियों या साथी छात्रों के साथ हमारे व्यवहार में अलगाव की स्पष्ट रेखा क्या है? चार दिशानिर्देश हैं:
1. आंखो से संपर्क
नजरें नीची रखें, आंखों के संपर्क को सीमित करें, और स्पष्ट रूप से प्रशंसात्मक नज़रों का आदान-प्रदान न करें। क़ुरआन में अल्लाह हमें बताता है,
“आप ईमान वालों से कहें कि अपनी आंखे नीची रखें और अपने गुप्तांगों की रक्षा करें। ये उनके लिए अधिक पवित्र है, वास्तव में, अल्लाह सूचित है उससे, जो कुछ वे कर रहे हैं (अल्लाह दिल के झुकाव और लोगों द्वारा डाली गई गुप्त नज़रों को जानता है)। और ईमान वाली स्त्रियों से कहें कि अपनी आंखे नीची रखें और अपने गुप्तांगों की रक्षा करें” (क़ुरआन 24:30-31)
2. पोशाक
पुरुषों और महिलाओं दोनों को इस्लामी पहनावे का पालन करना चाहिए।[1]
“…और अपनी शोभा का प्रदर्शन न करें, सिवाय उसके जो प्रकट हो जाये (बाहरी वस्त्र जिसे स्पष्ट रूप से छुपाया नहीं जा सकता जब एक महिला अपना घर से निकलती है) तथा अपनी ओढ़नियां अपने वक्षस्थलों (सीनों) पर डाली रहें (अपने सिर और स्तनों को ढंकने के लिए)…” (क़ुरआन 24:31)
3. शारीरिक भाषा
अपनी शारीरिक भाषा में सम्मानजनक बनें। अपने चाल, हावभाव और मुद्राओं को देखें। क़ुरआन में अल्लाह कहता है,
“…और वे (महिलाएं) अपने पैर धरती पर मारती हुई न चलें कि उसका ज्ञान हो जाये, जो शोभा (आभूषण) उन्होंने छुपा रखी है (उन्हें इस तरह से चलना चाहिए कि उनके आभूषण न बजे और ध्यान आकर्षित न करें)…” (क़ुरआन 24:31)
4. आवाज का लहजा
आवाज के गंभीर लहजे और अभिव्यक्ति का प्रयोग करें। जिस तरह एक चम्मच चीनी बच्चे को खराब स्वाद वाली दवा पीने के लिए प्रोत्साहित कर सकती है, वैसे ही मीठे शब्द विपरीत लिंग के व्यक्ति को बहका सकते हैं। आपको कठोर होने की ज़रूरत नहीं है, लेकिन "गंभीर" स्वर में बात करें। आपकी बातें सीधी और मुद्दे वाली होनी चाहिए ताकि व्यक्ति में कोई इच्छा न जागे। क़ुरआन में अल्लाह कहता है,
“…कोमल भाव से बात न करो कि लोभ करने लगे वे, जिनके दिल में रोग हो और सभ्य बात बोलो।” (क़ुरआन 33:32)
व्यावहारिक रूप से: फ्लर्ट न करें, अशिष्ट चुटकुले न बनाएं, स्पर्श न करें, हंसें नही, विचारोत्तेजक शारीरिक भाषा का उपयोग न करें और अनौपचारिक, सामाजिक बातचीत करने से बचें।
फुटनोट:
[1] इस पर अधिक जानकारी के लिए, कृपया देखें: (http://www.newmuslims.com/lessons/135/) [3 parts]
इसके अलावा आप यहां उपलब्ध लाइव चैट के माध्यम से भी पूछ सकते हैं।
- स्वैच्छिक प्रार्थना
- जानवरों के प्रति व्यवहार
- झूठ बोलना, चुगली करना और झूठी निंदा करना (2 का भाग 1)
- झूठ बोलना, चुगली करना और झूठी निंदा करना (2 का भाग 2)
- आस्था बढ़ाना (2 का भाग 1): आस्था हमेशा स्थिर स्तर पर क्यों नहीं रहती
- आस्था बढ़ाना (2 का भाग 2): अपनी आस्था (ईमान) बढ़ाना और पुरस्कार अर्जित करना
- स्वैच्छिक उपवास
- न्याय के दिन की निशानियां (2 का भाग 1): छोटी निशानियां
- न्याय के दिन की निशानियां (2 का भाग 2): प्रमुख निशानियां
- व्यभिचार, वैश्यावृति, और पोर्नोग्राफ़ी (2 का भाग 1)
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- विपरीत लिंगो के बीच मेलजोल के इस्लामी दिशानिर्देश (2 का भाग 1)
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