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झूठ बोलना, चुगली करना और झूठी निंदा करना (2 का भाग 1)
विवरण: यह पाठ इस्लाम में झूठ बोलने के बारे मे बताता है।
द्वारा Imam Mufti (© 2013 NewMuslims.com)
प्रकाशित हुआ 08 Nov 2022 - अंतिम बार संशोधित 07 Nov 2022
प्रिंट किया गया: 6 - ईमेल भेजा गया: 0 - देखा गया: 517 (दैनिक औसत: 2)श्रेणी: पाठ > इस्लामी जीवन शैली, नैतिकता और व्यवहार > सामान्य नैतिकता और व्यवहार
उद्देश्य
· यह जानना कि झूठ क्या है और कुछ कारणों को समझना कि हम झूठ क्यों बोलते हैं।
· यह समझना कि झूठ बोलने का स्तर होता है।
· झूठ बोलने की गंभीरता को क़ुरआन और सुन्नत से समझना।
· उन परिस्थितियों को जानना जिनमें झूठ बोलने की अनुमति है।
अरबी शब्द
· सुन्नत - अध्ययन के क्षेत्र के आधार पर सुन्नत शब्द के कई अर्थ हैं, हालांकि आम तौर पर इसका अर्थ है जो कुछ भी पैगंबर ने कहा, किया या करने को कहा।
झूठ क्या है?
सच का विपरीत झूठ है। इसलिए जो कुछ भी असत्य और जानबूझकर धोखा देने के लिए बोला या लिखा गया है, वह झूठ है। झूठ निराधार होता है, असत्य होता है, बनावटी होता है, विकृत होता है या बढ़ा-चढ़ा कर बोलना झूठ कहलाता है। इस्लाम में झूठ बोलना मना है और अल्लाह और उसके दूत ने इसकी निंदा की है।
हम झूठ क्यों बोलते हैं?
· हम जो चाहते हैं उसे पाने के लिए।
· गुप्त रखने के लिए।
· सच छुपाने के लिए।
· अपने शरीर या संपत्ति की रक्षा के लिए।
· खुद को शर्मिंदगी से बचाने के लिए।
· अपनी प्रतिष्ठा को बचाने के लिए।
· आगे की पूछताछ से बचने के लिए।
· अपने व्यवहार को सही ठहराने के लिए।
· जिम्मेदारी से बचने के लिए।
· झगड़े से बचने के लिए।
· अपनी सामाजिक स्थिति बनाए रखने के लिए।
· अपने अहंकार को बढ़ाने के लिए।
· अपनी भावनाओं को छिपाने के लिए।
· किसी को बहकाने के लिए।
· किसी को बेवकूफ बनाने के लिए।
· उस व्यक्ति से बदला लेने के लिए जिसने हमसे झूठ बोला है।
झूठ बोलने के स्तर
सभी झूठ एक समान नही होते हैं। अल्लाह और उसके दूत पर किसी चीज़ का झूठा आरोप लगाना सबसे बुरा झूठ है। क़ुरआन में अल्लाह कहता है:
“और यदि इसने (पैगंबर ने) हमपर कोई बात बनाई होती। तो अवश्य हम पकड़ लेते उसका सीधा हाथ। फिर अवश्य काट देते उसके गले की रग।” (क़ुरआन 69:44-46)
झूठी गवाही देना भी बहुत गंभीर है:
“...और साक्ष्य न छुपाओ और जो उसे छुपायेगा, उसका दिल पापी है ...” (क़ुरआन 2:283)
सत्य को असत्य में मिलाना घोर पाप है:
“तथा सत्य को असत्य से न मिलाओ और न सत्य को जानते हुए छुपाओ।” (क़ुरआन 2:42)
पाखंडी जो अपने दिलों में अविश्वास छिपाते हैं, लेकिन अपनी जीभ पर विश्वास करने का दिखावा करते हैं, वे झूठे हैं क्योंकि वे खुद से झूठ बोलते हैं। अल्लाह हमें उनके बारे में बताता है:
“उनके दिलों में रोग (दुविधा) है, जिसे अल्लाह ने और अधिक कर दिया और उनके लिए झूठ बोलने के कारण दुखदायी यातना है।” (क़ुरआन 2:10)
“…अल्लाह जानता है कि वास्तव में आप अल्लाह के दूत हैं और अल्लाह गवाही देता है कि पाखंडी निश्चय झूठे हैं।” (क़ुरआन 63:1)
सच बोलने पर क़ुरआन
अल्लाह हमें सच्चा बनने का आदेश देता है और क़ुरआन में सौ से अधिक स्थानों पर इसका उल्लेख करता है। सत्यनिष्ठा आस्तिक का गुण है। सच्चाई पर क़ुरआन के कुछ खूबसूरत अंश:
“ऐ विश्वासियों! अल्लाह से डरो तथा सही और सीधी बात बोलो।” (क़ुरआन 33:70)
“ऐ विश्वासियों! अल्लाह से डरो तथा सच्चों के साथ हो जाओ।” (क़ुरआन 9:119)
“ताकि अल्लाह प्रतिफल प्रदान करे सच्चों को उनके सच का…” (क़ुरआन 33:24)
“वास्तव में, विश्वासी वही हैं, जिन्होंने विश्वास किया अल्लाह तथा उसके दूत पर, फिर संदेह नहीं किया और जिहाद किया अपने प्राणों तथा धनों से, अल्लाह की राह में, यही सच्चे हैं।” (क़ुरआन 49:15)
क़ुरआन झूठ बोलने की निंदा करता है
“…उसपर अल्लाह की धिक्कार है, यदि वह झूठा है।” (क़ुरआन 24:7)
“…अल्लाह उसे सुपथ नहीं दर्शाता जो बड़ा मिथ्यावादी, कृतघ्न हो।” (क़ुरआन 39:3)
“…वास्तव में, अल्लाह मार्गदर्शन नहीं देता उसे, जो उल्लंघनकारी बहुत झूठा हो।” (क़ुरआन 40:28)
झूठ बोलने पर पैगंबर मुहम्मद
अल्लाह ने जब पैगंबर मुहम्मद को पैगंबर नही चुना था, उससे पहले ही पैगंबर मुहम्मद को एक सच्चे व्यक्ति के रूप में अच्छी तरह से पहचाना जाता था। उन्हें 'अल-अमीन' (भरोसेमंद) माना जाता था। यहां तक कि उनके शत्रुओं ने भी उसे सच्चा और भरोसेमंद माना था। पैगंबर ने कई कथनो में सच्चाई के मूल्य पर जोर दिया:
“मैं तुम से आग्रह करता हूं कि सच्चे बनो, क्योंकि सच्चाई से धार्मिक बनते हैं और धार्मिक बनने से स्वर्ग मिलता है। व्यक्ति को सच्चा बना रहना चाहिए और सच बोलने की कोशिश करते रहना चाहिए जब तक कि वह अल्लाह के सामने सच बोलने वाले (सिद्दीक) न बन जाये। और झूठ से सावधान रहो, क्योंकि झूठ बोलने से अनैतिकता आती है और अनैतिकता नर्क की ओर ले जाती है; व्यक्ति तब तक झूठ बोलता रहेगा जब तक कि वह अल्लाह के सामने झूठा न बन जाये। (सहीह अल-बुखारी, सहीह मुस्लिम)
किसी ने पैगंबर मुहम्मद से पूछा, "ऐ अल्लाह के दूत! आपको क्या लगता है कि मेरे लिए सबसे भयानक चीज़ क्या है?" पैगंबर ने उसकी जीभ पकड़ी और कहा: "यह!”[1]
“उस व्यक्ति के लिए विनाश है जो दूसरे लोगों के मनोरंजन के लिए झूठ बोलता है। विनाश उसके लिए है।” (तिर्मिज़ी)
“विश्वास का सबसे बड़ा उल्लंघन यह है कि आप अपने किसी भाई को कोई बात बताएं जिसे वह सच मान ले, जबकि आपने उससे झूठ बोला है।” (अबू दाऊद)
क्या झूठ को सही ठहराया जा सकता है?
इस्लाम सच्चाई का धर्म है जो मानवीय स्थिति और उसकी कमजोरियों को पहचानता है। ऐसी कुछ स्थितियां हैं जिनमें झूठ बोलना उचित है। कुछ असाधारण परिस्थितियों में झूठ बोला जा सकता है जैसे:
· किसी मासूम की जान बचाने के लिए। हमारे विद्वान एक प्राचीन अत्याचारी की कहानी बताते हैं जिसने एक निर्दोष व्यक्ति को उसकी कथित शिष्टाचार की कमी के कारण मार डालने का आदेश दिया था! यह सुनकर वह व्यक्ति राजा को अपनी मातृभाषा में कोसने लगा। अत्याचारी ने चकित होकर अपने सलाहकार से पूछा कि वह व्यक्ति क्या कह रहा है। सलाहकार बुद्धिमान व्यक्ति था। उसने सच बोलने के बजाय अत्याचारी से कहा कि वह आदमी अपने व्यवहार के लिए क्षमा मांग रहा था और राजा की दया की याचना कर रहा था! इसलिए उस अत्याचारी ने उसकी जान बख्श दी।
· वैवाहिक जीवन में सामंजस्य बनाए रखने के लिए। इन्हें "मीठे छोटे झूठ" या "दयालु झूठ" के रूप में जाना जाता है, जैसे "आपका भोजन अब तक का सबसे अच्छा भोजन है!”
· दो पक्षों के बीच सुलह कराने के लिए। सुलह करवाने के लिए मध्यस्थ आंशिक सच बता सकता है कि एक पक्ष ने दूसरे के बारे में क्या कहा।
इसके अलावा आप यहां उपलब्ध लाइव चैट के माध्यम से भी पूछ सकते हैं।
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