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पैगंबर नूह के जीवन की झलकियां

विवरण: पैगंबर नूह के जीवन की घटनाएं।

द्वारा Aisha Stacey (© 2012 NewMuslims.com)

प्रकाशित हुआ 08 Nov 2022 - अंतिम बार संशोधित 07 Nov 2022

प्रिंट किया गया: 6 - ईमेल भेजा गया: 0 - देखा गया: 549 (दैनिक औसत: 2)

श्रेणी: पाठ > इस्लामी मान्यताएं > अन्य पैगंबरो का जीवन


उद्देश्य:

·       कई घटनाओं को जानना और आज के समय मे लागू होने वाले मूल्यवान सबक सीखना।

अरबी शब्द:

·       नूह - पैगंबर नोआह का अरबी नाम।

आज दुनिया में प्रचलित सभी तीन एकेश्वरवादी धर्मों, यहूदी धर्म, ईसाई धर्म और इस्लाम मे पैगंबर नूह का नाम जाना जाता है। इस्लाम में पैगंबर नूह और बाढ़ की कहानी बाइबिल में पाए जाने वाली कहानी के समान है, हालांकि क़ुरआन अधिक विस्तार से बताता है। जब इसे पैगंबर मुहम्मद की परंपराओं में बताई गई कहानियों के साथ जोड़ा जाता है तो हम पैगंबर नूह के जीवन की एक बेहतर तस्वीर बनाने में सक्षम होते हैं और कुछ बहुत ही मूल्यवान सबक सीखते हैं जो आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं जितने कि वे वर्षो पहले थे। 

पैगंबर नूह जिस काल मे थे वो हमारे समय के समान ही था। पाप और अधर्म लोगों पर हावी हो गया था। धर्मी लोग बहुत कम थे और जो लोग अपने पूर्वज आदम के धर्म का पालन करते थे वे कमजोर और अक्सर उत्पीड़ित थे। यह आज के समय के समान ही लगता है क्योंकि हम आज जिस दुनिया में रहते हैं, वहां ईश्वर में विश्वास करने वालों का अक्सर मजाक उड़ाया जाता है और उन्हें नीचा दिखाया जाता है और पाप करना मजेदार माना जाता है। 

नूह एक करिश्माई वक्ता थे और वो सृष्टि की कहानियों और ब्रह्मांड के रहस्यों के बारे मे बता के लोगों को मंत्रमुग्ध करते थे, हालांकि जब उन्होंने अपने लोगों को न्याय के भयानक सजा के बारे में चेतावनी देने की कोशिश की तो वे क्रोधित और नाराज हो गए। ये पहले लोग थे जो सच्चे धर्म से भटक गए थे, फिर भी जब नूह ने उन्हें अल्लाह की सजा की चेतावनी दी, तो लोगो ने उनकी बात न सुनी। उपहास उड़ाये जाने के बावजूद, नूह ने 950 वर्षों तक अपने लोगों को एक सच्चे ईश्वर की पूजा करने के लिए आमंत्रित करना जारी रखा।   

सबक 1

कभी हार न मानो।  

अपने परिवार या दोस्तों के अविश्वास के कारण खुद को उनसे कभी भी अलग न करें, क्योंकि अल्लाह ही जानता है कि कब आपके शब्द या कार्य उनके हृदय को बदल सकते हैं और उन्हें मोक्ष के मार्ग पर ले जा सकते हैं।

बाढ़ की कहानी तो हम सभी जानते हैं। यह लगभग हर प्राचीन सभ्यता में बताया गया था और जैसा कि पहले ही उल्लेख किया गया है, यहूदी धर्म, ईसाई धर्म और इस्लाम के धर्मों का हिस्सा है। अल्लाह ने नूह को एक जहाज बनाने का निर्देश दिया और अविश्वासियों पर बाढ़ का फैसला सुनाया। यह एक ऐसी कहानी है जिसे अक्सर एक बच्चे की कहानी माना जाता है, लेकिन इस कहानी में अर्थ की कई परतें हैं और वयस्कों के लिए प्रासंगिक है। महान अल्लाह कहता है:

“और हमारी आंखों के सामने हमारी वह़्यी के अनुसार एक नाव बनाओ और मुझसे उनके बारे में कुछ न कहना, जिन्होंने अत्याचार किया है। वास्तव में, वे डूबने वाले हैं।” (क़ुरआन 11:37)

जब आसमान से पानी बरसने लगा और धरती से निकलने लगा, क्योंकि यह कोई साधारण तूफान नहीं था, अल्लाह ने नूह को अपने परिवार, विश्वासियों और हर ज्ञात जानवर, पक्षी या कीट के एक जोड़े के साथ नाव पर जाने की आज्ञा दी। अविश्वासियों ने अविश्वसनीय रूप से देखा, लेकिन अभी भी वो उपहास कर रहे थे और मजाक उड़ा रहे थे, लेकिन जब पानी उठना शुरू हुआ, और उठता गया, और उठता गया तो उनके शब्द उनके मुंह मे ही रह गए।

सबक 2

अल्लाह के सिवा कोई शक्ति और ताकत नहीं है। वह सर्वशक्तिमान है। अगर वह किसी चीज़ का हुक्म देता है, तो कोई भी चीज़ उसे रोक नहीं सकती है। 

सांसारिक शक्ति, ताकत या सम्मान परिणाम की तरह लग सकता है, लेकिन वास्तविकता यह है कि हम कमजोर और जरूरतमंद हैं; हमारी दुनिया और हमारे मामलों पर हमारा नियंत्रण अल्लाह की शक्ति और महिमा की तुलना में कितना कम है।

नूह की पत्नी उनके साथ नाव पर नहीं बैठी, क्योंकि उसने उस संदेश पर वास्तव में कभी विश्वास नहीं किया था जिनका नूह इतने लंबे समय से प्रचार कर रहे थे। न तो उनका सबसे बड़ा बेटा जो एक मूर्तिपूजक था, जिसने सबसे ऊंचे पहाड़ पर चढ़ना चुना था, लेकिन पानी ऊपर चढ़ता ही रहा। पैगंबर नूह ने अपने बेटे को पानी की लहरों से आगे निकलते हुए देखा और नाव पर चढ़ने के लिए उसे पुकारा। लेकिन उसके बेटे ने मना कर दिया और वह डूब गया।

“और नूह़ ने अपने पुत्र को पुकारा, जबकि वह उनसे अलग थाः ऐ मेरे पुत्र! मेरे साथ सवार हो जा और अविश्वासिओ के साथ न रह। उसने कहाः मैं किसी पर्वत की ओर शरण ले लूंगा, जो मुझे जल से बचा लेगा। नूह़ ने कहाः आज अल्लाह के आदेश (यातना) से कोई बचाने वाला नहीं, परनु जिसपर वह (अल्लाह) दया करे और दोनों के बीच एक लहर आड़े आ गयी और वह डूबने वालों में हो गया।” (क़ुरआन 11:42-43)

अपने मूर्तिपूजक बेटे और अविश्वासी पत्नी के साथ नूह की बातचीत के उदाहरण पिछले पाठों की पुष्टि करते हैं और एक तीसरा पाठ जोड़ते हैं।   

सबक 3

हम चुनते हैं कि हमें क्या विश्वास करना चाहिए और हमें कैसे कार्य करना चाहिए।

यद्यपि हम निस्संदेह अल्लाह से जुड़ने की एक सहज आवश्यकता के साथ पैदा होते हैं, हमारी आध्यात्मिक पहचान एक भुला हुआ निष्कर्ष नहीं है। हम सभी एक ऐसी उम्र मे पहुंचते हैं जब हम अपने धर्म को चुन सकते हैं, चाहे हम किसी भी धर्म में पैदा हुए हों। एक बार चुन लेने के बाद हम उस निर्णय के परिणामों के साथ जीते हैं।  

अपनी मृत्यु के समय नूह ने अपने बाकि के पुत्रों को अपने पास बुलाया और उन्हें सलाह दी।

‘वास्तव में मैं आपको दूरगामी सलाह दूंगा। मैं आपसे यह विश्वास करने के लिए कहता हूं कि अल्लाह के अलावा कोई सच्चा ईश्वर नहीं है और यदि सात आकाश और सात पृथ्वी एक तराजू के एक पलड़े मे रख दिए जाएं और शब्द "अल्लाह के अलावा कोई सच्चा ईश्वर नही है" दूसरे पलड़े मे डाल दिया जाये, तो शब्द वाला पलड़ा अधिक भरी होगा। मैं तुम्हें ईश्वर का साझीदार बनाने और अहंकार के विरुद्ध चेतावनी देता हूं।”[1]

नूंह के अधिकांश लोगों ने उनके इस संदेश को खारिज कर दिया, लेकिन यह संदेश आज तक मुसलमानों के दिल और दिमाग में जीवित है। नूह ने अपनी मृत्यु शय्या पर रहते हुए अपने बेटों को जो सुकून देने वाले शब्द और मोक्ष की आशा दी, वह एक मुसलमान के विश्वास का हिस्सा है और अल्लाह के प्रति उनके विश्वास की पुष्टि करता है। पैगंबर मुहम्मद (उन पर अल्लाह की दया और आशीर्वाद हो) ने हमें यह भी बताया कि अल्लाह विश्वासियों के साथ एक प्रतिज्ञा लेता है: यदि हम अल्लाह के अलावा किसी अन्य ईश्वर की पूजा नही करेंगे, तो अल्लाह हमें स्वर्ग मे जाने से नही रोकेगा।[2]



फुटनोट:

[1] सहीह अल-बुखारी

[2] नूह की कहानी के आखिरी पैराग्राफ से ली गई, जहां आप उनकी कहानी को और गहराई से पढ़ सकते हैं।(http://www.islamreligion.com/articles/1199/viewall/)

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