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शैतान: मानव जाति का सबसे बड़ा दुश्मन (2 का भाग 1)
विवरण: शैतान कौन है? क्या वह ईसाई साहित्य में वर्णित पतित स्वर्गदूत है? इस पाठ में हम शैतान की रचना और उसके दया से निकाले जाने, और मानव जाति के प्रति उसकी सर्वोच्च शत्रुता के बारे में सीखेंगे।
द्वारा Aisha Stacey (© 2012 IslamReligion.com)
प्रकाशित हुआ 08 Nov 2022 - अंतिम बार संशोधित 07 Nov 2022
प्रिंट किया गया: 9 - ईमेल भेजा गया: 0 - देखा गया: 493 (दैनिक औसत: 2)श्रेणी: पाठ > इस्लामी मान्यताएं > आस्था के अनुच्छेद
पाठ का उद्देश्य:
· शैतान को पहचानना और उसके मिशन को समझना।
अरबी शब्द:
· शैतान - यह इस्लाम और अरबी भाषा में इस्तेमाल किया जाने वाला शब्द है जो शैतान यानि बुराई की पहचान को दर्शाता है।
· जिन्न - अल्लाह की एक रचना जो मानवजाति से पहले धुआं रहित आग से बनाई गई थी। उन्हें कभी-कभी आत्मा, बंशी, पोल्टरजिस्ट, प्रेत आदि के रूप में संदर्भित किया जाता है।
· शिर्क - एक ऐसा शब्द जिसका अर्थ है अल्लाह के साथ भागीदारों को जोड़ना, या अल्लाह के अलावा किसी अन्य को दैवीय बताना, या यह विश्वास करना कि अल्लाह के सिवा किसी अन्य में शक्ति है या वो नुकसान या फायदा पहुंचा सकता है।
· खुशू - प्रार्थना के दौरान अल्लाह के प्रति पूरी तरह से गंभीर, उसके आधीन और विनम्र होना।
शैतान एक पतित स्वर्गदूत नहीं है जैसा कि ईसाई सिद्धांत मे बताया गया है, बल्कि वह एक जिन्न है जो सोच सकता है, तर्क कर सकता है और स्वतंत्र इच्छा रखता है। अल्लाह ने उसे स्वर्गदूतों के बीच रहने की इजाज़त दी, लेकिन अपने घमंड और अहंकार के कारण (जिसके बारे मे आप वेबसाइट www.islamreligion.com, पर पैगंबर आदम की कहानी में पढ़ सकते हैं) वह हमेशा के लिए अल्लाह की दया से बाहर हो गया और उसने कसम खाई की वो अकेला नर्क की गहराई में नहीं रहेगा। शैतान चाहता है कि वह अपने साथ अधिक से अधिक मनुष्यों को नर्क की आग में ले जाए। इस बारे में कोई गलतफहमी न रखो, शैतान वास्तव में मानवजाति का नश्वर शत्रु है। वह मक्कार, धूर्त और परम अभिमानी है। क़ुरआन हमें बार-बार उसकी दुश्मनी से आगाह करता है।
“ऐ आदम के पुत्रो! ऐसा न हो कि शैतान तुम्हें बहका दे...” (क़ुरआन 7:27)
“वास्तव में, शैतान तुम्हारा शत्रु है। अतः, तुम उसे अपना शत्रु ही समझो...” (क़ुरआन 35:6)
“...तथा जो शैतान को अल्लाह के सिवा सहायक बनायेगा, वह खुली क्षति में पड़ जायेगा।” (क़ुरआन 4:119)
यह समझना महत्वपूर्ण है कि खुद शैतान भी अल्लाह के एक होने और उसकी पूजा करने के अधिकार को जानता है। अल्लाह ने हमें सूचित किया है कि शैतान के वादे धोखे और झूठ के अलावा और कुछ नहीं हैं, और शैतान सहमत है क्योंकि वह कुछ भी नहीं दे सकता है।
“और शैतान कहेगा, जब निर्णय कर दिया जायेगाः वास्तव में, अल्लाह ने तुम्हें सत्य वचन दिया था और मैंने तुम्हें वचन दिया, तो अपना वचन भंग कर दिया और मेरा तुमपर कोई दबाव नहीं था, परन्तु ये कि मैंने तुम्हें (अपनी ओर) बुलाया और तुमने मेरी बात स्वीकार कर ली। अतः मेरी निन्दा न करो, स्वयं अपनी निंदा करो...” (क़ुरआन 14:22)
हर वह कार्य जिससे अल्लाह नफरत करता है, शैतान उस कार्य से प्यार करता है, वह अनैतिकता और पाप से प्यार करता है। वह विश्वासियों के कानों में फुसफुसाता है, वह नमाज़ और अल्लाह की याद में विघ्न डालता है। इस्लाम के सबसे महान विद्वानों में से एक, इब्न उल कय्यम (ईश्वर उस पर दया करें), ने कहा: "उनकी (शैतान की) साजिशों में से एक यह है कि वह लोगों को तब तक बहकता है जब तक की लोग बहक न जाए, वह उन चीज़ो आकर्षक बनाता है जिससे मनुष्य को नुकसान पहुंचे”
धोखा देने में शैतान के पास व्यापक अनुभव है; उसके पास चालें और प्रलोभन हैं और वह लगातार फुसफुसाता है। शैतान मन मे विचारों और इच्छाओं को जगा के मनुष्य को गलत कार्य के प्रति उकसाता है। हालांकि अल्लाह ने मानवजाति को रक्षाहीन नहीं छोड़ा है। उसने हमें शैतान का मुकाबला करने के लिए हथियार दिए हैं, जिनमे से सबसे बड़ा है उसके बारे में जानकारी। शैतान हमारा नश्वर शत्रु है और उसकी चालों और भ्रमों का मुकाबला करने के लिए हमें उसे अच्छी तरह जानने की जरूरत है। शैतान का बड़ा लक्ष्य अधिक से अधिक लोगों को स्वर्ग से वंचित करना और उन्हें नर्क में ले जाना है। इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए उसने कई छोटे-छोटे लक्ष्य निर्धारित किए हैं। इन लक्ष्यों के प्रति जागरूक होने का अर्थ है कि हम स्वयं की रक्षा के लिए हथियारों से लैस हो सकते हैं।
छोटे-छोटे लक्ष्य
1. लोगों को शिर्क का महान पाप करने के लिए प्रेरित करना। हर कोई जो अल्लाह के अलावा किसी और चीज की पूजा करता है, चाहे वह मूर्ति हो, सूर्य हो, चंद्रमा हो, व्यक्ति हो या सिद्धांत हो, वह मूल रूप से शैतान की पूजा करता है।[1]
2. लोगों को पाप करने और अवज्ञा करने के लिए प्रोत्साहित करना। जब शैतान को लगता है कि लोग उसकी पूजा नहीं करेंगे, तब वह चाहता है कि बस लोग उसकी उन आज्ञाओं का पालन करें जो महत्वहीन लगते हैं।[2] वह अनैतिकता और पाप से प्यार करता है क्योंकि इसका एक व्यक्ति की धार्मिक प्रतिबद्धता पर सीधा प्रभाव पड़ता है।
3. लोगों को अच्छे काम करने से रोकना। शैतान न केवल लोगों को पाप करने और अवज्ञा के कार्य करने के लिए प्रेरित करता है, बल्कि वह उन्हें अच्छे कार्य करने से रोकने में भी संतुष्ट होता है। शैतान धैर्यवान है; वह हमारे मन को शंकाओं और अंधविश्वासों से भरते हुए इंतजार करता है। जब कोई व्यक्ति कोई अच्छा कर्म या कार्य को करने की योजना बनाता है, तो शैतान उनके कानो में वो कार्य न करने के लिए फुसफुसाता है और उनके मन में छोटे-छोटे संदेह पैदा करता है।
4. पूजा के कृत्यों को भ्रष्ट करना। यदि शैतान लोगों को अल्लाह की आज्ञा मानने और अच्छे कार्य करने से नहीं रोक पाता है, तो वह उनकी पूजा के कार्यों को भ्रष्ट करने का प्रयास करता है। जब कोई व्यक्ति प्रार्थना कर रहा होता है तो वह फुसफुसाता है और उसे विचलित करता है। शैतान चाहता है कि व्यक्ति को ख़ुशू के साथ प्रार्थना करने का इनाम न मिले और व्यक्ति अंततः अल्लाह से दूर हो जाये।
5. मानसिक और शारीरिक नुकसान पहुंचाना। विश्वासियों को शिर्क के कार्य करने के लिए प्रेरित करने के अलावा, शैतान का उद्देश्य शारीरिक और मानसिक नुकसान पहुंचाना भी है। उदाहरण के लिए वह किसी व्यक्ति में कष्ट और भय जगाने के लिए बुरे सपने दिखाता है। वह लोगों को उनके जन्म से लेकर मृत्यु के क्षण तक परेशान करता है। अपने अंतिम क्षणों में, वह एक व्यक्ति को अल्लाह को पुकारने और अकेले ईश्वर में अपने विश्वास की पुष्टि करने से रोकने के लिए अपनी कानाफूसी और उत्पीड़न जारी रखता है।
इसके अलावा आप यहां उपलब्ध लाइव चैट के माध्यम से भी पूछ सकते हैं।
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