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सुन्नत का संरक्षण (4 का भाग 1)

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विवरण: हदीस के संग्रह, इसके संरक्षण और प्रसारण का परिचय। भाग 1: सुन्नत का ईश्वरीय संरक्षण और हदीस के संग्रह का पहला चरण।

द्वारा Imam Mufti

प्रकाशित हुआ 08 Nov 2022 - अंतिम बार संशोधित 07 Nov 2022

प्रिंट किया गया: 21 - ईमेल भेजा गया: 0 - देखा गया: 1,169 (दैनिक औसत: 3)


शर्त

·हदीस और सुन्नत के लिए शुरुआती मार्गदर्शन।

उद्देश्य

·हदीस के संग्रह का परिचय।

·सुन्नत के दैवीय संरक्षण की आवश्यकता और कारण।

·हदीस के प्रसारण को समझना विशेष रूप से लिखित रूप में पैगंबर मुहम्मद के जीवनकाल में।

·सुन्नत सिखाने में पैगंबर के तरीके को जानना।

·पैगंबर से सुन्नत सीखने में पैगंबर के साथियों के तरीके को जानना।

अरबी शब्द

·हज - मक्का की तीर्थयात्रा जहां तीर्थयात्री अनुष्ठानों की एक श्रृंखला करते हैं। हज इस्लाम के पांच स्तंभों में से एक है, जिसे हर वयस्क मुसलमान को अपने जीवन में कम से कम एक बार अवश्य करना चाहिए यदि वे इसे वहन कर सकते हैं और शारीरिक रूप से सक्षम हैं।

·ज़कात - अनिवार्य दान।

·सुन्नत - अध्ययन के क्षेत्र के आधार पर सुन्नत शब्द के कई अर्थ हैं, हालांकि आम तौर पर इसका अर्थ है जो कुछ भी पैगंबर ने कहा, किया या करने को कहा।

·हदीस - (बहुवचन - हदीसें) यह एक जानकारी या कहानी का एक टुकड़ा है। इस्लाम में यह पैगंबर मुहम्मद और उनके साथियों के कथनों और कार्यों का एक वर्णनात्मक रिकॉर्ड है।

क़ुरआन के बाद, सुन्नत या हदीस[1]दूसरा ऐसे स्रोत हैं जिनसे इस्लाम की शिक्षाओं और कानूनों का पता चलता है। सुन्नत में एक मुस्लिम के जीवन के सभी पहलुओं का विवरण है जैसे प्रार्थना, उपवास, हज , ज़कात , शादी, तलाक, बच्चो की निगरानी, युद्ध और शांति। आज की तरह ही उस समय भी जब कोई इस्लाम अपनाता, तो उसे क़ुरआन और सुन्नत की जरूरत पड़ती। जिस तरह एक मुसलमान को क़ुरआन को स्वीकार करने और उसका पालन करने की आवश्यकता होती है, उसी तरह एक मुसलमान पैगंबर (उन पर अल्लाह की दया और आशीर्वाद हो) की हदीस को स्वीकार करने और उसके अनुसार कार्य करने के लिए बाध्य है।

यह पाठ हदीस के संग्रह के बारे में बताता है। इसमें हदीस के संरक्षण के सभी पहलुओं को शामिल नहीं किया गया है। इसमें मुख्य रूप से यह बताया गया है कि हदीस पैगंबर के समय से लिखी और याद की गई थी और पैगंबर की शिक्षाओं को संरक्षित और प्रसारित करने में शुरुआती मुसलमानों के कुछ प्रयासों को बताया गया है।

सुन्नत का ईश्वरीय संरक्षण

अल्लाह तआला क़ुरआन में कहता है:

“वास्तव में, हमने ही ये शिक्षा उतारी है और हम ही इसके रक्षक हैं।” (क़ुरआन 15:9)

इस छंद में 'शिक्षा' का मतलब वह सब कुछ है जो अल्लाह ने प्रकट किया, क़ुरआन और सुन्नत दोनों। अल्लाह क़ुरआन और सुन्नत की रक्षा करने का वादा कर रहा है। और यह समझ में भी आता है। क़ुरआन अल्लाह का अंतिम रहस्योद्घाटन है और पैगंबर मुहम्मद (उन पर अल्लाह की दया और आशीर्वाद हो) अल्लाह के अंतिम पैगंबर है। जैसा कि हम ऊपर पढ़ चुके हैं, अल्लाह मुसलमानों को क़ुरआन में सुन्नत का पालन करने का आदेश देता है। यदि सुन्नत को संरक्षित नहीं किया गया होता, तो अल्लाह हमें कुछ असंभव करने का आदेश देता: सुन्नत का पालन करना जिसे या तो संरक्षित नहीं किया गया है या मौजूद नहीं है! चूंकि, यह ईश्वरीय न्याय के विपरीत है, इसलिए अल्लाह ने सुन्नत को संरक्षित किया होगा। जैसा कि हम इन पाठों में देखेंगे, अल्लाह ने मनुष्यों के माध्यम से विभिन्न तरीकों से सुन्नत को संरक्षित किया।

हदीस के संग्रह में पहला चरण

पैगंबर के जीवनकाल के दौरान हदीस का प्रसारण

पैगंबर के आचरण और कथनों का एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक प्रसारण लिखित और मौखिक रूप में उनके जीवनकाल के दौरान हुआ। वास्तव में पैगंबर स्वयं बताते थे कि जो शिक्षा उन्होंने दी है उसका प्रसारण कैसे किया जाये। इस बात के पुख्ता ऐतिहासिक प्रमाण हैं कि जब भी कोई व्यक्ति इस्लाम धर्म अपनाता था, तो पैगंबर अपने एक या अधिक साथियों को उनके पास भेजते थे, जो न केवल उन्हें क़ुरआन पढ़ाते थे, बल्कि उन्हें यह भी बताते थे कि किताब के आदेशों को व्यवहार में कैसे लाया जाए, वह सुन्नत है।

जब मदीना के शुरुआती दिनों में रबिअ का एक प्रतिनिधिमंडल उनके पास आया, तो पैगंबर ने उन्हें अपने निर्देशों को इन शब्दों में बताया: "इसे याद रखें और इसे उन लोगों को बताएं जिन्हें आपने पीछे छोड़ आये हैं।[2] उन्होंने एक और मामले में निर्देश दिया: “अपने लोगों के पास वापस जाओ और उन्हें ये बातें सिखा दो।[3]

यह भी लिखा हुआ है कि लोग पैगंबर के पास आते थे और ऐसे शिक्षकों की मांग करते थे जो उन्हें क़ुरआन और सुन्नत सिखा सकें: "हमें क़ुरआन और सुन्नत सिखाने के लिए लोगों को भेजें।[4]

तीर्थयात्रा के अवसर पर, पैगंबर ने मुसलमानों को एक-दूसरे के जीवन, संपत्ति और सम्मान को पवित्र रखने के कर्तव्य की आज्ञा देने के बाद कहा: "जो यहां मौजूद है उन्हें यह संदेश उनके पास ले जाना चाहिए जो अनुपस्थित है।[5]

स्वाभाविक रूप से, पैगंबर के साथी पूरी तरह से जानते थे कि पैगंबर की सुन्नत का पालन करना है क्योंकि सभी मामलों में पैगंबर की आज्ञा का पालन करने के लिए क़ुरआन में भी बताया गया था। जब पैगंबर ने मुआज़ इब्न जबल को यमन का गवर्नर बनाया और उससे पूछा कि वह मामलों का न्याय कैसे करेगा, तो उसका जवाब था "अल्लाह की किताब से"। फिर पैगंबर ने पूछा कि यदि उन्हें ईश्वर की किताब में कोई निर्देश न मिला तो, फिर उसने उत्तर दिया, "अल्लाह के दूत की सुन्नत से।[6]

इसलिए सुन्नत को पैगंबर के जीवन काल में धार्मिक मामलों में मार्गदर्शन के रूप में मान्यता दी गई थी। वह अपनी सुन्नत को मुख्य रूप से तीन तरीकों से पढ़ाते थे:

(1) मौखिक शिक्षा: पैगंबर खुद अपनी सुन्नत के शिक्षक थे। अपने साथियों को याद कराने और समझने के लिए, वह हर महत्वपूर्ण बातों को तीन बार दोहराते थे। अपने साथियों को पढ़ाने के बाद पैगंबर सुनते थे की उन्होंने क्या सीखा। अन्य जनजातियों के आने वाले लोगों को मदीना के लोगों द्वारा क़ुरआन और सुन्नत में निर्देश देने के लिए समायोजित किया गया था।

(2) लेखकों के लिए श्रुतलेख: अनुमान है कि पैगंबर के पास 45 लेखक थे जो उनके लिए बड़े पैमाने पर लिखते थे। पैगंबर ने राजाओं, शासकों, कबायली नेताओं और मुस्लिम राज्यपालों को पत्र भिजवाए थे। उनमें से कुछ में ज़कात, कर और पूजा के प्रकार जैसे कानूनी मामले शामिल थे। पैगंबर ने अली इब्न अबी तालिब, अब्दुल्ला बिन 'अम्र बिन अल-आस जैसे कई साथियों को आदेश दिया कि उनकी विदाई खुतबा की एक प्रति यमन के अबू शाह को दी जाए।

(3) व्यावहारिक प्रदर्शन: पैगंबर ने वुज़ू, प्रार्थना, उपवास और तीर्थयात्रा की विधि सिखाई। जीवन के हर मामले में पैगंबर ने अपने व्यवहार का पालन करने के लिए स्पष्ट निर्देश दिए थे। उन्होंने कहा, 'प्रार्थना करो जैसे तुम मुझे प्रार्थना करते हुए देखते हो' , और 'मुझसे हज यात्रा के अनुष्ठानों सीखो।' उन्होंने स्कूलों की स्थापना की, उन्हें ज्ञान फैलाने का निर्देश दिया, उन्हें शिक्षकों और छात्रों के लिए पुरस्कार बताकर पढ़ाने और सीखने का आग्रह किया।

इसी तरह, साथियों ने सुन्नत सीखने में पैगंबर द्वारा लागू किये गए सभी तीन तरीकों का इस्तेमाल किया:

(ए) याद करना: पैगंबर के साथी उनके हर शब्द को बेहद ध्यान से सुनते थे। उन्होंने मस्जिद में पैगंबर से क़ुरआन और हदीस सीखी। जब पैगंबर किसी कारण से चले जाते, तो उन्होंने जो कुछ सीखा था उसे याद करना शुरू कर देते। पैगंबर के सेवक अनस बिन मलिक ने कहा:

“लगभग साठ लोग पैगंबर के साथ बैठे थे, और पैगंबर ने उन्हें हदीस सिखाया। और जब वे किसी आवश्यकता से बाहर जाते थे, तो हम इसे याद करते थे, और जब हम वहां से जाते तो ऐसा लगता था कि यह हमारे दिल में बसा हुआ है।”[7]

चूंकि सभी के लिए पैगंबर के अध्ययन कक्षा में शामिल होना संभव नहीं था, इसलिए जो अनुपस्थित होते थे, वे उपस्थित लोगों से सीखते थे। उनमें से कुछ ने एक दूसरे के साथ पैगंबर की कक्षा में शिफ्ट में उपस्थित होने के लिए एक समझौता किया, जैसा कि उमर ने अपने पड़ोसी के साथ किया था। पैगंबर के साथियों में से एक सुलैत को पैगंबर ने कुछ जमीन दी थी। उसकी आदत थी कि वह वहां कुछ समय रुकता, और फिर मदीना वापस आकर वह सीखता जो पैगंबर ने उसकी अनुपस्थिति में सिखाया था। वह पैगंबर के पाठों में शामिल न होने पर बहुत शर्मिंदा हुआ करता था, इसलिए उसने पैगंबर से अनुरोध किया कि वह जमीन उससे वापस ले ली जाए क्योंकि यह उसे पैगंबर के अध्ययन कक्षा में शामिल होने से रोकती है।[8]

(बी) अभिलेख: साथियों ने हदीस को लिख कर भी सीखा। पैगंबर की हदीस लिखने वाले साथियों का पहला उदाहरण हम्माम इब्न मुनाबिह का सहिफा है जिसकी चर्चा बाद के पाठ में की गई है। दूसरा उदाहरण अस-सिफ़ह अस-सादिकाह है, जो कई सौ हदीस का एक लिखित संकलन है जो सहयोगी अब्दुल्ला बिन 'अम्र इब्न अल-आस' से संबंधित था। अब्दुल्ला ने कहा,

“मैंने अल्लाह के दूत से जो कुछ सुना उसे लिखने की अनुमति मांगी और उन्होंने मुझे अनुमति दी और मैंने इसे लिख लिया।”[9]

इमाम अहमद की मुसनद में अब्दुल्लाह की 626 हदीस हैं। बुखारी ने अकेले 8 लिखे और मुस्लिम ने 20, इनमे से 7 एक जैसे हैं।

(सी) अभ्यास: साथी जो कुछ भी याद करते या लिखते थे उसे अपने व्यवहार में शामिल करते थे। यह ध्यान देने योग्य है कि इब्न उमर को सूरह अल-बकरा सीखने में आठ साल लगे।

विषय



फुटनोट:

[1] हदीस शब्द का उपयोग अक्सर बहुवचन के लिए भी किया जाता है।

[2] मिश्कत

[3] सहीह अल-बुखारी

[4] सहीह मुस्लिम

[5] सहीह अल-बुखारी

[6] तिर्मिज़ी और अबू दाऊद

[7] खतीब, अल-जामी

[8] अबू उबैद, अल-अमवाल।

[9] इब्न साद।

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