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इब्राहिम (2 का भाग 2)

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विवरण: इस पाठ मे क़ुरआन और सुन्नत पर आधारित पैगंबर अब्राहम (इब्राहिम) के जीवन की सबसे महत्वपूर्ण घटनाओं का वर्णन है।

द्वारा Imam Mufti

प्रकाशित हुआ 08 Nov 2022 - अंतिम बार संशोधित 07 Nov 2022

प्रिंट किया गया: 20 - ईमेल भेजा गया: 0 - देखा गया: 1,401 (दैनिक औसत: 3)


उद्देश्य

·क़ुरआन और सुन्नत के आधार पर पैगंबर अब्राहम (इब्राहिम) के जीवन की सबसे महत्वपूर्ण घटनाओं को जानना।

अरबी शब्द

·सुन्नत - अध्ययन के क्षेत्र के आधार पर सुन्नत शब्द के कई अर्थ हैं, हालांकि आम तौर पर इसका अर्थ है जो कुछ भी पैगंबर ने कहा, किया या करने को कहा।

·काबा - मक्का शहर में स्थित घन के आकार की एक संरचना। यह एक केंद्र बिंदु है जिसकी ओर सभी मुसलमान प्रार्थना करते समय अपना रुख करते हैं।

·रकात - प्रार्थना की इकाई।

·हज - मक्का की तीर्थयात्रा जहां तीर्थयात्री कुछ अनुष्ठानों का पालन करता है। हज इस्लाम के पांच स्तंभों में से एक है, जिसे हर वयस्क मुसलमान को अपने जीवन में कम से कम एक बार अवश्य करना चाहिए यदि वे इसे वहन कर सकते हैं और शारीरिक रूप से सक्षम हैं।

·सअई - सफा और मारवा की पहाड़ियों के बीच चलना और दौड़ना।

वर्षों के असफल प्रचार और परलोक में अपने पिता के संभावित भाग्य पर दुखी होने के बाद, कोमल हृदय वाले इब्राहिम ने अपने पिता के लिए प्रार्थना करने का अपना वादा निभाया। इस प्रार्थना को अल्लाह ने अंत में खारिज कर दिया (क़ुरआन 9:113-114)। इब्राहिम हारान और मूर्तिपूजकों को छोड़ के चले गए, ये हम लोगो के लिए एक उदाहरण है। अल्लाह क्षमा मांगने को कहता है और उसने जो घोषणा की है उसके खिलाफ क्षमा मांगने की चेतावनी देता है:

“तुम्हारे लिए इब्राहीम तथा उसके साथियों में एक अच्छा आदर्श है। जबकि उन्होंने अपनी जाति से कहाः निश्चय हम विरक्त हैं तुमसे तथा उनसे, जिनकी तुम इबादत (वंदना) करते हो अल्लाह के सिवा। हमने तुमसे कुफ़्र किया। खुल चुका है बैर हमारे तथा तुम्हारे बीच और क्रोध सदा के लिए। जब तक तुम ईमान न लाओ अकेले अल्लाह पर, परन्तु इब्राहीम का ये कथन अपने पिता से कि मैं अवश्य तेरे लिए क्षमा की प्रार्थना करूंगा और मैं नहीं अधिकार रखता हूं अल्लाह के समक्ष कुछ।’”[1]

इब्राहिम मिस्र चले गए, जहां वो फिरौन से मिले। एक सुंदर और आकर्षक महिला सारा ने फिरौन का ध्यान आकर्षित किया। जब फिरौन ने पूछा के ये कौन है, तब इब्राहिम ने जवाब दिया कि वह उसकी बहन है - उसका मतलब आस्था में उसकी बहन से था। उसके जरिये, मिस्र वासियों को अल्लाह के अधीन होने के लिए कहा जाने वाला था। यह सोचकर कि वह उसके उपयोग के लिए सही है, फिरौन ने जल्दी से सारा को बुलाया, जो इब्राहिम के निर्देश पर अपने संबंधों के बारे में चुप थी। हालांकि, सारा एक पवित्र महिला थी, और उसने प्रार्थना में अल्लाह की ओर रुख किया। जिस क्षण फिरौन सारा के पास पहुंचा, उसका ऊपरी शरीर लकवाग्रस्त हो गया। उसने संकट में सारा को पुकारा, और वादा किया कि अगर वह उसे छोड़ देगी तो वह उसे छोड़ देगा! हालांकि, उसने केवल अल्लाह से उसकी रिहाई के लिए प्रार्थना की, यह दिखाने के लिए कि केवल अल्लाह के पास ही उसकी रक्षा करने की शक्ति है। तीसरे असफल प्रयास के बाद उसने आखिरकार सारा को जाने दिया। सारा इब्राहिम के पास लौट आई, उसके साथ हाजिरा थी जो फिरौन की ओर से एक उपहार थी। उसने बुतपरस्त मिस्र वासियों को एक शक्तिशाली संदेश दिया था, फिर भी फिरौन ने प्रायश्चित नहीं किया, बल्कि उसे अल्लाह से प्रायश्चित करना चाहिए था।

बहुत से उपहारों के साथ इब्राहिम फ़िलिस्तीन लौट आये। फिर भी सारा और इब्राहिम निःसंतान रहे, दैवीय वादों के बावजूद कि उनके कई वंशज होंगे। परोपकारिता से प्रेरित, सारा ने सुझाव दिया कि इब्राहिम अपनी दासी हाजिरा को दूसरी पत्नी बना ले और उस से एक बच्चा पैदा करे। फिलिस्तीन में, इब्राहिम ने हाजिरा से शादी की, जिससे उसे एक बेटा इस्माईल पैदा हुआ।

जब इस्माईल छोटे ही थे तब इब्राहिम को अल्लाह ने हाजिरा और इस्माईल को हेब्रोन से 700 मील दक्षिण-पूर्व में बक्का की एक बंजर घाटी में ले जाने का आदेश दिया। बाद में इसे मक्का कहा जाने लगा। इब्राहिम ने उन्हें पानी का थैले और खजूर से भरे चमड़े के थैले के साथ वहीं छोड़ दिया। जैसे ही इब्राहिम उन्हें छोड़कर दूर जाने लगे, हाजिरा इस बात को लेकर चिंतित हो गई कि यह क्या हो रहा है। इब्राहिम ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। हाजिरा ने उनका पीछा किया, 'हे इब्राहिम, हमें इस घाटी में छोड़ कर तुम कहां जा रहे हो, यहां कोई नहीं है जिसके साथ हम रह सकें, और यहां कुछ भी नही है?' इब्राहिम ने अपनी गति तेज कर दी। अंत में हाजिरा ने पूछा, 'क्या अल्लाह ने तुमसे ऐसा करने को कहा है?' अचानक, इब्राहिम रुक गए, पीछे मुड़े और कहा, 'हाँ!' इस उत्तर से कुछ हद तक आराम महसूस करते हुए हाजिरा ने पूछा ,'हे इब्राहिम, तुम हमें किसके पास छोड़ रहे हो?' इब्राहिम ने उत्तर दिया , 'मैं तुम्हें अल्लाह की देखरेख में छोड़ रहा हूं। हाजिरा अपने पालनहार के सामने नतमस्तक हुई और कहा, 'मैं अल्लाह के साथ रहकर संतुष्ट हूं!'[2]वह इस्माईल के पास वापस आई। इब्राहिम जब उनकी नजरो से दूर चले गए तो उन्होंने अपनी पत्नी और बच्चे के लिए प्रार्थना की।

थोड़े समय बाद ही पानी और खजूर खत्म हो गए और हाजिरा की हताशा बढ़ गई। अपनी प्यास बुझाने या अपने छोटे बच्चे को स्तनपान कराने में असमर्थ होने पर हाजिरा पानी की तलाश करने लगी। वह पास की एक पहाड़ी की चट्टानी ढलान पर चढ़ने लगी, उसने सोचा की 'शायद वहां से कोई कारवां गुजर रहा होगा,'। वह सफा और मारवा की दो पहाड़ियों के बीच सात बार पानी की तलाश में दौड़ी, और फिर उसे एक आवाज सुनाई दी। तराई में नीचे देखने पर उसने देखा कि इस्माईल के पास कोई खड़ा है। यह स्वर्गदूत जिब्रील थे, और जब हाजिरा पहाड़ी से नीचे आने लगी तो जिब्रील ने अपनी एड़ी से बच्चे के बगल में जमीन पर प्रहार किया, और वहां से पानी बहने लगा। यह एक चमत्कार था! हाजिरा उसके चारों ओर एक बांध बनाने की कोशिश करने लगी ताकि पानी न बह जाए और वो अपने थैले को भर ले। 'छोड़े जाने से मत डरो,' स्वर्गदूत ने कहा, 'यह अल्लाह का घर है जिसे यह लड़का और इसके पिता बनाएंगे, और अल्लाह कभी भी अपने लोगों को नही छोड़ता है।'[3] कुछ ही समय बाद, जुर्हाम का समुदाय जो दक्षिणी अरब से पलायन कर रहा था, मक्का की घाटी से गुजरते हुए रुक गया। पक्षियों को उस दिशा में उड़ते हुए कभी नहीं देखा था क्योंकि यह शुष्क और निर्जीव जमीन मानी जाती थी, इसलिए वे यह देखने गए कि ये पक्षी कहां जा रहे है। जब उन्होंने प्रचुर मात्रा में पानी देखा, तो उन्होंने मां और बच्चे से पूछा कि क्या वे इसका इस्तेमाल कर सकते हैं। आखिरकार, वे मक्का में बस गए और इस्माईल उनके बीच बड़ा हुआ।

वर्षों के अलगाव के बाद मक्का में अपने परिवार के साथ एक पुनर्मिलन के दौरान, अल्लाह ने इब्राहिम को एक सपने के माध्यम से अपने बेटे को बलिदान करने का आदेश दिया; एक दशक की प्रार्थना और अलगाव के बाद वह बेटे से हाल ही में फिर से मिले थे। इब्राहिम ने अपने बेटे से यह जानना चाहा कि क्या वह समझ गया है, इब्राहिम ने कहा: 'ऐ मेरे प्यारे बेटे, मैंने एक सपने में देखा है कि मुझे तुम्हारी बलि देनी होगी। तो तुम्हें क्या लगता है?' इस्माईल ने कहा: 'ऐ मेरे पिता! वही करो जिसकी तुम्हें आज्ञा मिली है। ईश्वर ने चाहा तो तुम मुझे संतुष्ट पाओगे।’”[4] एक धर्मपरायण पिता का धर्मपरायण पुत्र अल्लाह के अधीन होने के लिए प्रतिबद्ध था और स्वेच्छा से बलिदान के लिए तैयार था। इब्राहिम को अपने बेटे को मक्का से लगभग चार मील पूर्व मीना में ले जाने का आदेश मिला था, जहां उसने उसे वध के लिए लिटा दिया। जैसे ही इब्राहीम का चाकू चलने के लिए तैयार था, एक आवाज ने उसे रोक लिया,"हमने उसे कहा: 'ऐ इब्राहिम: तुमने पहले ही अपना सपना पूरा कर लिया है।" इस प्रकार हम अच्छे को पुरस्कृत करते हैं। यह वास्तव में एक स्पष्ट परीक्षा थी।”[5] इब्राहीम को इस्माईल की जगह एक मेढ़े की बलि देने का आदेश मिला, 'फिर हमने उसे एक महान बलिदान के साथ छुड़ाया।’

इब्राहिम के फिलिस्तीन लौटने पर, स्वर्गदूतों उससे मिलने आये, जिन्होंने उन्हें और सारा को एक बेटे इसहाक की खुशखबरी दी, "हम तुम्हारे लिए एक बुद्धिमान लड़के की शुभ सूचना ले कर आये हैं।[6]

मक्का की अपनी बाद की यात्राओं में से एक में दोनों ने अल्लाह के आदेश पर काबा का निर्माण किया। जब पिता और पुत्र काबा का निर्माण कर रहे थे , उन्होंने प्रार्थना की:

“हे हमारे पालनहार! हमसे ये सेवा स्वीकार कर ले। तू ही सब कुछ सुनता और जानता है। हे हमारे पालनहार! हम दोनों को अपना आज्ञाकारी बना तथा हमारी संतान से एक ऐसा समुदाय बना दे, जो तेरा आज्ञाकारी हो और हमें हमारे (हज्ज की) विधियां बता दे तथा हमें क्षमा कर। वास्तव में तू क्षमा करने वाला, दयावान् है। हे हमारे पालनहार! उनके बीच उन्हीं में से एक दूत भेज, जो उन्हें तेरे छंद सुनाये और उन्हें पुस्तक (क़ुरआन) तथा ह़िक्मत (सुन्नत) की शिक्षा दे और उन्हें शुध्द तथा आज्ञाकारी बना दे। वास्तव में, तू ही प्रभुत्वशाली तत्वज्ञ है।” (क़ुरआन 2:127-129)

मक्का छोड़ने से पहले इब्राहिम ने अल्लाह से खास प्रार्थना की। उन्होंने मक्का को शान्ति का नगार बनाने, झूठी पूजा से अपने परिवार के लिए सुरक्षा, इस्माईल और उसके वंश के लिए आशीर्वाद, अपने वंश के लिए नियमित प्रार्थना, और अपने लिए, अपने माता-पिता और सभी विश्वासियों के लिए क्षमा (क़ुरआन 14:35-41) के लिए कहा। इब्राहिम की इस्माईल के वंशजों के लिए एक दूत के लिए प्रार्थना कई हजार साल बाद स्वीकार की गई जब अल्लाह ने पैगंबर मुहम्मद (उन पर अल्लाह की दया और आशीर्वाद हो) को अरब के लोगों के बीच भेजा।

उन्होंने अब एक ईश्वर में विश्वास करने वाले प्रत्येक विश्वासी के लिए काबा की तीर्थयात्रा की बाध्यता की घोषणा की (क़ुरआन 22:27)। ये हैरानी की बात है कि वर्तमान समय में यहूदी और ईसाई धर्म में इसका उल्लेख क्यों नहीं है, यह उनके धार्मिक शिक्षण से जानबूझकर हटाया गया हो सकता है क्योंकि यह उनके विश्वास को 'वादा भूमि' से हटा कर एक ऐसी भूमि पर ले जाता जहां 'चुने हुए लोग' 'बनी इस्राईल'मे नहीं बसे थे।

इब्राहिम और हज

हज के कई संस्कार इब्राहिम और उनके परिवार की घटनाओं की याद दिलाते हैं। काबा के चारों ओर घूमने के बाद मुसलमान 'इब्राहिम के स्थान' के पीछे दो रकअत की नमाज़ पढ़ता है, वह पत्थर जिस पर वो काबा बनाने के लिए खड़े थे। प्रार्थना के बाद, मुसलमान ज़मज़म से पानी पीता है, जिब्रील द्वारा निकाला गया चमत्कारी पानी जिससे हाजिरा और इस्माईल की जान बची थी। सअई (सफा और मारवा के बीच चलना) की रस्म, पानी के लिए हाजिरा की बेताब खोज की याद दिलाता है जब वह और उसका बच्चा मक्का में अकेले थे। मीना में एक जानवर की कुर्बानी इब्राहिम की अल्लाह की खातिर अपने बेटे की कुर्बानी देने की इच्छा की याद दिलाती है। अंत में तीन स्तम्भों (जमरात) पर पथराव - मीना में इब्राहिम को इस्माईल की बलि देने से रोकने के लिए शैतानी प्रलोभनों की अस्वीकृति का उदाहरण है।

इब्राहिम, 'जिससे अल्लाह ने प्यार किया' - खलील-उल्लाह - जिसके बारे में अल्लाह ने कहा, "मैं तुम्हें राष्ट्रों का सरदार बनाऊंगा।[7]इब्राहिम फ़िलिस्तीन लौट आये और वहां उनकी मृत्यु हो गई।



फुटनोट:

[1] क़ुरआन 60:4

[2] सहीह अल-बुखारी

[3] सहीह अल-बुखारी

[4] क़ुरआन 37:101-102

[5] क़ुरआन 37:104-106

[6] क़ुरआन 15:53

[7] क़ुरआन 2:125

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