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अनुष्ठान स्नान (ग़ुस्ल) का शिष्टाचार

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विवरण: इस्लाम जीवन का एक व्यापक तरीका है; यह हमें सिखाता है कि हम अपनी स्वच्छता को कैसे बनाए और सुधारें। इस पाठ में स्नान के इस्लामी शिष्टाचार और आध्यात्मिक शुद्धता के साथ इसके संबंध को शामिल किया गया है। मुस्लिम महिलाओं के लिए विशिष्ट पहलुओं पर विशेष ध्यान दिया गया है।

द्वारा Imam Mufti

प्रकाशित हुआ 08 Nov 2022 - अंतिम बार संशोधित 07 Nov 2022

प्रिंट किया गया: 26 - ईमेल भेजा गया: 0 - देखा गया: 1,330 (दैनिक औसत: 3)


आवश्यक शर्तें

·हाल ही में परिवर्तित हुए लोग कैसे प्रार्थना करें (2 भाग)

उद्देश्य

·अच्छे स्वास्थ्य और स्नान के संबंध को समझना।

·अनुष्ठान स्नान करने का सही तरीका जानना।

·यह समझना कि अनुष्ठान स्नान कब आवश्यक है और कुछ संबंधित विविध मुद्दे।

अरबी शब्द

·वूदू - वुज़ू।

·नमाज - आस्तिक और अल्लाह के बीच सीधे संबंध को दर्शाने के लिए अरबी का एक शब्द। अधिक विशेष रूप से, इस्लाम में यह औपचारिक पाँच दैनिक प्रार्थनाओं को संदर्भित करता है और पूजा का सबसे महत्वपूर्ण रूप है।

·ग़ुस्ल – अनुष्ठान स्नान

·जिहाद - एक संघर्ष, किसी निश्चित मामले में प्रयास, और एक वैध युद्ध है।

·हदीस - (बहुवचन - हदीसें) यह एक जानकारी या कहानी का एक टुकड़ा है। इस्लाम में यह पैगंबर मुहम्मद और उनके साथियों के कथनों और कार्यों का एक वर्णनात्मक रिकॉर्ड है।

परिचय

कई लोगों के लिए स्नान का मुख्य उद्देश्य गंदगी और गंध को दूर करना और मृत त्वचा कोशिकाओं को हटाना है - मूल रूप से, अच्छी स्वच्छता बनाए रखना। इसके अलावा, लोग स्वच्छ महसूस करने के लिए, ताजा गंध के लिए, या आराम महसूस करने के लिए स्नान करते हैं। अच्छी स्वच्छता स्वास्थ्य को बढ़ाती है और बीमारी से बचाती है।

इस्लाम जीवन का एक व्यापक तरीका है और यह हमें सिखाता है कि हम अपनी स्वच्छता को कैसे बनाए और सुधारें। स्नान शिष्टाचार को पूजा के स्तर का माना गया है, और अच्छी स्वच्छता आध्यात्मिक शुद्धता से जुड़ी होती है। एक नए मुसलमान को शारीरिक और आध्यात्मिक स्वच्छता बनाए रखने के लिए स्नान करने के सरल नियमों को सीखना चाहिए। धोने को अरबी मे ग़ुस्ल कहते हैं, विशेष रूप से पूरे शरीर को निर्धारित तरीके से पानी से धोना। कभी-कभी इसे 'मामूली स्नान' (वुज़ू) से अलग करने के लिए इसे 'अनुष्ठान स्नान' या 'प्रमुख वुज़ू' भी कहा जाता है । जब कोई अशुद्धता की प्रमुख अवस्था से खुद को शुद्ध करना चाहता है, तो उसे इस इरादे के साथ स्नान करना चाहिए।

शुद्ध करने के लिए पानी का उपयोग इस्लाम में नया नहीं है, यह यहूदी धर्म, ईसाई धर्म, हिंदू धर्म, शिंटोवाद और अन्य धर्मों मे आम है। यहूदी धर्म में पारंपरिक रूप से मिकवा (यहूदी स्नान) और धर्मांतरण के अनुष्ठानों में पानी का उपयोग किया जाता था। इसके अलावा अनुष्ठान स्नान (ग़ुस्ल) को बपतिस्मा नहीं समझना चाहिए, बपतिस्मा कुछ ईसाई चर्चों में प्रवेश के लिए किया जाने वाला एक अनुष्ठान है, जिसके रूप और अनुष्ठान अलग-अलग होते हैं, जैसे कि पानी में विसर्जन या माथे से शुरू कर के सिर को धोना। और अनुष्ठान स्नान (ग़ुस्ल) विरासत में मिले पाप को दूर करने के लिए नहीं होता है।

इस पाठ में हम सीखेंगे कि स्नान कैसे और कब करना है। हम मुस्लिम महिलाओं के अनुष्ठान स्नान के विशिष्ट पहलुओं पर भी चर्चा करेंगे।

अनुष्ठान स्नान कैसे किया जाता है?

अनुष्ठान स्नान में यह पर्याप्त है कि एक व्यक्ति अपने पूरे शरीर को पूरी तरह से धो दे,[1] लेकिन अनुष्ठान स्नान करने का सही तरीका और क्रम, जैसा कि पैगंबर (उन पर अल्लाह की दया और आशीर्वाद हो) ने किया था, इस प्रकार है:

(1) व्यक्ति को अपने दिल में ये इरादा करना चाहिए की वह एक निर्धारित तरीके से अल्लाह के लिए खुद को शुद्ध कर रहा है। इरादा एक साधारण चीज़ है जो नियमित स्नान को अल्लाह को प्रसन्न करने वाले पूजा के कार्य में बदल देता है।

(2) 'बिस्मिल्लाह ' (मैं शुरू करता हूं अल्लाह के नाम से) कहें।

(3) तीन बार दोनों हाथ धोएं।

(4) फिर जननांगों को बाएं हाथ से धोएं।

(5) वुज़ू (वूदू) करें जैसा की आप नमाज़ पढ़ने के लिए करते हैं।

·तीन बार हाथ धोएं।

·कुल्ला करें और नाक साफ़ करें।

·फिर तीन बार चेहरा धो लें।

·इसके बाद दाहिने हाथ को कोहनी तक तीन बार धोएं।

·फिर इसी तरह बायां हाथ कोहनी तक धोएं।

·पूरे सिर को और कान को अंदर और बाहर से पोंछ लें।

पैगंबर अपने पांव अनुष्ठान स्नान के अंत मे धोते थे। आप अपने पांव अभी धो सकते हैं या अंत में। पहले दाहिना पैर धोएं।

(6) पानी को बालों में तीन बार डालें, ताकि पानी बालों की जड़ों तक पहुंच जाए।

(6) पूरे शरीर पर पानी डालें, दाहिनी ओर से शुरू करें, फिर बाईं तरफ, बगलों को धोएं, कानों के अंदर, नाभि के अंदर, पैर की उंगलियों के बीच और शरीर के जिस भी हिस्से तक आसानी से पहुंच सकते हैं उसे धो लें।[2]

अनुष्ठान स्नान कब आवश्यक हो जाता है?

स्नान के बिना कुछ पूजा के कार्य नहीं किए जा सकते हैं। इन मामलों की अनदेखी करना पाप है। निम्नलिखित स्थितियों में एक मुसलमान को अनुष्ठान स्नान करने की आवश्यकता होती है।

1. वीर्य या कामोन्माद द्रव का निकलना।

यदि वीर्य या कामोन्माद द्रव इच्छा की भावनाओं के साथ निकलता है, तो अनुष्ठान स्नान की आवश्यकता होती है। यदि वे अनजाने में इच्छा की भावना के बिना निकलता है तो अनुष्ठान स्नान की आवश्यकता नहीं होती है।

यदि वीर्य या कामोन्माद द्रव निम्नलिखित तरीके से निकलता है तो अनुष्ठान स्नान अवश्य करना चाहिए:

(a) जागते समय उत्तेजना के कारण (जैसे संभोग और हस्तमैथुन) वीर्य या कामोन्माद द्रव का निकलना।[3]

(b) सोते समय (जैसे सपने में[4]) निकलना। दूसरे शब्दों में, यदि किसी को ऐसा न लगे कि रात में निकला है, लेकिन जागने पर वह खुद को गीला पाता है, तो उन्हें अनुष्ठान स्नान करना चाहिए।

निम्नलिखित मामलों में अनुष्ठान स्नान की आवश्यकता नहीं है:

(a) यदि वीर्य या कामोन्माद द्रव बिना किसी इच्छा की भावना के, बिना उत्तेजना के अनजाने में निकलता जाए, जैसे कि बीमारी या ठंड के मौसम के कारण।

(b) अगर उन्हें लगता है कि रात मे निकला था लेकिन कोई निशान नहीं मिलता है, तो उन्हें अनुष्ठान स्नान करने की आवश्यकता नहीं है।

2. प्रवेश।[5]

यदि लिंग योनि में प्रवेश करता है, तो दोनों पति-पत्नी के लिए अनुष्ठान स्नान अनिवार्य हो जाता है, चाहे स्खलन हुआ हो या न हुआ हो और कंडोम का उपयोग किया हो या नहीं। केवल जननांगों को रगड़ने या बाहर से छूने मात्र से अनुष्ठान स्नान आवश्यक नहीं होता है।

3. मासिक धर्म और प्रसवोत्तर रक्तस्राव।

एक महिला को मासिक धर्म समाप्त होने के बाद अनुष्ठान स्नान करना चाहिए, जिसे आमतौर पर महिलाएं सफेद स्राव कहती हैं। प्रसव के बाद होने वाले रक्तस्राव के बाद भी स्नान करना चाहिए। इन दोनों मामलों में दैनिक प्रार्थना (नमाज), उपवास और अपने पति के साथ वैवाहिक संबंधों को फिर से शुरू करने के लिए अनुष्ठान स्नान की आवश्यकता होती है।[6]

4. मृत्यु।

सभी मृतक मुस्लिम के शरीर को अनुष्ठान स्नान (ग़ुस्ल[7]), दिया जाना चाहिए, सिर्फ जिहाद[8] (अल्लाह के लिए संघर्ष या युद्ध) में लगे घावों से मरे हुए व्यक्ति को छोड़कर।

5. इस्लाम अपनाने पर।

कुछ विद्वानों का कहना है कि इस्लाम अपनाने पर एक नए मुसलमान के लिए अनुष्ठान स्नान (ग़ुस्ल) आवश्यक होता है[9], ताकि खुद को अशुद्धता की प्रमुख स्थिति से शुद्ध किया जा सके। इसलिए अनुष्ठान स्नान करना चाहिए।

आगे के पाठों में आप अन्य स्थितियों के बारे में अधिक जानेंगे जब स्नान करना चाहिए, यह अनिवार्य नहीं है लेकिन स्नान करने को कहा जाता है।



फुटनोट:

[1]उम्म सलामा ने बताया कि अल्लाह के दूत ने उससे कहा कि संभोग के बाद: 'यह आपके लिए पर्याप्त है कि आप अपने सिर पर तीन बार पानी डालें और फिर पुरे शरीर पर पानी गिराएं, और आप शुद्ध हो जाएंगे।’ (सहीह अल-बुखारी)

[2]यह पैगंबर की पत्नी 'आयशा' के कथन पर आधारित है: "जब पैगंबर (उन पर अल्लाह की दया और आशीर्वाद हो) संभोग के बाद स्नान करते, तो वह सबसे पहले अपने हाथों को धोते। फिर वह अपने दाहिने हाथ से बायीं ओर पानी डालते और अपने यौन अंगों को धोते, वुज़ू करते, थोड़ा पानी लेते और अपनी उंगलियों को अपने बालों की जड़ों में तब तक लगाते जब तक सिर की त्वचा गीली न हो जाये, फिर सिर पर तीन बार पानी डालते और फिर पूरे शरीर पर पानी डालते।” (सहीह अल-बुखारी और सहीह मुस्लिम द्वारा संबंधित)

[3]अल्लाह के दूत ने कहा, "वीर्य के स्खलन के बाद पानी (धोने) की जरूरत होती है।" (सहीह मुस्लिम)। इसके अलावा, एक मुसलमान को अपनी यौन इच्छाओं को पूरा करने के लिए हस्तमैथुन करना जायज़ नहीं है।

[4]रात का उत्सर्जन पुरुषों द्वारा नींद में अनुभव किए गए वीर्य का स्खलन है। इसे "गीला सपना" भी कहते हैं। किशोरावस्था और शुरुआती वयस्क वर्षों के दौरान रात का उत्सर्जन सबसे आम है, और संचित वीर्य उत्पादन का परिणाम है। हालांकि, यौवन के बाद किसी भी समय रात का उत्सर्जन हो सकता है, न कि केवल किशोरावस्था और शुरुआती वयस्कता में। ये सपनों में भी हो सकता है और नहीं भी। कुछ पुरुष स्खलन के दौरान जाग जाते हैं, जबकि अन्य सोये रहते हैं।

[5] पैगंबर ने कहा: "यदि एक हिस्सा दूसरे हिस्से में प्रवेश करता है, तो ग़ुस्ल अनिवार्य हो जाता है।” (मुसनद, सहीह मुस्लिम)

[6]अल्लाह क़ुरआन में कहता है, "उनके समीप भी न जाओ, जब तक पवित्र न हो जायें। फिर जब वे भली भाँति स्वच्छ हो जायें, तो उनके पास उसी प्रकार जाओ, जैसे अल्लाह ने तुम्हें आदेश दिया है"(क़ुरआन 2:222) इसके अलावा, अल्लाह के दूत ने एक महिला साथी से कहा, "अपने मासिक धर्म के दौरान प्रार्थना न करें। इसके समाप्त होने के बाद, अनुष्ठान स्नान करें और प्रार्थना करें।” (सहीह अल-बुखारी, सहीह मुस्लिम)

[7]जब पैगंबर की बेटी ज़ैनब की मृत्यु हुई, तो उन्होंने कहा: "उसे पानी से तीन या पांच बार, या जितनी बार उचित लगे धो दो” (सहीह अल-बुखारी)

[8] एक प्रामाणिक हदीस में, जाबिर इब्न अब्दुल्ला ने कहा कि पैगंबर ने उहूद के शहीदों को 'उनके शरीर पर लगे खून के साथ दफन करने का आदेश दिया - और उन्हें न तो धोया गया और न ही उन्होंने उनके लिए अंतिम संस्कार की प्रार्थना की।’ (सहीह अल-बुखारी)

[9] यह पैगंबर के कथन पर आधारित है जो एक नए मुसलमान अबू तल्हा को इस्लाम में प्रवेश करने पर ग़ुस्ल करने का आदेश देते हैं। (अहमद)

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