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पैगंबर ईसा के जीवन की झलकियां

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विवरण: पैगंबर ईसा के जीवन की घटनाएं जो हमें मूल्यवान सबक सिखाती हैं जिन्हें आज के समय मे मुसलमानों और ईसाइयों के जीवन पर लागू किया जा सकता है।

द्वारा Aisha Stacey (© 2013 NewMuslims.com)

प्रकाशित हुआ 08 Nov 2022 - अंतिम बार संशोधित 07 Nov 2022

प्रिंट किया गया: 25 - ईमेल भेजा गया: 0 - देखा गया: 1,547 (दैनिक औसत: 4)


उद्देश्य:

·पैगंबर यीशु (ईसा) के जीवन की कई घटनाओं को जानना।

·यह समझना कि यीशु ने कभी खुद को ईश्वर नहीं कहा।

·यह समझना कि इस्लाम मे परिवर्तित होने का अर्थ यीशु में विश्वास को छोड़ना नहीं है।

अरबी शब्द:

·ईसा - यीशु का अरबी नाम। एक पूर्ण स्पष्टीकरण यहां मिलेगा http://www.islamreligion.com/articles/1447/

·सुन्नत - अध्ययन के क्षेत्र के आधार पर सुन्नत शब्द के कई अर्थ हैं, हालांकि आम तौर पर इसका अर्थ है जो कुछ भी पैगंबर ने कहा, किया या करने को कहा।

·अल-फातिहा - क़ुरआन का पहला अध्याय।

·इंजील - इस शब्द का अरबी मे अर्थ है सुसमाचार, इसमें भ्रष्ट या समय के साथ बदलने से पहले यीशु के सुसमाचारों का वर्णन था।

·ज़कात - अनिवार्य दान।

Glimpses_from_the_Life_of_Prophet_Isa._001.jpgइस्लाम में, ईसा एक प्रिय और सम्मानित व्यक्ति हैं, एक पैगंबर और दूत जो अपने लोगों को एक सच्चे ईश्वर की पूजा के लिए बुलाते थे। ईसा के बारे में मुस्लिम और ईसाइयों मे बहुत ही समान मान्यताएं हैं। एक पूर्ण विवरण इस लेख मे है, http://www.islamreligion.com/articles/1412/ और इसी वेबसाइट के अन्य लेखों मे भी। हालांकि मुस्लिम और ईसाई एक प्रमुख मान्यता मे अलग हैं। मुसलमान यह नहीं मानते कि ईसा ईश्वर है, या कि वह ईश्वर का पुत्र है, या कि वह ट्रिनिटी का हिस्सा हैं।

सबक 1

मुसलमान भी ईसा से प्यार करते हैं

इस्लाम में पैगंबर ईसा की स्थिति कभी-कभी इस्लाम में परिवर्तित होने वाले कई ईसाइयों के लिए समस्या हो जाती है। अक्सर उनके लिए अपने नए धर्म के लिए पुरानी आध्यात्मिक मान्यताओं को मिटाना मुश्किल होता है। पैगंबर ईसा के जीवन की झलकियां देखकर हम जो पहला महत्वपूर्ण सबक सीख सकते हैं, वह यह है कि वह एक बहुत ही महत्वपूर्ण व्यक्ति हैं। जो पैगंबर ईसा से प्यार करता है, वह उनसे प्यार करना बंद किए बिना इस्लाम को अपना सकता है। इस्लाम में, सभी पैगंबरो और दूतों से प्रेम करना आस्था का एक प्रमुख सिद्धांत है।

पैगंबर ईसा मुसलमानों और ईसाइयों दोनों के बीच इतनी प्रभावशाली शख्सियत हैं कि दुनिया भर के मुसलमानों और ईसाइयों के लिए इस पैगंबर के प्रति अपने प्यार से समझदारी, सहिष्णुता और साझा मूल्यों के संबंध बनाना संभव है।

सबक 2

ईसा ने कभी खुद को ईश्वर नहीं कहा

ईसाई सुसमाचार जिसे मुसलमान इंजील कहते हैं और इस्लाम के अनुसार ईसा ने कभी भी खुद को ईश्वर (अल्लाह) नहीं कहा और लोगो को सिखाया कि वह इज़राइल के लोगों के लिए बस अल्लाह के पैगंबर और दूत हैं। ईसा ने अपने अनुयायियों को केवल ईश्वर से प्रार्थना करना सिखाया, स्वयं से नहीं। न ही उन्होंने यह संकेत दिया कि किसी को उनके नाम से प्रार्थना करनी चाहिए।

पैगंबर मूसा (मूसा) को बताई गई दस आज्ञाओं में से पहली थी व्यवस्थाविवरण: 4, "हे इस्राएल, सुन, यहोवा हमारा ईश्वर है, यहोवा एक ही है"। इसको ईसा के मरकुस के सुसमाचार (12:28 और 29) में दोहराया गया और इसका समर्थन किया गया था। "और शास्त्रियों में से एक ने आकर... उस से पूछा, सब से पहिली आज्ञा कौन सी है? और इसा ने उस को जवाब दिया, कि सब आज्ञाओं में से पहिले आज्ञा यह है, "हे इस्राएल, सुन, यहोवा हमारा ईश्वर है, यहोवा एक ही है।’“

क़ुरआन में, पैगंबर ईसा कहते हैं, "... मैं लाया हूं तुम्हारे पास ज्ञान और ताकि उजागर कर दूं तुम्हारे लिए वह कुछ बातें, जिनमें तुम विभेद कर रहे हो। अतः, अल्लाह से डरो और मेरा ही कहा मानो। वास्तव में, अल्लाह ही मेरा पालनहार तथा तुम्हारा पालनहार है। अतः, उसी की वंदना (पूजा) करो यही सीधी राह है।’” (क़ुरआन 43:63)

किंग जेम्स बाइबिल के शब्दों में, जब ईसा के एक शिष्य ने उनसे कहा, "हे प्रभु, जैसे यूहन्ना ने अपने शिष्यों को प्रार्थना करना सिखाया वैसे ही हमें भी तू सिखा दे।" इसा ने उत्तर दिया, “जब तुम प्रार्थना करो तो कहो, हे हमारे पिता, जो आसमान मे है, तेरा नाम पवित्र माना जाए, तेरा राज्य आए। तेरी इच्छा पृथ्वी पर वैसे ही पूरी हो जैसे आसमान में होती है। हमारी दिन भर की रोटी हर दिन हमें दिया कर, और हमारे पापों को क्षमा कर, क्योंकि हम भी अपने हर एक अपराधी को क्षमा करते हैं, और हमें परीक्षा में न ला’ वरन उस दुष्ट से बचा।” (लूका 11:1-4, मत्ती 6:9-13)

ईसा अपने अनुयायियों को सिखाते थे कि ईसाई धर्म का अर्थ "ईश्वर की प्रार्थना" करना है, एक ऐसी प्रार्थना जिसे ईसाई उसी तरह मानते हैं जैसे मुसलमान क़ुरआन के पहले अध्याय अल-फातिहा को मानते हैं।

सबक 3

पैगंबर ईसा और मुहम्मद के बीच एक भाईचारे का संबंध है

मरियम के पुत्र ईसा की तरह, पैगंबर मुहम्मद अपने से पहले के सभी पैगंबरो के संदेश की पुष्टि करने आए थे; उन्होंने लोगों को एक ईश्वर की पूजा करने के लिए बुलाया। अपनी सुन्नत में पैगंबर मुहम्मद उस संबंध को बताते हैं जो अल्लाह के सभी पैगंबरो के बीच भाईचारे के रूप में मौजूद है। लेकिन जब उन्होंने पैगंबर ईसा के बारे में बताया, तो उन्होंने कहा: "मैं इस दुनिया और परलोक में मरियम के पुत्र के सबसे करीब हूं। उसके और मेरे बीच कोई पैगंबर नही है।[1]

उन्होंने यह भी कहा, "जो कोई इस बात की गवाही देता है कि ईश्वर के अलावा कोई पूजा के योग्य नहीं है, ईश्वर का कोई साझी नहीं है, और यह कि मुहम्मद उनके दास और पैगंबर है, और यह कि यीशु ईश्वर के दास और उनके पैगंबर है, और ईश्वर का शब्द[2] जो उसने मरियम को और उससे उत्पन्न आत्मा को प्रदान किया; और यह कि जन्नत (स्वर्ग) सत्य है, और यह कि नर्क की आग सत्य है, ईश्वर अंततः उसे उसके कर्मों के अनुसार स्वर्ग में प्रवेश देगा।”[3]

ईश्वर क़ुरआन में कहता है: "मसीह़ मर्यम का पुत्र केवल अल्लाह का दूत और उसका शब्द है, जिसे (अल्लाह ने) मर्यम की ओर डाल दिया तथा उसकी ओर से एक आत्मा है जैसा की बाकी मनुष्यों की आत्माएं हैं।[4]

सबक 4

सामाजिक न्याय

पैगंबर मुहम्मद और ईसा दोनों के पास सामाजिक न्याय के मजबूत और अडिग विचार थे। वे दोनों अपने-अपने समाज में असमानताओं और अन्याय के खिलाफ लड़े, और वे दोनों गरीबों, विधवाओं और अनाथों के प्रबल रक्षक थे।

पैगंबर मुहम्मद ने कहा, "जो विधवा या गरीब व्यक्ति की देखभाल करता है और उसकी मदद करता है, वह अल्लाह के लिए लड़ने वाले योद्धा की तरह है या उस व्यक्ति की तरह है जो दिन में उपवास करता है और पूरी रात प्रार्थना करता है। [5]

“ज़कात केवल गरीबो, जरूरतमंदों, कार्य-कर्ताओं तथा उनके लिए जिनके दिलों को जोड़ा जा रहा है और दास मुक्ति, ऋणियों (की सहायता), अल्लाह की राह में तथा यात्रियों के लिए है। अल्लाह की ओर से अनिवार्य (देय) है और अल्लाह सर्वज्ञ, तत्वज्ञ है।” (क़ुरआन 9:60)

पैगंबर ईसा भी अक्सर गरीबों और वंचितों की ओर से बोलते थे। प्रसिद्ध पहाड़ी का उपदेश एक उदाहरण है: “धन्य हो तुम, जो दीन हो, क्योंकि ईश्वर का राज्य तुम्हारा है। धन्य हो तुम जो अभी भूखे हो, क्योंकि तुम तृप्त होगे। धन्य हो तुम जो अब रोते हो, क्योंकि तुम हंसोगे।” (लूका 6:20, 21)

मत्ती के सुसमाचार 25:31-46 में, पैगंबर ईसा ने सुझाव दिया है कि उनके अनुयायियों को भूखों को खाना खिलाने, नग्न को कपड़े पहनाने और बीमारों और कैदियों से मिलने जाने के उनके कार्यों से जाना और आंका जाएगा। ईसा कहते हैं कि यदि कोई इन कार्यों में से एक को कम से कम अपने एक भाई के लिए करता है, तो मानो उसने वह कार्य खुद पैगंबर के लिए किया है।

पैगंबर ईसा की उदारता और न्याय की भावना असाधारण रूप से पैगंबर मुहम्मद द्वारा सिखाए और पालन किए गए सामाजिक न्याय के समान है।



फुटनोट:

[1] सहीह अल-बुखारी

[2] अल्लाह ने उन्हें अपने शब्द "हो जा!" के माध्यम से बनाया।

[3] इबिद

[4] यीशु अल्लाह के शब्द "हो जा" से बने थे। वह कभी भी शब्द "स्वयम" नही थे। अल्लाह ने उन्हें सम्मान देने के लिए उन्हें 'उसकी ओर से एक आत्मा' के रूप में वर्णित किया है। दूसरे शब्दों मे कहें तो, यीशु को अल्लाह की आत्मा के रूप में वर्णित करना केवल भाषण की एक आकृति है।

[5] इबिद

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