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मस्जिद में जाने के शिष्टाचार (2 का भाग 1)

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विवरण: बिना जाने कि क्या करना है, मस्जिद में जाना एक डरावना अनुभव हो सकता है। ये पाठ नए मुसलमानों को मस्जिद जाने को अधिक सुलभ बनाने के सबसे महत्वपूर्ण पहलुओं को सिखाएगा।

द्वारा Imam Mufti

प्रकाशित हुआ 08 Nov 2022 - अंतिम बार संशोधित 07 Nov 2022

प्रिंट किया गया: 19 - ईमेल भेजा गया: 0 - देखा गया: 1,247 (दैनिक औसत: 2)


उद्देश्य:

·पश्चिम में मुस्लिम जीवन में मस्जिद की भूमिका को समझना।

·मस्जिद में जाने के 6 शिष्टाचार सीखना।

अरबी शब्द:

·मस्जिद - प्रार्थना स्थल का अरबी शब्द।

·इमाम - नमाज़ पढ़ाने वाला।

·अज़ान - मुसलमानों को पांच अनिवार्य प्रार्थनाओं के लिए बुलाने का एक इस्लामी तरीका।

·अस-सलामु अलैकुम - आप पर शांति और आशीर्वाद बना रहे।

·सलाम - इस्लामी अभिवादन जैसे 'अस-सलामु अलैकुम'।

AttendingaMosque.jpgइस्लाम में मस्जिद मुस्लिम समाज की धड़कन है। पश्चिम में अधिकतर मुसलमान जमीन खरीद कर उस पर मस्जिद बनाते हैं। कभी-कभी वे कोई चर्च या कोई अन्य इमारत खरीद कर उसे मस्जिद में बदल देते हैं। कभी-कभी वे एक कमरा, गैरेज, या एक तहखाना भी किराए पर ले कर अस्थायी मस्जिद के रूप में उपयोग करते हैं।

सभी मामलों में, एक मस्जिद मुसलमानों के लिए वो जगह है जहां वे रोज़ाना नमाज़ पढ़ते हैं और एक दूसरे से मिलते हैं और मुस्लिम समुदाय के लिए फायदेमंद पूजा की अन्य गतिविधियों का संचालन भी करते हैं।

मस्जिद में की जाने वाली सबसे महत्वपूर्ण पूजा का कार्य शुक्रवार की नमाज है। कई मस्जिदों मे पांच दैनिक प्रार्थनाएं भी होती हैं। कई मस्जिदों में एक समर्पित इमाम होता है जो दैनिक प्रार्थना का नेतृत्व करता है। कई मस्जिदों में समर्पित इमाम नही होता है, लेकिन नमाज के समय उपस्थित लोगों में से कोई एक नमाज पढ़ाता है। इसी तरह नियमित इमाम भी शुक्रवार का उपदेश देते हैं और नमाज़ पढ़ाते हैं या उपदेश देने वाले अलग-अलग हो सकते हैं जो सप्ताह के हिसाब से बारी-बारी शुक्रवार का उपदेश देते हैं।

पैगंबर मुहम्मद ने हमें बताया कि मस्जिदें अल्लाह का घर हैं और इसमें जाने के कुछ शिष्टाचार और नियम हैं जिसे हर मुसलमान को सीख कर उसका पालन करना चाहिए।

मस्जिद मे जाने के कुछ शिष्टाचार निम्नलिखित हैं:

1. पूजा पहली प्राथमिकता होनी चाहिए। मस्जिद जाने का प्राथमिक उद्देश्य आकाश और पृथ्वी के एक सच्चे ईश्वर की पूजा करना है। बाकी सब इसके बाद आते हैं। कई मस्जिदें बास्केटबॉल, सामुदायिक रात्रिभोज, पिकनिक आदि जैसे गेमिंग और सामाजिक कार्यक्रम करवाती है। ये सभी सार्थक हैं, लेकिन प्राथमिक उद्देश्य के बाद आते हैं। मस्जिद मुख्य रूप से अल्लाह की पूजा की जगह है और इसका मतलब आम तौर पर प्रार्थना और क़ुरआन पढ़ना है।

2. सामान्य नियम यह है कि एक मुसलमान को साफ-सुथरा होना चाहिए, साफ-सुथरे कपड़े पहनने चाहिए और दुर्गंध के साथ मस्जिद में नहीं जाना चाहिए। उसे हर उस चीज़ से बचना चाहिए जिसमें तीखी गंध हो जैसे कि कच्चा लहसुन और कच्चा प्याज खाना, या धूम्रपान करना।

मुसलमान को मस्जिद में आने के लिए साफ कपड़े और साफ मोजे पहनने चाहिए। बुरी गंध न केवल साथी लोगो को परेशान करती है, बल्कि वे वहां उपस्थित स्वर्गदूतों को भी नापसंद होती है। याद रखें कि मस्जिद अल्लाह का घर है।

यदि कोई व्यक्ति ऐसा काम करता है जिससे उसको पसीना आता है या अन्य शारीरिक गंध आती है, तो उसे मस्जिद में आने से पहले स्नान करना चाहिए और कपड़े बदलने चाहिए। पैगंबर मुहम्मद ने कहा:

"जो कोई भी लहसुन या प्याज खाये, तो वो हमारी मस्जिद से दूर रहे, क्योंकि आदम के बच्चों को जो बुरा लगता है, उससे स्वर्गदूत भी नाराज़ होते हैं।" (सहीह मुस्लिम)

3. एक मुसलमान को मस्जिद में प्रवेश करते समय पहले अपना दाहिना पैर रखना चाहिए, और फिर वह पढ़ना चाहिए जो पैगंबर मुहम्मद ने बताया था:

“अल्ला-हुम्मफ-तहली अबवाबा रहमतिक।”

“ऐ अल्लाह, मेरे लिए अपनी दया के द्वार खोल दो।”

यह पढ़ना वैकल्पिक है, हालांकि यह पढ़ना एक पुरस्कृत कार्य है।

पैगंबर को हर कार्य को अपने दाहिने हिस्से से शुरुआत करना पसंद था। पैगंबर मुहम्मद के प्रसिद्ध साथी इब्न उमर पैगंबर की नकल करते और मस्जिद में प्रवेश करते समय सबसे पहले अपना दाहिना पैर रखते थे, और जब वह मस्जिद से बाहर निकलते तो सबसे पहले अपना बायां पैर बाहर निकलते थे। (सहीह अल-बुखारी)।

4. कालीन को साफ रखने के लिए, प्रार्थना कक्ष में प्रवेश करने से पहले अपने जूते उतार देना उचित है। यह बच्चों के लिए भी लागू होता है, जो पूरे कालीन पर गंदगी कर सकते हैं और उन्हें प्रार्थना कक्ष के अंदर इधर-उधर भागना भी नही चाहिए।

कई मस्जिदों में जूतों के लिए एक रैक होता है, जिसका इस्तेमाल वॉकवे और अन्य जगहों पर जूतों के स्थान को साफ रखने के लिए किया जाना चाहिए। इससे बाद में जूते ढूंढना भी आसान हो जाता है।

5. एक मुसलमान को मस्जिद में प्रवेश करते ही उपस्थित लोगों को "अस-सलामु अलैकुम" कहकर अभिवादन करना चाहिए, भले ही वह देखे कि लोग प्रार्थना कर रहे हैं। उसे जोर से कहने की जरूरत नहीं है, धीमे स्वर में कह देना ही काफी है। पैगंबर मुहम्मद के साथी पैगंबर को "अस-सलामु अलैकुम" कहते जब वो प्रार्थना कर रहे होते, और पैगंबर एक इशारे से जवाब देते थे। इसके बारे मे कई उल्लेख हैं। उदाहरण के लिए, पैगंबर के एक साथी सुहैब ने कहा: "मै अल्लाह के दूत के पास से गुजरा जब वह प्रार्थना कर रहे थे और उन्हें सलाम किया, और उन्होंने एक इशारे से मुझे जवाब दिया।" (नसाई)

एक अन्य उदाहरण में, इब्न उमर ने पैगंबर मुहम्मद के एक अन्य साथी बिलाल से पूछा, 'जब पैगंबर प्रार्थना कर रहे थे तो सलाम करने वाले साथियों को पैगंबर ने किस तरह जवाब दिया था?" बिलाल ने कहा: "अपनी हथेली फैलाकर।" (तिर्मिज़ी)

6 . एक मुसलमान को शुक्रवार की नमाज़, नियमित नमाज़, या व्याख्यान और कक्षाओं में भाग लेने के लिए समय का पाबंद होने का प्रयास करना चाहिए। देर से आने से पहले से चल रही कक्षा बाधित होती है, और यह शिक्षक और बाकी कक्षा के लिए असभ्य है। बेशक, शुक्रवार की नमाज के समय मस्जिद के दरवाजे पर स्वर्गदूत बैठते हैं जो लिखते हैं कि कौन आया, और अज़ान के बाद वे उपदेश सुनने के लिए अंदर चले जाते हैं। और अगर आप अज़ान के बाद आते हैं, तो आपका नाम नहीं लिखा जाता है!

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