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प्रार्थना (2 का भाग 1)

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विवरण: प्रार्थना (दुआ) का अर्थ, इसके लाभ और इसकी विधि।

द्वारा Imam Mufti (© 2012 IslamReligion.com)

प्रकाशित हुआ 08 Nov 2022 - अंतिम बार संशोधित 07 Nov 2022

प्रिंट किया गया: 16 - ईमेल भेजा गया: 0 - देखा गया: 1,191 (दैनिक औसत: 3)


उद्देश्य:

·दुआ का अर्थ समझना

·समझना कि दुआ पूजा है

·दुआ के 18 लाभ जानना

·दुआ करने के उचित शिष्टाचार और विधि को समझना

अरबी शब्द:

·दुआ - याचना, प्रार्थना, अल्लाह से कुछ मांगना।

·शिर्क - एक ऐसा शब्द जिसका अर्थ है अल्लाह के साथ भागीदारों को जोड़ना, या अल्लाह के अलावा किसी अन्य को दैवीय बताना, या यह विश्वास करना कि अल्लाह के सिवा किसी अन्य में शक्ति है या वो नुकसान या फायदा पहुंचा सकता है।

·हलाल: जिसकी अनुमति है

·तक़वा: भाषाई रूप से इसका अर्थ है "बचाना" या "ढाल बनना", जैसे कि स्वयं को गलत कामों से बचाना। इस्लाम में, तकवा अल्लाह की चेतना को संदर्भित करता है। यह बताता है कि व्यक्ति जो कुछ भी करता है उसे अल्लाह देख रहा है।

·आमीन: प्रार्थना के अंत में कही जाने वाली एक अभिव्यक्ति, जिसका अर्थ है 'ऐ अल्लाह, कृपया स्वीकार करें।’

·क़िबला: जिस दिशा की और रुख कर के औपचारिक प्रार्थना करी जाती है।

Supplication1.jpgअरबी शब्द "दुआ" का अर्थ है अपने ईश्वर से मदद और सहयोग मांगना। इसका अनुवाद दुआ या प्रार्थना के रूप में किया जा सकता है। यह पूजा का एक रूप है क्योंकि अल्लाह हमें उससे दुआ करने का आदेश देता है:

“तथा कहा है तुम्हारे पालनहार ने कि 'मुझीसे प्रार्थना करो, मैं तुम्हारी प्रार्थना स्वीकार करूंगा!'” (क़ुरआन 40:60)

चूंकि दुआ पूजा का एक कार्य है, इसे करने का तरीका, इसमें पालन की जाने वाली प्रक्रिया और इस पूजा को करते समय ध्यान रखने वाली बातें क़ुरआन और सुन्नत से होनी चाहिए।

दुआ का आस्था से करीबी संबंध है। पहला, यह एक खुली घोषणा है कि आप सिर्फ अल्लाह पर विश्वास करते हैं। दूसरा, यह आपको महसूस कराता है कि आपका जीवन आपके नियंत्रण में नहीं हैं, ये अल्लाह के नियंत्रण मे है। इसलिए आप अल्लाह के पास जा रहे हैं और अपनी आवश्यकताओं के लिए भीख मांग रहे हैं। तीसरा, यह आपको याद दिलाता है कि अल्लाह वास्तव में आपकी दुआ सुनता है और इसका जवाब देगा।

चूंकि दुआ पूजा का काम है, अल्लाह के सिवा किसी और से दुआ मांगना शिर्क है। दुआ केवल अल्लाह और अकेले अल्लाह से मांगनी चाहिए। इस बात को स्पष्ट करने के लिए क़ुरआन का एक छंद काफी है:

“आप (ऐ मुहम्मद) कह दें कि मैं तो केवल अपने पालनहार को पुकारता हूं और साझी नहीं बनाता उसका किसी अन्य को।’” (क़ुरआन 72:20)

मान लीजिए कि कोई व्यक्ति अल्लाह के अलावा किसी और से दुआ मांगता है, चाहे वह मूर्ति हो या संत, यह मानते हुए कि वह व्यक्ति उसे सुन सकता जैसा अल्लाह सुनता है, और उसकी दुआ का जवाब दे सकता है, तो ऐसा करना उस वस्तु या व्यक्ति की तुलना अल्लाह के साथ करना है। यह स्पष्ट शिर्क है।

दुआ के लाभ:

1.दुआ अल्लाह की नज़र में नेक कामों में से एक है।

2.दुआ पूजा का सार है।

3.दुआ किसी की आस्था की निशानी है।

4.दुआ करना अल्लाह की आज्ञा का पालन करना है।

5.अल्लाह दुआ करने वाले के करीब है।

6.दुआ के माध्यम से अल्लाह हमें अपनी उदारता दिखाता है।

7.दुआ नम्रता की निशानी है।

8.दुआ अल्लाह के गुस्से को दूर करता है।

9.दुआ किसी को नर्क की आग से बचा सकती है।

10.दुआ करने का मतलब आप सर्वशक्तिमान ईश्वर से अवगत हैं।

11.अल्लाह को दुआ पसंद है।

12.दुआ एक आस्तिक को एक अविश्वासी से अलग करती है।

13.दुआ आस्तिक और जिसके साथ अन्याय हुआ है उसका हथियार है।

14.दुआ निर्माता के साथ संवाद करने का एक साधन है।

15.दुआ पूजा का एक आसान कार्य है।

दुआ करने से पहले

1.यह एहसास करना कि सिर्फ अल्लाह ही दुआ का जवाब देता है

“और कौन है जो व्याकुल की प्रार्थना सुनता है, जब उसे पुकारे और दूर करता है दुःख तथा तुम्हें बनाता है धरती का अधिकारी, क्या कोई पूज्य है अल्लाह के साथ? तुम बहुत कम ही शिक्षा ग्रहण करते हो।” (क़ुरआन 27:62)

2.दुआ करते समय अल्लाह के प्रति ईमानदार रहें

“और जिन्हें अल्लाह के सिवा तुम पुकारते हो, वे न तुम्हारी सहायता कर सकते हैं और न स्वयं अपनी ही सहायता कर सकते हैं।” (क़ुरआन 7:197)

3.दुआ करते समय जल्दबाजी न करें

पैगंबर ने कहा, "गुलाम को दुआ का जवाब तब तक मिलेगा जब तक कि उसकी दुआ में पाप या पारिवारिक संबंधों को तोड़ना शामिल नहीं है, और जब तक वह जल्दबाजी नहीं करता है।" पूछा गया, ''जल्दबाजी करने का क्या मतलब है?'' पैगंबर ने कहा: "जब वह कहता है, 'मैंने दुआ की और फिर दुआ की, और मुझे कोई जवाब न मिला,' और वह निराश हो जाता है और दुआ करना बंद कर देता है।”[1]

4.अच्छी चीजों के लिए दुआ करें

अल्लाह पसंद करता है कि उसके दास उससे वह सब कुछ मांगें जो उनके आध्यात्मिक और सांसारिक लाभ जैसे कि भोजन, पेय, वस्त्र, मार्गदर्शन और क्षमा आदि के लिए है। पैगंबर मुहम्मद (उन पर अल्लाह की दया और आशीर्वाद हो) ने कहा: "तुम अपने रब से अपनी ज़रूरत का मांगो, यहां तक कि अपने जूते के टूटे हुए फीते भी मांगो।[2]

5.एक शिष्ट दिल के साथ दुआ मांगे

ध्यान से दुआ करो, जो तुम अल्लाह से मांग रहे हो उस पर ध्यान दो, उसमें अपना दिल और दिमाग लगाओ। इस बारे में सोचो कि पैगंबर मुहम्मद ने क्या कहा, "अल्लाह से एक ऐसी स्थिति में दुआ मांगो कि आप निश्चित हों कि आपकी दुआ का जवाब दिया जाएगा, और यह जान लो कि अल्लाह लापरवाही और बेपरवाही से मांगी गई दुआ का जवाब नहीं देता है।”[3]

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6.इस्लामी रूप से स्वीकार्य स्रोत से अपनी आजीविका अर्जित करो और हलाल भोजन करो

शराब और सूअर का मांस बेचना, जुआ खेलना, चोरी करना और रिश्वत लेना ये सभी आय के अस्वीकार्य स्रोतों के उदाहरण हैं। क़ुरआन कहता है:

“अल्लाह आज्ञाकारों ही से स्वीकार करता है (जो उससे डरते हैं)।” (क़ुरआन 5:27)

दुआ करते समय

1.दुआ मांगने से पहले अल्लाह की प्रशंसा करो और पैगंबर पर प्रार्थना भेजो

पैगंबर (उन पर शांति और आशीर्वाद हो) ने किसी को दुआ करते देखा। पैगंबर ने उस व्यक्ति को निर्देश दिया, "... जब आप अपनी औपचारिक प्रार्थना पूरी कर लो, तो बैठ जाओ और अल्लाह की प्रशंसा करो कि वह योग्य है, और मुझ पर प्रार्थना भेजो, फिर अपनी दुआ मांगो।[4]

पैगंबर ने यह भी कहा, "एक दुआ तब तक अल्लाह के पास नही पहुंचती जब तक कि दुआ करने वाले व्यक्ति ने 'पैगंबर पर प्रार्थना' न भेजी हो।’”[5]

इसलिए, आप अपनी दुआ की शुरुआत इन शब्दों से कर सकते हैं,

अल्हम्दुलिल्लाह वस-सलातु वस-सलाम अला रसूलिल्लाह

“सभी प्रशंसा और धन्यवाद अल्लाह के लिए हैं और अल्लाह के दूत (मुहम्मद) पर अल्लाह की शांति और आशीर्वाद हो।”

2.अपने हाथ उठाएं

मुसलमानों को अल्लाह से दुआ मांगते समय हाथ उठाने के लिए जाना जाता है। पैगंबर मुहम्मद के कई कथन हैं कि वह अल्लाह से दुआ मांगते समय हाथ उठाते थे।

3.क़िबला (जिस दिशा की और मुंह कर के औपचारिक प्रार्थना की जाती है।) की ओर मुंह करो

ऐसी कथन हैं कि दुआ करते समय पैगंबर क़िबला की ओर मुंह करते थे।

4.दुआ करते समय रोने की कोशिश करें

रोना ईमानदारी दिखाता है और अधिक संभावना है कि व्यक्ति खुद को अल्लाह के सामने विनम्र करेगा।

5.अल्लाह से अच्छे की उम्मीद करो और जान लो कि वह जवाब देगा

पैगंबर मुहम्मद ने कहा: "ऐसा कोई दुआ करने वाला मुसलमान नहीं है जिसने कोई पाप न किया हो या पारिवारिक संबंध न तोड़ा हो, लेकिन अल्लाह उसे बदले में तीन चीजों में से एक देगा: या तो अल्लाह उसकी दुआ का जवाब जल्द ही देगा, या वह इसे परलोक के लिये जमा कर लेगा, या इसके बराबर की किसी बुराई को उससे दूर कर देगा।” लोगो ने कहा: "हम बहुत दुआ मांगेंगे।" पैगंबर ने कहा: "अल्लाह बहुत उदार है।”[6]

6.नम्रता और भय के साथ दुआ करें।

क़ुरआन में अल्लाह कहता है,

“तुम अपने (उसी) पालनहर को रोते हुए तथा धीरे धीरे पुकारो। निःसंदेह वह सीमा पार करने वालों से प्रेम नहीं करता।” (क़ुरआन 7:55)

7.अपने पापों को स्वीकार करो।

8.दुआ मांगने में दृढ़ रहें

पैगंबर ने कहा, "जब आप में से कोई दुआ करे, तो उसे अपनी दुआ में दृढ़ रहने दें और उसे यह न कहने दें, 'ऐ अल्लाह, अगर तुम चाहो, तो कृपया मुझे माफ कर दो," क्योंकि कोई नहीं है जो अल्लाह को कुछ भी करने के लिए मजबूर कर सकता है।”[7]

9.दुआ को तीन बार दोहराओ

कई हदीसों में पैगंबर ने दुआ को तीन बार दोहराने को कहा है।

10. अंत में "आमीन" बोलें

“आमीन," आमतौर पर इस्लाम के अंग्रेजी साहित्य में "अमिन" लिखा जाता है और यह अंग्रेजी शब्द "ऐमन" के समान है। अरबी में इसका अर्थ है, 'ऐ अल्लाह, कृपया स्वीकार करें।’



फुटनोट:

[1] सहीह मुस्लिम

[2] तिर्मिज़ी

[3] तिर्मिज़ी

[4] तिर्मिज़ी

[5] नसाई

[6] अहमद

[7] सहीह अल-बुखारी, सहीह मुस्लिम

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