Date: Sun, 3 Dec 2023 10:30:44 +0300 Return-Path: support@newmuslims.com From: =?iso-8859-1?B?TmV3TXVzbGltLmNvbSDgpLjgpLLgpL7gpLkg4KS44KWH4KS14KS+?= Message-ID: <3df07b5fe04e70ed50837494cb56b1fb@www.newmuslims.com> X-Priority: 3 X-Mailer: PHPMailer [version 1.73] X-Original-Sender-IP: 35.172.165.64 MIME-Version: 1.0 Content-Type: multipart/related; type="multipart/alternative"; boundary="b1_3df07b5fe04e70ed50837494cb56b1fb" --b1_3df07b5fe04e70ed50837494cb56b1fb Content-Type: multipart/alternative; boundary="b2_3df07b5fe04e70ed50837494cb56b1fb" --b2_3df07b5fe04e70ed50837494cb56b1fb Content-Type: text/plain; charset = "iso-8859-1" Content-Transfer-Encoding: 8bit स्तर 5 :: Lesson 23 संदेह से निपटना विवरण: संदेह क्यों होता है, इसका क्या अर्थ है और हमें इससे कैसे निपटना चाहिए। द्वारा Aisha Stacey (© 2013 NewMuslims.com) प्रकाशितहुआ 08 Nov 2022 - अंतिम बार संशोधित 07 Nov 2022 प्रिंट किया गया: 16 - ईमेल भेजा गया: 0 - देखा गया: 738 (दैनिक औसत: 2) श्रेणी: पाठ > सामाजिक बातचीत > परिवर्तन का मुकाबला उद्देश्य · यह समझना कि आस्था में संदेह होना एक प्राकृतिक मानवीय घटना है।उन तरीकों को जानना जिनसे इन संदेहों को दूर किया जा सकता है।अरबी शब्द · शैतान - यह इस्लाम और अरबी भाषा में इस्तेमाल किया जाने वाला शब्द है जो शैतान यानि बुराई की पहचान को दर्शाता है। · सुन्नत - अध्ययन के क्षेत्र के आधार पर सुन्नत शब्द के कई अर्थ हैं, हालांकि आम तौर पर इसका अर्थ है जो कुछ भी पैगंबर ने कहा, किया या करने को कहा। · जिन्न - अल्लाह की एक रचना जो मानवजाति से पहले धुआं रहित आग से बनाई गई थी। उन्हें कभी-कभी आत्मा, बंशी, पोल्टरजिस्ट, प्रेत आदि के रूप में संदर्भित किया जाता है। · उम्मत - मुस्लिम समुदाय चाहे वो किसी भी रंग, जाति, भाषा या राष्ट्रीयता का हो। हमारी आस्था किस मे है और हमारी आस्था इसी में क्यों है, इसके बारे में दिल मे संदेह आना स्वाभाविक है। वास्तव में यह अक्सर वे संदेह होते हैं जो लोगों को इस्लाम अपनाने के लिए प्रेरित करते हैं। उनकी आस्था की वैधता के बारे में संदेह अक्सर लोगों को किसी ऐसी चीज़ की तलाश में लगा देता है जिसे वे समझ सकते हैं और जिस पर वे विश्वास कर सकते हैं। आपको चुने हुए धर्म या उस धर्म के पहलुओं के बारे में संदेह हो सकता है, लेकिन अंतर यह है कि इस्लाम हमें संदेह से निपटने के लिए आगाह और सामना करने की अनुमति देता है। इस्लाम को अक्सर अंध विश्वास के बजाय 'सूचित ज्ञान' के रूप में वर्णित किया जाता है, इसलिए जब संदेह उत्पन्न होता है तो हम उनसे निपटने में सक्षम होते हैं। संदेह एक ऐसी बीमारी है जो हमारे आध्यात्मिक स्वास्थ्य को बहुत नुकसान पहुंचा सकती है यदि हम उसका सामना करने के बजाय उसे ऐसे ही छोड़ दें - शैतान हम पर छल और भ्रम के तीर फैंकता है। शैतान इंसानों का पक्का दुश्मन है। जिस तरह वह हमारे दिलों में बुरे विचारों को फुसफुसाता है, उसी तरह वह हमारे दिमाग को शंकाओं से भरने में सक्षम है, वो शंकाएं जो बेचैनी और भ्रम पैदा करने के लिए बनाई गई हैं। कभी-कभी व्यक्ति शैतान द्वारा दिल मे पैदा किये गए संदेह और खुद की इच्छा के बीच अंतर करने में असमर्थ होते हैं। अन्य अवसरों पर विचार इतनी भयावह प्रकृति के होते हैं कि हम उन्हें दोहराने या उनकी जांच करने से डरते हैं यदि वे हमारी निंदा करते हैं या हमें पाखंडी या इस्लाम से दूर बताते हैं। ऐसे विचारों और शंकाओं को पूरी तरह से नजरअंदाज करना चाहिए और उन पर विचार नहीं करना चाहिए और शैतान से बचने के लिए अल्लाह की शरण लेनी चाहिए। पढ़ें "अ-ऊजु बिल्लाहि मिनश शैतानिर रजीम" (मैं शापित शैतान से अल्लाह की शरण लेता हूं)) और क्षमा मांगें। पैगंबर मुहम्मद (उन पर अल्लाह की दया और आशीर्वाद हो) की परंपराओं से हमें पता चलता है कि यदि किसी को अपनी आस्था मे संदेह है तो उसे अल्लाह की शरण लेनी चाहिए, जो संदेह पैदा कर रहा है उसे त्याग दें और कहें, "आमन्तु बिल्लाहि वा रुसुलिही", जिसका अर्थ है, मैं अल्लाह और उसके दूत पर विश्वास करता हूं।[1] इन संदेहों के नुक्सान से बचने के लिए अल्लाह की ओर मुड़ना ही एकमात्र सुरक्षा है। तो जब कोई संदेह आपके दिल, दिमाग या आत्मा को परेशान करे तो अल्लाह की ओर मुड़ें और उसकी आज्ञाकारिता और उसे खुश करने की कोशिश मे आराम मिलेगा। पैगंबर मुहम्मद की सुन्नत में हमें एक सुंदर वर्णन मिलता है जिसमें अल्लाह सीधे विश्वासियों से बात करता है। इस प्रकार जब संदेह उत्पन्न होता है, तो केवल अल्लाह से मार्गदर्शन मांगे, उसकी दया पर हमारी पूर्ण निर्भरता को पहचानें और ज्ञान और अच्छे कर्मों से उन संदेहों का सामना करें। “‘ऐ मेरे बंदो! मैंने ज़ुल्म को अपने ऊपर ह़राम क़रार दिया है (यानी मैं ज़ुल्म से पाक हूं।) और तुम पर भी उसे ह़राम किया है। तो तुम आपस में एक दूसरे पर ज़ुल्म मत करो। ऐ मेरे बंदो! तुम सब बहके हुए हो सिवाए उस शख्स के जिसको मैं मार्गदर्शन दूं। तो तुम मुझसे मार्गदर्शन मांगो मैं तुम्हें मार्गदर्शन दूंगा। ऐ मेरे बंदो! तुम सब भूखे हो सिवाय उसके जिसे मैं खिलाऊं तो तुम मुझसे खाना मांगो मैं तुम्हें खाना खिलाऊंगा। ऐ मेरे बंदो! तुम सब नंगे हो (यानी बदन छुपाने के लिए कपड़े के मोहताज हो) सिवाय उसके जिसे मैं पहनाऊं तो तुम मुझसे कपड़े मांगू मैं तुम्हें दूंगा। ऐ मेरे बंदो! तुम दिन रात गलतियां करते हो और मैं तुम्हारी गलतियों को माफ करता हूं। तो तुम मुझसे माफी मांगो मैं तुम्हें माफ कर दूंगा। ऐ मेरे बंदो! तुम मेरा नुकसान नहीं कर सकते और ना ही मुझे कोई फायदा पहुंचा सकते हो। ए मेरे बंदो! अगर तुम्हारे अगले और पिछले और आदमी और जिन सब ऐसे हो जाएं जैसे तुम में सबसे बड़ा धर्मी व्यक्ति तो उससे मेरी हुकूमत में कुछ ज़्यादती ना होगी। और अगर तुम्हारे अगले और पिछले लोग और इंसान और जिन सब ऐसे हो जाएं जैसे तुम में सबसे बड़ा गुनाहगार व्यक्ति तो उससे मेरी हुकूमत में कुछ नुकसान ना पहुंचेगा। ऐ मेरे बंदो! अगर तुम्हारे अगले और पिछले (सभी लोग) और इंसान और जिन सब एक मैदान में खड़े हों जाएं और फिर मुझसे मांगना शुरू करें और मैं हर एक को जो वह मांगे दे दूं तब भी मेरे पास जो कुछ है वह कम ना होगा मगर इतना जैसे समुद्र में सूई डाल कर निकालो ऐ मेरे बंदो! यह तो तुम्हारे ही काम है जिनको मैं तुम्हारे लिए गिनता हूं। फिर तुम्हें इन कामों का पूरा बदला दूंगा। तो जो व्यक्ति बेहतर बदला पाए तो चाहिए कि अल्लाह का शुक्र अदा करे और जो बुरा बदला पाए तो इसका दोषी वह खुद होगा।’”[2] शैतान को सबसे ज्यादा पसंद वो चीज है, उस व्यक्ति का गुमराही जिसने सत्य को अपने लिए चुने गए मार्ग से अलग पाया है। वह संदेह पैदा करने की पूरी कोशिश करता है और वह उस व्यक्ति के दिमाग को भरने मे सक्षम होता है जो पहले से ही प्रामाणिक ज्ञान से भरा नहीं है। इस प्रकार पालने से कब्र तक ज्ञान की तलाश जारी रखना महत्वपूर्ण है। या दूसरे शब्दों में, आपके पहली बार इस्लाम की वैधता पर विचार करने से लेकर जब तक आपकी मृत्यु नही हो जाती। हमारे सीमित ज्ञान के कारण हम कुछ कथनों या कुछ आदेशों में ज्ञान को नहीं समझ सकते हैं और इससे संदेह हो सकता है। इस तरह की स्थिति में, इस्लाम के मूल सिद्धांतों को देखकर अपने विश्वास की पुष्टि करनी चाहिए; चूंकि इसे बौद्धिक रूप से स्वीकार किया जाता है, इसलिए जिन कुछ चीजों में कोई संदेह महसूस करता है, उसे समस्या नहीं बनाना चाहिए, क्योंकि हम मानते हैं कि अल्लाह सर्वशक्तिमान, सर्वज्ञ है! मुसलमान दृढ़ता से मानते हैं कि सभी चीजों के निर्माण के पीछे एक निश्चित ज्ञान है; कभी-कभी हम ज्ञान को समझते हैं, और कभी-कभी हम नहीं समझते। यदि किसी चीज के पीछे के कारण को हम अपनी अज्ञानता से नही जान सकते तो इसका मतलब ये नही है कि उस तथ्य के पीछे कोई कारण नही है। अपनी कमियों के कारण ही हम कुछ बातों को समझ नहीं पाते। यह हमारे प्राकृतिक इतिहास के दौरान सिद्ध हो चुका है; अतीत में बहुत सी चीजें अपेक्षाकृत अज्ञात, रहस्यमयी थीं, और उन्हें अजीब माना जाता था, लेकिन जैसे-जैसे विज्ञान आगे बढ़ा, उन मामलों के पीछे का ज्ञान स्पष्ट हो गया। उदाहरण के तौर पर अपेंडिक्स को लें, कुछ साल पहले तक इसे सिर्फ शरीर का एक बेकार अंग माना जाता था, लेकिन अब जैसे-जैसे विज्ञान आगे बढ़ा है, इसके अस्तित्व के पीछे का ज्ञान स्पष्ट हो गया है! संक्षेप में, हमें हर चीज का कारण और ज्ञान नहीं बताया गया है। और यदि किसी को इस्लाम के मूल सिद्धांतों के बारे में संदेह है तो इस्लाम के प्रमाणों को अधिक विस्तार से देखना चाहिए ताकि उनकी आस्था मजबूत हो सके। आज कल के दौर में हम अविश्वसनीय रूप से दुनिया भर का ज्ञान जान सकते हैं और दुख की बात है कि इसमें कई साइटें और स्रोत शामिल हैं जो तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर इस्लाम को बदनाम करने की कोशिश करते हैं, संदर्भ से बाहर पाठ्य अंशों का हवाला देते हुए, सुन्नत की कमजोर और मनगढ़ंत परंपराओं का हवाला देते हुए या सिर्फ इस्लाम के खिलाफ झूठ गढ़कर। यह महत्वपूर्ण है कि आप विश्वसनीय स्रोतों से इस्लाम के बारे में जानें। यहां तक ​​​​कि पैगंबर मुहम्मद के साथी भी नकारात्मक विचारों से परेशान हो जाते थे और सुन्नत में सबूतों का खजाना है जो बताता है कि ऐसे विचार उत्पन्न होना सामान्य है “अल्लाह ने मेरी उम्मत को माफ कर दिया है उससे जो उनके कानो मे फुसफुसाया गया और जो उनके दिमाग मे डाला गया, जब तक कि वे उस पर अमल नहीं करते हैं या इसके बारे में बात नहीं करते हैं।”[3] यह बताया गया कि अबू हुरैरा (अल्लाह उस पर प्रसन्न हो) ने कहा: "अल्लाह के दूत के कुछ साथी पैगंबर के पास आए और उनसे कहा, 'हमारे मन मे ऐसे विचार आते हैं जो बोलने मे बहुत भयानक हैं।' पैगंबर ने कहा, 'क्या आप वाकई इससे परेशान हैं?' उन्होंने कहा, 'हां।' पैगंबर ने, 'यह आस्था का एक स्पष्ट संकेत है।’”[4] इसलिए यदि संदेह करने वाला व्यक्ति इसके कारण बुरा और व्यथित महसूस करता है, तो उसे अत्यधिक चिंतित या भयभीत नहीं होना चाहिए, जैसा कि पैगंबर मुहम्मद ने कहा, ये विचार "आस्था के संकेत" हैं! इस्लामी विद्वानों ने समझाया है कि जिस तरह एक चोर केवल उस जगह पर चोरी करता है जहां उसे पता होता है कि धन है और उस स्थान की सुरक्षा कमजोर है, उसी तरह शैतान केवल उन दिलों पर हमला करता है और संदेह डालता है जिनमें सच्ची आस्था का धन होता है। ईश्वर हमें क़ुरआन में शंकाओं से निपटने का एक सरल और स्पष्ट तरीका देता है। वह कहता है: “फिर तुम ज्ञानियों से पूछ लो, यदि तुम (स्वयं) नहीं जानते हो।” (क़ुरआन21:7) संदेह होना अज्ञानता की निशानी है जिसे केवल ज्ञान से दूर किया जा सकता है। जितना अधिक व्यक्ति स्वयं को शिक्षित करता है और अपनी आस्था को मजबूत करता है, उतना ही वे अपने संदेहों को दूर करने में सक्षम होते जाते हैं। फुटनोट: [1]सहीह मुस्लिम [2]सहीह मुस्लिम, अत-तिर्मिज़ी और इब्न माज़ा [3]सहीह अल-बुखारी [4]सहीह मुस्लिम इस लेख का वेब पता:https://www.newmuslims.com/hi/lessons/175/कॉपीराइट © 2011-2022 NewMuslims.com. सर्वाधिकार सुरक्षित। --b2_3df07b5fe04e70ed50837494cb56b1fb Content-Type: text/html; charset = "iso-8859-1" Content-Transfer-Encoding: 8bit

संदेह से निपटना

विवरण: संदेह क्यों होता है, इसका क्या अर्थ है और हमें इससे कैसे निपटना चाहिए।

द्वारा Aisha Stacey (© 2013 NewMuslims.com)

प्रकाशित हुआ 08 Nov 2022 - अंतिम बार संशोधित 07 Nov 2022

प्रिंट किया गया: 16 - ईमेल भेजा गया: 0 - देखा गया: 738 (दैनिक औसत: 2)

श्रेणी: पाठ > सामाजिक बातचीत > परिवर्तन का मुकाबला


उद्देश्य

·       यह समझना कि आस्था में संदेह होना एक प्राकृतिक मानवीय घटना है।

उन तरीकों को जानना जिनसे इन संदेहों को दूर किया जा सकता है।

अरबी शब्द

·       शैतान - यह इस्लाम और अरबी भाषा में इस्तेमाल किया जाने वाला शब्द है जो शैतान यानि बुराई की पहचान को दर्शाता है।

·       सुन्नत - अध्ययन के क्षेत्र के आधार पर सुन्नत शब्द के कई अर्थ हैं, हालांकि आम तौर पर इसका अर्थ है जो कुछ भी पैगंबर ने कहा, किया या करने को कहा।

·       जिन्न - अल्लाह की एक रचना जो मानवजाति से पहले धुआं रहित आग से बनाई गई थी। उन्हें कभी-कभी आत्मा, बंशी, पोल्टरजिस्ट, प्रेत आदि के रूप में संदर्भित किया जाता है। 

·       उम्मत - मुस्लिम समुदाय चाहे वो किसी भी रंग, जाति, भाषा या राष्ट्रीयता का हो।

DealingWithDoubts.jpgहमारी आस्था किस मे है और हमारी आस्था इसी में क्यों है, इसके बारे में दिल मे संदेह आना स्वाभाविक है। वास्तव में यह अक्सर वे संदेह होते हैं जो लोगों को इस्लाम अपनाने के लिए प्रेरित करते हैं। उनकी आस्था की वैधता के बारे में संदेह अक्सर लोगों को किसी ऐसी चीज़ की तलाश में लगा देता है जिसे वे समझ सकते हैं और जिस पर वे विश्वास कर सकते हैं। आपको चुने हुए धर्म या उस धर्म के पहलुओं के बारे में संदेह हो सकता है, लेकिन अंतर यह है कि इस्लाम हमें संदेह से निपटने के लिए आगाह और सामना करने की अनुमति देता है। इस्लाम को अक्सर अंध विश्वास के बजाय 'सूचित ज्ञान' के रूप में वर्णित किया जाता है, इसलिए जब संदेह उत्पन्न होता है तो हम उनसे निपटने में सक्षम होते हैं। संदेह एक ऐसी बीमारी है जो हमारे आध्यात्मिक स्वास्थ्य को बहुत नुकसान पहुंचा सकती है यदि हम उसका सामना करने के बजाय उसे ऐसे ही छोड़ दें - शैतान हम पर छल और भ्रम के तीर फैंकता है।

शैतान इंसानों का पक्का दुश्मन है। जिस तरह वह हमारे दिलों में बुरे विचारों को फुसफुसाता है, उसी तरह वह हमारे दिमाग को शंकाओं से भरने में सक्षम है, वो शंकाएं जो बेचैनी और भ्रम पैदा करने के लिए बनाई गई हैं। कभी-कभी व्यक्ति शैतान द्वारा दिल मे पैदा किये गए संदेह और खुद की इच्छा के बीच अंतर करने में असमर्थ होते हैं। अन्य अवसरों पर विचार इतनी भयावह प्रकृति के होते हैं कि हम उन्हें दोहराने या उनकी जांच करने से डरते हैं यदि वे हमारी निंदा करते हैं या हमें पाखंडी या इस्लाम से दूर बताते हैं। ऐसे विचारों और शंकाओं को पूरी तरह से नजरअंदाज करना चाहिए और उन पर विचार नहीं करना चाहिए और शैतान से बचने के लिए अल्लाह की शरण लेनी चाहिए। पढ़ें "अ-ऊजु बिल्लाहि मिनश शैतानिर रजीम" (मैं शापित शैतान से अल्लाह की शरण लेता हूं)) और क्षमा मांगें।    

पैगंबर मुहम्मद (उन पर अल्लाह की दया और आशीर्वाद हो) की परंपराओं से हमें पता चलता है कि यदि किसी को अपनी आस्था मे संदेह है तो उसे अल्लाह की शरण लेनी चाहिए, जो संदेह पैदा कर रहा है उसे त्याग दें और कहें, "आमन्तु बिल्लाहि वा रुसुलिही", जिसका अर्थ है, मैं अल्लाह और उसके दूत पर विश्वास करता हूं।[1]

इन संदेहों के नुक्सान से बचने के लिए अल्लाह की ओर मुड़ना ही एकमात्र सुरक्षा है। तो जब कोई संदेह आपके दिल, दिमाग या आत्मा को परेशान करे तो अल्लाह की ओर मुड़ें और उसकी आज्ञाकारिता और उसे खुश करने की कोशिश मे आराम मिलेगा। पैगंबर मुहम्मद की सुन्नत में हमें एक सुंदर वर्णन मिलता है जिसमें अल्लाह सीधे विश्वासियों से बात करता है। इस प्रकार जब संदेह उत्पन्न होता है, तो केवल अल्लाह से मार्गदर्शन मांगे, उसकी दया पर हमारी पूर्ण निर्भरता को पहचानें और ज्ञान और अच्छे कर्मों से उन संदेहों का सामना करें।

“‘ऐ मेरे बंदो! मैंने ज़ुल्म को अपने ऊपर ह़राम क़रार दिया है (यानी मैं ज़ुल्म से पाक हूं।) और तुम पर भी उसे ह़राम किया है। तो तुम आपस में एक दूसरे पर ज़ुल्म मत करो। ऐ मेरे बंदो! तुम सब बहके हुए हो सिवाए उस शख्स के जिसको मैं मार्गदर्शन दूं। तो तुम मुझसे मार्गदर्शन मांगो मैं तुम्हें मार्गदर्शन दूंगा। ऐ मेरे बंदो! तुम सब भूखे हो सिवाय उसके जिसे मैं खिलाऊं तो तुम मुझसे खाना मांगो मैं तुम्हें खाना खिलाऊंगा। ऐ मेरे बंदो! तुम सब नंगे हो (यानी बदन छुपाने के लिए कपड़े के मोहताज हो) सिवाय उसके जिसे मैं पहनाऊं तो तुम मुझसे कपड़े मांगू मैं तुम्हें दूंगा। ऐ मेरे बंदो! तुम दिन रात गलतियां करते हो और मैं तुम्हारी गलतियों को माफ करता हूं। तो तुम मुझसे माफी मांगो मैं तुम्हें माफ कर दूंगा। ऐ मेरे बंदो! तुम मेरा नुकसान नहीं कर सकते और ना ही मुझे कोई फायदा पहुंचा सकते हो। ए मेरे बंदो! अगर तुम्हारे अगले और पिछले और आदमी और जिन सब ऐसे हो जाएं जैसे तुम में सबसे बड़ा धर्मी व्यक्ति तो उससे मेरी हुकूमत में कुछ ज़्यादती ना होगी। और अगर तुम्हारे अगले और पिछले लोग और इंसान और जिन सब ऐसे हो जाएं जैसे तुम में सबसे बड़ा गुनाहगार व्यक्ति तो उससे मेरी हुकूमत में कुछ नुकसान ना पहुंचेगा। ऐ मेरे बंदो! अगर तुम्हारे अगले और पिछले (सभी लोग) और इंसान और जिन सब एक मैदान में खड़े हों जाएं और फिर मुझसे मांगना शुरू करें और मैं हर एक को जो वह मांगे दे दूं तब भी मेरे पास जो कुछ है वह कम ना होगा मगर इतना जैसे समुद्र में सूई डाल कर निकालो ऐ मेरे बंदो! यह तो तुम्हारे ही काम है जिनको मैं तुम्हारे लिए गिनता हूं। फिर तुम्हें इन कामों का पूरा बदला दूंगा। तो जो व्यक्ति बेहतर बदला पाए तो चाहिए कि अल्लाह का शुक्र अदा करे और जो बुरा बदला पाए तो इसका दोषी वह खुद होगा।’”[2]

शैतान को सबसे ज्यादा पसंद वो चीज है, उस व्यक्ति का गुमराही जिसने सत्य को अपने लिए चुने गए मार्ग से अलग पाया है। वह संदेह पैदा करने की पूरी कोशिश करता है और वह उस व्यक्ति के दिमाग को भरने मे सक्षम होता है जो पहले से ही प्रामाणिक ज्ञान से भरा नहीं है। इस प्रकार पालने से कब्र तक ज्ञान की तलाश जारी रखना महत्वपूर्ण है। या दूसरे शब्दों में, आपके पहली बार इस्लाम की वैधता पर विचार करने से लेकर जब तक आपकी मृत्यु नही हो जाती।

हमारे सीमित ज्ञान के कारण हम कुछ कथनों या कुछ आदेशों में ज्ञान को नहीं समझ सकते हैं और इससे संदेह हो सकता है। इस तरह की स्थिति में, इस्लाम के मूल सिद्धांतों को देखकर अपने विश्वास की पुष्टि करनी चाहिए; चूंकि इसे बौद्धिक रूप से स्वीकार किया जाता है, इसलिए जिन कुछ चीजों में कोई संदेह महसूस करता है, उसे समस्या नहीं बनाना चाहिए, क्योंकि हम मानते हैं कि अल्लाह सर्वशक्तिमान, सर्वज्ञ है!

मुसलमान दृढ़ता से मानते हैं कि सभी चीजों के निर्माण के पीछे एक निश्चित ज्ञान है; कभी-कभी हम ज्ञान को समझते हैं, और कभी-कभी हम नहीं समझते। यदि किसी चीज के पीछे के कारण को हम अपनी अज्ञानता से नही जान सकते तो इसका मतलब ये नही है कि उस तथ्य के पीछे कोई कारण नही है। अपनी कमियों के कारण ही हम कुछ बातों को समझ नहीं पाते। यह हमारे प्राकृतिक इतिहास के दौरान सिद्ध हो चुका है; अतीत में बहुत सी चीजें अपेक्षाकृत अज्ञात, रहस्यमयी थीं, और उन्हें अजीब माना जाता था, लेकिन जैसे-जैसे विज्ञान आगे बढ़ा, उन मामलों के पीछे का ज्ञान स्पष्ट हो गया। उदाहरण के तौर पर अपेंडिक्स को लें, कुछ साल पहले तक इसे सिर्फ शरीर का एक बेकार अंग माना जाता था, लेकिन अब जैसे-जैसे विज्ञान आगे बढ़ा है, इसके अस्तित्व के पीछे का ज्ञान स्पष्ट हो गया है!

संक्षेप में, हमें हर चीज का कारण और ज्ञान नहीं बताया गया है। और यदि किसी को इस्लाम के मूल सिद्धांतों के बारे में संदेह है तो इस्लाम के प्रमाणों को अधिक विस्तार से देखना चाहिए ताकि उनकी आस्था मजबूत हो सके। 

 आज कल के दौर में हम अविश्वसनीय रूप से दुनिया भर का ज्ञान जान सकते हैं और दुख की बात है कि इसमें कई साइटें और स्रोत शामिल हैं जो तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर इस्लाम को बदनाम करने की कोशिश करते हैं, संदर्भ से बाहर पाठ्य अंशों का हवाला देते हुए, सुन्नत की कमजोर और मनगढ़ंत परंपराओं का हवाला देते हुए या सिर्फ इस्लाम के खिलाफ झूठ गढ़कर। यह महत्वपूर्ण है कि आप विश्वसनीय स्रोतों से इस्लाम के बारे में जानें।

यहां तक ​​​​कि पैगंबर मुहम्मद के साथी भी नकारात्मक विचारों से परेशान हो जाते थे और सुन्नत में सबूतों का खजाना है जो बताता है कि ऐसे विचार उत्पन्न होना सामान्य है  

“अल्लाह ने मेरी उम्मत को माफ कर दिया है उससे जो उनके कानो मे फुसफुसाया गया और जो उनके दिमाग मे डाला गया, जब तक कि वे उस पर अमल नहीं करते हैं या इसके बारे में बात नहीं करते हैं।”[3]

यह बताया गया कि अबू हुरैरा (अल्लाह उस पर प्रसन्न हो) ने कहा: "अल्लाह के दूत के कुछ साथी पैगंबर के पास आए और उनसे कहा, 'हमारे मन मे ऐसे विचार आते हैं जो बोलने मे बहुत भयानक हैं।' पैगंबर ने कहा, 'क्या आप वाकई इससे परेशान हैं?' उन्होंने कहा, 'हां।' पैगंबर ने, 'यह आस्था का एक स्पष्ट संकेत है।’”[4]

इसलिए यदि संदेह करने वाला व्यक्ति इसके कारण बुरा और व्यथित महसूस करता है, तो उसे अत्यधिक चिंतित या भयभीत नहीं होना चाहिए, जैसा कि पैगंबर मुहम्मद ने कहा, ये विचार "आस्था के संकेत" हैं! इस्लामी विद्वानों ने समझाया है कि जिस तरह एक चोर केवल उस जगह पर चोरी करता है जहां उसे पता होता है कि धन है और उस स्थान की सुरक्षा कमजोर है, उसी तरह शैतान केवल उन दिलों पर हमला करता है और संदेह डालता है जिनमें सच्ची आस्था का धन होता है।

ईश्वर हमें क़ुरआन में शंकाओं से निपटने का एक सरल और स्पष्ट तरीका देता है। वह कहता है:

“फिर तुम ज्ञानियों से पूछ लो, यदि तुम (स्वयं) नहीं जानते हो।” (क़ुरआन 21:7)

संदेह होना अज्ञानता की निशानी है जिसे केवल ज्ञान से दूर किया जा सकता है। जितना अधिक व्यक्ति स्वयं को शिक्षित करता है और अपनी आस्था को मजबूत करता है, उतना ही वे अपने संदेहों को दूर करने में सक्षम होते जाते हैं।



फुटनोट:

[1] सहीह मुस्लिम

[2] सहीह मुस्लिम, अत-तिर्मिज़ी और इब्न माज़ा

[3] सहीह अल-बुखारी

[4] सहीह मुस्लिम

इस लेख का वेब पता:
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